हैदराबाद : पेरिस ओलिंपिक 2024 में महाराष्ट्र के निशानेबाज स्वप्निल कुसाले ने पुरूषेां की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशंस में भारत को पहली बार कांस्य पदक जीता है। क्वालीफिकेशन में सातवें नंबर पर रहे स्वप्निल ने आठ निशानेबाजों के फाइनल में 451.4 स्कोर करके तीसरा स्थान हासिल किया। भारत का इन खेलों में यह तीसरा कांस्य है। इससे पहले मनु भाकर ने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल और सरबजोत सिंह के साथ 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम वर्ग में कांस्य जीता है। भारत के ओलिंपिक इतिहास में पहली बार निशानेबाजों ने तीन पदक एक ही खेलों में जीते हैं।
साथ ही चीन के लियू युकुन (463.6) ने स्वर्ण और यूक्रेन के सेरही कुलिश (461.3) ने रजत पदक जीता। पिछली बार भारतीय निशानेबाज लंदन ओलिंपिक 50 मीटर राइफल में फाइनल में पहुंचा था जब जॉयदीप करमाकर 50 मीटर राइफल प्रोन में चौथे स्थान पर रहे थे। नीलिंग में उनका पहला शॉट 9.6 रहा लेकिन उन्होंने शानदार वापसी की। इसके बाद 10.6 और 10.3 स्कोर करके वह दूसरे नंबर पर पहुंचे लेकिन अगले दो शॉट 9.1 और 10.1 रहे जिससे वह चौथे स्थान पर आ गए। फिर 10.3 स्कोर करके वह तीसरे स्थान पर पहुंचे और अंत तक बने रहे। वह नीलिंग पोजिशन के बाद छठे स्थान पर थे लेकिन प्रोन के बाद पांचवें स्थान पर आ गए। पिछले 12 साल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे कुसाले को ओलिंपिक पदार्पण के लिये 12 साल तक इंतजार करना पड़ा। धोनी की ही तरह ‘कूल’ रहने वाले कुसाले ने विश्व कप विजेता क्रिकेट कप्तान पर बनी फिल्म कई बार देखी।
उन्होंने क्वालीफिकेशन के बाद कहा था, “मैं निशानेबाजी में किसी खास खिलाड़ी से मार्गदर्शन नहीं लेता। लेकिन अन्य खेलों में धोनी मेरे पसंदीदा हैं। मेरे खेल में भी शांतचित्त रहने की जरूरत है और वह भी मैदान पर हमेशा शांत रहते थे। वह भी कभी टीसी थे और मैं भी हूं।” कुसाले 2015 से मध्य रेलवे में काम करते हैं। उनके पिता और भाई जिला स्कूल में शिक्षक हैं और मां गांव की सरपंच हैं। उन्होंने अपने प्रदर्शन पर कहा, “अभी तक अनुभव बहुत अच्छा रहा है। मुझे निशानेबाजी पसंद है और मुझे खुशी है कि इतने लंबे समय से कर पा रहा हूं। मनु भाकर को देखकर आत्मविश्वास आया है। वह जीत सकती है तो हम भी जीत सकते हैं।”
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स्वप्निल कुसाले के बारे में खास और रोचक जानकारी
शूटिंग बेहद खर्चीला खेल होता है। राइफल और अन्य उपकरणों पर काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं। अभ्यास में दागे जाने वाली हर गोली पर भी खर्च करना पड़ता है। एक समय था जब प्रैक्टिस के लिए गोलियां खरीदने के लिए स्वप्निल के पास पूरे पैसे नहीं थे। यह जानने के बाद पिता ने कर्ज लेकर अपने बेटे को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया था। तब समय एक बुलेट की कीमत 120 रुपये होती थी।
ओलिंपिक कांस्य पदक विजेता स्वप्निल कुसाले के माता-पिता ने कहा कि उन्हें यकीन था कि उनका बेटा तिरंगे और देश के लिए पदक जीतेगा। स्वप्निल के शिक्षक पिता ने कोल्हापूर में पत्रकारों से कहा, “हमने उसे उसके खेल पर फोकस करने दिया और कल फोन भी नहीं किया। पिछले दस बारह साल से वह घर से बाहर ही है और अपनी निशानेबाजी पर फोकस कर रहा है, उसके पदक जीतने के बाद से हमें लगातार फोन आ रहे हैं।” गांव की सरपंच और स्वप्निल की मां ने कहा, “वह सांगली में पब्लिक स्कूल में था, तब से निशानेबाजी में उसकी रूचि जगी। बाद में वह ट्रेनिंग के लिए नासिक चला गया।
स्वप्निल कुसाले मैचे के बाद कहा कि मैने कुछ खाया नहीं है और पेट में गुड़गुड़ हो रही थी। मैंने ब्लैक टी पी और यहां आ गया। हर मैच से पहले रात को मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं। आज दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था। मैने श्वास पर नियंत्रण रखा और कुछ अलग करने की कोशिश नहीं की। इस स्तर पर सभी खिलाड़ी एक जैसे होते हैं। मैने स्कोरबोर्ड देखा ही नहीं। यह मेरी बरसों की मेहनत थी और मैं बस यही सोच रहा था। मैं चाहता था कि भारतीय समर्थक मेरी हौसलाअफजाई करते रहें।’
आपको जानकर हैरानी होगी कि स्वप्निल कुसाले भी महान क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की ही तरह भारतीय रेलवे में टिकट क्लेक्टर हैं। धोनी की ही तरह स्वप्निल को भी खेल के दौरान शांत रहना पसंद है। महाराष्ट्र के कोल्हापूर के कंबलवाड़ी गांव के रहने वाले 29 वर्ष के कुसाले 2012 से अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में खेल रहे हैं, लेकिन ओलिंपिक डेब्यू के लिए उन्हें 12 साल इंतजार करना पड़ा। धोनी की ही तरह ‘कूल’ रहने वाले कुसाले ने विश्व कप विजेता क्रिकेट कप्तान पर बनी फिल्म कई बार देखी। कुसाले 2015 से मध्य रेलवे में काम करते हैं, उनके पिता और भाई जिला स्कूल में शिक्षक हैं और मां गांव की सरपंच हैं। (एजेंसियां)