खून से लथपथ आंदोलन: कब रुकेगी नक्सल-पुलिस हिंसा..? (भाग-7), नक्सली आंदोलन में यह ‘युद्ध’ विराम का दौर है

[नोट- हमारे खास मित्र और तेलुगु दैनिक ‘निर्देशम’ के मुख्य संपादक याटकर्ला मल्लेश ने खून से “लथपथ” आंदोलन: कब रुकेगी नक्सल-पुलिस हिंसा..? को धारावाहिक प्रकाशित करने की अनुमति दी है। इसके लिए हम उनके आभारी है। विश्वास है कि पाठकों और शोधकर्ताओं को ये रचनाएं लाभादायक साबित होगी।]

तेलुगु दैनिक ‘निर्देशम’ के मुख्य संपादक याटकर्ला मल्लेश की कलम से…

नक्सली आंदोलन में ‘युद्ध’ विराम है, समाप्ति नहीं

दो बंदुकों के बीच यह केवल ‘युद्ध’ विराम है। यह संपूर्ण संघर्ष विराम नहीं है। नक्सली गतविधि, हमले, प्रति हमले रुक जाने को पूर्ण विराम नहीं कहा जा सकता है। यह विराम केवल दुश्मन के चतुराईपूर्ण आक्रमण से अभिभूत होने की भावनात्मक स्थिति है। हां, यह बात सही है कि नक्सली आंदोलन को इस स्थिति में धकेलने में प्रशासन पूरी तरह से सफल रही है। चाहे इससे कोई सहमत हो या नहीं, प्रशासन मात्र तेलंगाना में नक्सली आंदोलन को दबाने में बड़ी सफलता हासिल की है। प्रशासन ने एक साथ युद्ध, दुष्प्रचार, प्रलोभन और विश्वासघात की सभी रणनीतियां अपनायी है। इनमें साम, दान, भेद और दंड उपाय भी शामिल है। दूसरी ओर नक्सलियों ने केवल अपनी विचारधारा और संघर्ष मार्ग पर विश्वास किया। परिणामस्वरूप उसे बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

चाहे कोई भी आंदोलन हो या युद्ध, इस प्रकार के विराम से एक राहत जरूर मिलती है। साथ ही इस प्रकार के विराम से जो कुछ हुआ है उसकी समीक्षा करने का मौका मिलता है और भविष्य के लिए नया आकार भी दिया जा सकता है। सच में देखा जाये तो किसी भी आंदोलन में कोई विराम या अल्पविराम नहीं होता है और होना भी नहीं चाहिए। हालांकि, प्रशासन की नजर में हमलें, हत्याएं, बारूदी सुरंग विस्फोट होते रहते हैं तो आंदोलन जारी है। प्रशासन को यह भी सोचना चाहिए कि यदि ये सब नहीं हो रहे है तो इसका मतलब यह नहीं है कि नक्सली आंदोलन रुक गया है।

प्रशासन की नजर में नक्सली आंदोलन कानून और व्यवस्था की समस्या है। जब यह समस्या उत्पन्न होती है तो वह मैदान में उतरती है। परिस्थितियों के आधार पर यह एक जटिल कानूनी समस्या बनकर सामने आ जाती है। फिर भी फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। यह चाहे किसी भी रूप में आये या दिखाई दें, उसका लक्ष्य एक ही होता है और वह है उसका स्वभाव, उसका लक्ष्यण और इस व्यवस्था का संरक्षण करना मात्र है। जब तक यह शांत रहते है तो किसी भी आंदोलन के लिए चुनौती नहीं हो सकते हैं। इसीलिए प्रशासन सोचता है कि यदि ‘कार्रवाई’ बंद हो जाती तो आंदोलन को दबा दिया जाएगा। जहां तक आंदोलन और आंदोलनकारियों की बात कर तो गतिविधियों को रोकना आंदोलन समाप्त करना नहीं है। न ही गतिविधियां जारी रखना ही आंदोलन होता है। यह एक निरंतर प्रक्रिया है।

युद्ध विराम

यह वह समय है जब भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) माओवादी अपनी केंद्रीय समिति के नेतृत्व में अपनी (नक्सल) आंदोलन की विस्तृत समीक्षा कर रही है। बदलते दौर में नक्सलियों पर सख्ती से नकेल कसने वाली पुलिस का पलड़ा भारी हो गया है। केंद्र सरकार दंडकारण्य को नक्सलियों का गढ़ मानती है। इसीलिए वहां केंद्रीय पुलिस बल तैनात कर नक्सलियों को पकड़ने की मुहिम चला रही है। ऐसे समय में नक्सलियों को अपने आंदोलन के बारे में एक बार फिर से सोचने की जरूरत आ गई है। क्योंकि एक ओर केंद्र सरकार ऑपरेशन कगार के नाम पर नक्सलियों का सफाया करने पर तुली है। ऐसे मौके पर में बहस चल रही है कि क्या माओवादी केंद्रीय समिति बदलते परिणामों के साथ अपना रुख बदलती है या नहीं। खबर है कि अब तक माओवादियों ने ताजा हालात पर सभी पहलुओं पर विस्तार से और बिना किसी संकोच के चर्चा की है। इस चर्चा में अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रचार, निर्माण, प्रतिरोध और प्रतिशोध शामिल है। इसमें गलतियों पर खुलकर चर्चा की गई है।

संयुक्त आंध्र प्रदेश में समानांतर सरकार

एक जमाने में माओवादियों ने संयुक्त आंध्र प्रदेश में समानांतर सरकार चलाई थी। हालांकि, पुलिस प्रतिबंधों के चलते अब उस तरह के समानांतर सरकार आंध्र प्रदेश और तेलंगाना क्षेत्रों में नहीं चल रहे है। क्योंकि नक्सलियों की हलचल की सूचना मिलते ही सीमावर्ती राज्यों की पुलिस और हजारों केंद्रीय पुलिस बल के जवान जंगलों की तलाशी अभियान कर रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण तेलंगाना में केसीआर और रेवंत रेड्डी की सरकारों के दौर में किये गये अनेक एनकाउंटर ही है। हालाँकि, नक्सलियों का मुख्य हथियार निरंतर आत्म-चिंतन करना है। केंद्र सरकार की ओर से जारी ऑपरेशन कगार और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में नक्सली गतिविधियों में कमी के चलते नक्सलियों ने आत्म-चिंतन किया है।

एक ओर केंद्रीय सुरक्षा बल नक्सल को पकड़ के लिए तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। दूसरी ओर माओवादी केंद्रीय समिति को नीचले स्तर के कैडर के बीच संपर्क न हो इसके लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इससे पहले माओवादी केंद्रीय समिति के सचिव के रूप में कार्य कर चुके मुप्पल्ला लक्ष्मण राव उर्फ ​​गणपति के पुलिस के सामने आत्मसमर्पण की खबर लीक करने वाली केंद्रीय खुफिया एजेंसी की बात झूठ साबित हो गई। हालांकि, केंद्र सरकार कैसे भी माओवादी शीर्ष नेताओं को मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाने और आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रही है।

दूसरी ओर, सख्त प्रतिबंध के जरिए नक्सली अपनी गतिविधियां न चला पाये इसीलिए जंगलों में कोंबिंग ऑपरेशन चला रही है। केंद्र सरकार सोच रही है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जिस तरह से नक्सली गतिविधियों को खत्म किया गया है वही नीति अपनाकर पूरे देश में माओवादियों को खत्म करने की रणनीति का उपयोग किया जाये। शीर्ष माओवादियों ने कैडर को सुझाव दिया है कि बदल रही परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसे अपने पक्ष में मोड़े और पार्टी के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करें। दुश्मन से हमेशा सतर्क रहें। माओवादियों ने आंदोलन में उत्पन्न विभिन्न प्रवृत्तियों की समीक्षा करते हुए आंदोलन चलाने में अनेक कमियों और प्रवृत्तियों की ओर इशारा भी किया है। इस दौरान शीर्ष माओवादी नेताओं ने यह भी कहा है कि नौकरशाही, संप्रदायवाद, कानूनवाद, व्यक्तिगत कार्यशैली, स्वच्छंदता, अवलोकन की कमी और अध्ययन की कमी जैसी समस्याएं हैं।

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నక్సల్స్‌ ఉద్యమం విరామం.. విరమణ కాదు…

బాణానికి.. బాణానికి మధ్య విరామం.. యుద్ధ విరమణ కాదు.. కదలికలు, చర్యలు, దాడులు, నిలిచి పోవడం ఉద్యమ విరమణా కాదు. శత్రువు తెలివిగా దెబ్బ కొట్టినపుడు దిగ్రాంతితో కలిగే భావాతీత పరిస్థితి. ఈ పరిస్థితిలోకి ఉద్యమాన్ని నెట్టివేయడంలో రాజ్యం నిస్సందేహంగా విజయమే సాధించింది. ఎవరు అంగీకరించినా లేకున్నా.. తెలంగాణ ప్రాంతంలో ఉద్యమాన్ని నీరు గార్చడంలో రాజ్యం గొప్ప విజయమే సాధించింది. యుద్ధం, ప్రచారం, ప్రలోభం, ద్రోహం సహా సామ, దాన, భేద, దండోపాయాలన్నిటినీ రాజ్యం ఏక కాలంలో ప్రయోగించింది. మరోవైపు ఉద్యమకారులు సిద్దాంతం, పోరాటం అనే ఏకైక విధానాన్నే నమ్ముకున్నారు. ఫలితంగా అనేక నష్టాలు ఎదుర్కొన్నారు.

ఉద్యమమైనా యుద్ధమైనా విరామంలో ఒక వెసులుబాటు ఉంటుంది. జరిగింది సమీక్షించుకోవడం.. భవిష్యత్‌ను రూపొందించుకోవడం.. నిజానికి ఉద్యమానికి విరామాలు కామాలు ఉండవు. అయితే రాజ్యం దృష్టిలో దాడులు, హత్యలు, మందుపాతరలు, పేల్చివేతలు ఉన్నప్పుడు ఉద్యమం ఉన్నట్లు లేనట్టయితే ఉద్యమం నిలిచిపోయినట్లు కాదు. దానికి సంబంధించినంత వరకూ ఉద్యమం శాంతిభద్రతల సమస్యే. ఆ సమస్య ఏర్పడినప్పుడే అది రంగంలోకి వస్తుంది. పరిస్థితులను బట్టి అది కల్లొలిత చట్టమై వస్తుంది. బూటకపు ఎన్‌కౌంటరై వస్తుంది. ఏ రూపంలో వచ్చినా దాని లక్ష్యం ఒక్కటే. దాని స్వభావాన్ని, లక్షణాలని, వ్యవస్థను పరిరక్షించడం. అవి చల్లగా ఉన్నంత వరకూ ఏ ఉద్యమమూ దానికి సవాలు కాదు. అందుకే ‘చర్యలు’ ఆగిపోతే ఉద్యమాన్ని అణచివేయగలిగామని భావిస్తుంది. కానీ, ఉద్యమానికి ఉద్యమకారులకు సంబంధించినంత వరకూ చర్యలు ఆపడం ఉద్యమ విరమణ కాదు. చర్యలే ఉద్యమం కాదు.

‘‘విరామం’’

అనబడే ఈ సమయంలోనే భారత కమ్యూనిష్టు పార్టీ (మార్క్సిస్ట్‌`లెనినిస్ట్‌) మావోయిస్టు కేంద్ర కమిటీ ఆధ్వర్యంలో ‘నక్సల్స్‌’ ఉద్యమాన్ని విసృతంగానే సమీక్షిస్తోంది. మారిన కాలంలో నక్సలైట్లపై ఉక్కుపాదంతో అణిసివేస్తున్న పోలీసులదే పై చెయిగా మారింది. దండకారణ్యం నక్సలైట్లకు కేంద్రంగా భావించిన కేంద్ర ప్రభుత్వం కేంద్ర పోలీసు బలగాలను దింపి జల్లెడ పడుతున్నాయి. అయినా.. ఇలాంటి సమయంలో నక్సలైట్లు పు:న ఆలోచించాల్సిన అవసరం ఉంది. ఒకవైపు కేంద్ర ప్రభుత్వం నక్సలైట్ల అడ్రసు లేకుండా చేయాలని కంకణం కట్టుకుంది. ఈ సందర్భంలో మావోయిస్టు కేంద్ర కమిటీ మారుతున్న కాలంలో తమ పంథాను మార్చుకుంటుందా లేదా అనేది చర్చ. ఇంతకు వరకు మావోయిస్టులు తాజా పరిస్థితులపై అధ్యయనం, శిక్షణ, ప్రచారం, నిర్మాణం, ప్రతిఘటన, చర్య ఇలా అన్ని అంశాలనూ విపులంగానూ, భేషజాలు లేకుండానూ చర్చించుకున్నట్లు తెలుస్తోంది. తప్పులను నిర్మొహమాటంగా చర్చకు పెట్టింది.

ఉమ్మడి ఆంధ్రప్రదేశ్ లో..

ఒకప్పుడు ఉమ్మడి ఆంధ్రప్రదేశ్ లో మావోయిస్టులు పోటీ ప్రభుత్వం నిర్వహించారు. కానీ.. కాలక్రమేణ పోలీసు నిర్బంధంతో తాత్కలికంగా ఆ ఉద్యమం ఆంధ్రప్రదేశ్, తెలంగాణ ప్రాంతాలలో కనిపించడం లేదు. నక్సల్స్ దళాలు సంచరిస్తున్నాయనే సమాచారం రాగానే సరిహద్దు రాష్ట్రాల పోలీసులు, వేలాది కేంద్ర పోలీసు బలగాలు అడవులను గాలిస్తున్నాయి. అందుకు తాజా ఉదాహరణ కేసీఆర్, రేవంత్ రెడ్డి ప్రభుత్వాల హయంలో తెలంగాణలో జరిగిన ఎన్ కౌంటర్ లే నిదర్శనం. అయితే.. నక్సల్స్ ఎప్పటికప్పుడు ఆత్మవిమర్శ చేసుకోవడం వారి ముఖ్య ఆయుధం. ఇప్పటికే కేంద్ర ప్రభుత్వం చేపట్టిన నిర్భంద కాండతో పాటు ఆంధ్రప్రదేశ్, తెలంగాణ రాష్ట్రాలలో నక్సల్స్ కార్యకలపాలు లేక పోవడానికి గల కారణాలను ఆత్మవిమర్శ చేసుకున్నట్లు తెలుస్తోంది.

ఒకవైపు కేంద్ర బలగాలు దూసుకు పోతున్నప్పటికీ మావోయిస్టు కేంద్ర కమిటీకి కింది స్థాయి కేడర్ కు మధ్య సంబందాలు లేకుండా చూడాలని విశ్వ ప్రయత్నాలు చేస్తోంది. గతంలో మావోయిస్ట్ కేంద్ర కమిటీ కార్యదర్శిగా పని చేసిన ముప్పాల్ల లక్ష్మణరావు అలియాస్ గణపతి పోలీసులకు లొంగి పోతున్నట్లు పత్రికలకు లీక్ లు ఇచ్చిన కేంద్ర ఇంటిలిజెన్స్ వ్యూహం దెబ్బ తింది. అయితే.. అగ్రనేతలను ఎలాగైనా మానసికంగా దెబ్బ తీసి లొంగ తీసుకోవాలని ఒకవైపు కేంద్ర ప్రభుత్వం ప్రయత్నిస్తోంది. మరోవైపు తీవ్ర నిర్బంధం ద్వారా నక్సల్స్ కార్యకలపాలను నిర్వహింసకుండా అడవులను జల్లెడ పడుతుంది. అయితే.. ఇప్పటికే ఆంధ్రప్రదేశ్, తెలంగాణ రాష్ట్రాలలో నక్సల్స్ కార్యకలపాలు లేకుండా చేయడానికి గల కారణాలను పరిశీలించి అదే ఎత్తుగడతో దేశ వ్యాప్తంగా మావోయిస్టులను లేకుండా చేయాలని కేంద్ర ప్రభుత్వం భావిస్తోంది.

అయినా.. మావోయిస్టులు మారుతున్న పరిస్థితులను తమకు అనుకూలంగా మలుచుకుని నిర్మాణంపై దృష్టి సారించాలని సూచించింది. శత్రువుపై నిరాంతరం జాగ్రత్త పడాలని చెప్పింది. ఉద్యమంలో తలెత్తిన వివిధ ధోరణులను సమీక్షిస్తూ ఉద్యమం నడపడంలో అనేక లోపాలను ధోరణులను ఎత్తి చూపారు. బ్యూరక్రసీ, సెక్టేరియనిజం, లీగలిజం, వ్యక్తిగత పని విధానం, స్పాంటేనిటీ, పరిశీలనా లోపం అధ్యయన లోపం వంటి సమస్యలు ఉన్నాయని పేర్కొన్నారు మావోయిస్టు నక్సల్స్ అగ్రనేతలు.

(8వ ఎపిసోడ్ లో కలుద్దాం..)

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