हैदराबाद : स्वतंत्रता सेनानी, वर्णाश्रम-पत्रक के संपादक और हैदराबाद मुक्ति आंदोलन में आर्य समाज का नेतृत्व करने वाले स्वर्गीय पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी की बहु और सुलतान बाजार आर्य समाज के सदस्य भक्तराम आर्य की पत्नी सुखदा जिनका का गत 28 जून को निधन हो गया था, उनकी स्मृति में गुरुवार को शिवम रोड स्थित निवास ‘सुख विहार’ में पंडित प्रियदत्त जी शास्त्री के सान्निध्य में शांति यज्ञ आयोजित किया गया।
शांति यज्ञ में भक्तराम के तीनों पुत्र तथा पुत्रवधु, सुखदा जी के पिताजी, काकाजी, मायके और ससुराल का पूरा परिवार, मुशीराबाद लातूर के लोग, तीन बहनें एवं उनका परिवार, सभी रिश्तेदार महाराष्ट्र के मुंबई, लातूर, उदगीर, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद, देगलूर, वलसाड गुजरात, आर्यसमाज के स्नेहीजन तथा मित्र गण उपस्थित रहे। महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु के चीफ जस्टिस (Retd.) श्रीमती विजया ताहीलरमानी (कापसे) एवं श्री कमलेशजी ताहीलरमानी भी परिवार को सांत्वन देने के लिए मुंबई से विशेष रूप से निवासस्थान पधारे।

इस दौरान वक्ताओं ने सुखदा की सेवाओं को याद किया और श्रद्धांजलि दी। वक्ताओं ने सुखदा की आत्मा की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि स्व सुखदा जी हंसमुख, घर पर आनेवाले हर किसी का आदरातिथ्य करनेवाली, पाक कला में निपुण अन्नपूर्णा थी। कहा कि वह पेंटिंग व सिलाई में भी रुचि रखती थी। गहन अध्ययन के साथ लिखने एवं कविताएं भी बनाने का हुनर रखती थी। पर्यटन में भी रुचि रखती थी। साथ ही में स्टार मेकर ऐप के माध्यम से गीत गाने की भी रुचि रखती थी।उन्होंने सैकड़ों गीत भी गाये। दिनभर में चलने का टारगेट पूर्ण कर ऐप के माध्यम से जरूरतमंद लोगों तक सहायता प्रदान की जाती है। उसमें भी अपना योगदान देती रही।

उन्होंने याद दिलाया कि भारत भ्रमण के अलावा फ्रांस, जर्मनी, यूके, इंग्लैंड, इटाली, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, दुबई, नेपाल ईत्यादि देशों की यात्राएं भी की थी। सुखदा हर आध्यात्मिक और आर्यसमाज के कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी। साधु संन्यासियों का उचित सम्मान कर दानपुण्य करती थी।

उन्होंने बताया कि सुखदाजी विवाह के पश्चात पारिवारिक कर्तव्यों का वहन करते हुए हिन्दी में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा द्वारा आयोजित परीक्षा में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। इस दौरान B Com व M Com पूर्ण कर कंप्यूटर साइंस का कोर्स भी किया था। हिन्दी महाविद्यालय में विद्यार्थियों को हिंदी भाषा में कंप्यूटर साइंस का ज्ञान देने हेतु अपनी सेवाएं प्रदान की।
विद्यार्थी जीवन में उन्हें कईं खेलों में पुरस्कार भी मिले थे। हाल ही में अपने पुत्र के साथ उन्होंने मैराथान में भी हिस्सा लिया था। सुखदा जी यज्ञो पवित धारण कर श्रेष्ठ कर्म यज्ञ निरंतर करती रही। पतंजलि की योग शिक्षिका भी थी।

वक्ताओं ने कहा कि ब्रम्ह मुहूर्त में ही उठकर योगमय जीवन जीती रही जो केवल परिवार के लिए आदर्श नही अपितु सम्पूर्ण समाज के लिए प्रेरणदायी था। अपने श्वसुर स्व. गंगारामजी वानप्रस्थी एवम स्व. इंद्राणी देवीजी से पाए संस्कारों को अपने जीवन में उतारकर जीवन वहन करती रही। कई बड़ी उम्र के स्वजनों ने जो स्व. सुखदा जी को जानते थे। उन्होंने कहा कि उनके कर्म इतने अच्छे थे की उनको उनके कर्मानुसार ईश्वर उनकी आत्मा को उच्च प्रति का जीवन अवश्य प्रदान करेंगे।
इससे पहले वैदिक मान्यतानुसार दिवंगत सुखदा जी की अस्थियों का चयन कर उसे पेड़ों में विसर्जित किया गया। ताकि ईश्वर निर्मित जलसंसाधनों का प्रदूषण ना हो। यह समाज के लिए अनुकरणीय और हित में किया गया।