कादंबिनी क्लब हैदराबाद: ‘समकालीन परिदृश्य में व्यंग्य’ विषय पर डाला गया प्रकाश

हैदराबाद : कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 359 वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन डॉ मदन देवी पोकरणा की अध्यक्षता में गूगल मीट पर सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर प्रथम सत्र के आरंभ में वरिष्ठ साहित्यकार व आनंद ऋषि साहित्य निधि पुरस्कार के सहकार्यदर्शी स्वर्गीय मदनलाल मरलेचा को क्लब की ओर से 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र एवं कार्यकारी संयोजिका मीना मुथा ने आगे बताया कि निराला रचित सरस्वती वंदना कीं प्रस्तुति शुभ्रा महंतों ने दी। क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र ने उपस्थित मुख्य वक्ता डॉ गिरीश पंकज (छत्तीसगढ़), डॉ सरोज गुप्ता (सागर), राजेन्द्र मिलन (आगरा) व पटल पर उपस्थित साहित्यकारों का शब्द कुसुमों से स्वागत करते हुए कहा कि क्लब 29 वें वर्ष में पदार्पण कर चुका है। क्लब का उद्देश्य रहा है कि हिन्दी साहित्य कि सेवा, पठन पाठन की वृत्ती को बढ़ाना, नवांकुरों को लेखन के लिए प्रेरित करना। आज सभी महानुभावों को जोड़कर हमें खुशी हो रही है।

संगोष्ठी सत्र के संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली) ने कहा कि आज हमारे बीच डॉक्टर गिरीश पंकज, ‘समकालीन परिदृश्य में व्यंग्य’ विषय पर अपनी बात रखेंगे। अवधेश ने डॉक्टर गिरीश का परिचय देते हुए कहा कि गिरीश जी की कर्मभूमि छत्तीसगढ़ रही है। कई पत्रिकाओं का आपने संपादन किया है। उपन्यास, व्यंग्य संग्रह, गजल संग्रह, आपके नाम है। कई अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय पुरस्कारों से आपको नवाजा गया है। कई भाषाओं में आपके संग्रह का अनुवाद हुआ है। कई विदेश यात्राएं आपने की है। व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में डॉक्टर गिरीश पंकज एक जाना माना व्यक्तित्व है।

डॉ गिरीश पंकज ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यंग्य के माध्यम से हम बेबाक तरीके से अपनी बात रख सकते हैं । व्यंग्य खरी खरी कहता है। व्यंग्य की शुरुआत कबीरदास से हुई है। उस जमाने में उन्हें खरी खरी सुनाने पर बहुत कुछ झेलना पड़ा। तुलसीदास की रचनाओं में व्यंग्य देखने को मिलता है। देश हमारा गुलाम था पर जब जब देश को जरूरत पड़ी है व्यंग्यकारों ने साथ दिया है। गोदान तक की रचनाओं को देखें तो व्यंग्य झलकता है।

हरिशंकर परसाई, प्रेमचंद, शारदा जोशी, भारतेंदु का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत को समझना है तो व्यंग्य इकलौती विधा है। आत्म परिष्कार की चीज है व्यंग्य। आजकल हड़बड़ी में लिखा जाने वाला व्यंग्य आ रहा है। व्यंग्य और हास्य अलग है। व्यंग्य में हास्य का साथ जरूरी है। करुणा की कोख से व्यंग्य निकलता है। कविता अपनी बात करती है और व्यंग्य प्रहार करता है। लघुकथा की तो बुनियादी ही व्यंग्य है। व्यंग्य लेखन सामान्य विधा नहीं है। अगर व्यंगकार डर गया तो हास्य लिखने लगेगा।

अवधेश ने प्रश्न किया कि वर्तमान में सहिष्णुता खत्म हो रही है और कट्टरता बढ़ती जा रही है, ऐसी स्थिति में आप का विचार क्या है और व्यंग्य लेखन में महिलाओं की सहभागिता पर भी अपने विचार दें। डॉ गिरीश ने कहा कि मौका आने पर व्यंग्यकार को सामने आना चाहिए। व्यंग्य वह चाकू है जो ऑपरेशन भी कर सकती है और वार भी कर सकती है। रचनाकार के विवेक पर है कि वह किस प्रकार स्थितियों को भाँपता है। महिलाओं की भावनाएं कोमल होती है, वह कठोर होकर नहीं लिख सकती। व्यंग्य दिल दुखाने वाली विधा है। फिर भी आजकल महिलाएं व्यंग्य लेखन में आगे आ रही हैं। सूर्यबाला, स्नेह लता पाठक आदि अच्छा लिख रही हैं। भारतीय परिवेश के लेखन में स्वच्छंदता नहीं होनी चाहिए। महादेवी वर्मा को पढ़ें और संतुलन बनाकर लिखें। सत्य के पक्ष में लिखना ही व्यंग्य की आत्मा है।

राजेंद्र मिलन, डॉक्टर सरोज गुप्ता, डॉक्टर रमा द्विवेदी, सुनीता लुल्ला आदि ने व्यंग्य विधा के उद्बोधन को सार्थक बताया। डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने कहा कि डॉ गिरीश अपनी व्यस्तता में भी इस विषय पर सारगर्भित बात रख पाए हैं। उनका बहुत आभार। डॉक्टर मदन देवी पोकरणा ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि डॉ गिरीश ने हमें आज व्यंग्य व हास्य में क्या फर्क है बताया। व्यंग्य लेखक समाज और राष्ट्र को बदलने की ताकत रखता है इस ओर भी ध्यान दिलाया है। निश्चित ही यह सत्र सार्थक रहा है। अवधेश कुमार सिन्हा ने संगोष्ठी सत्र के समापन पर वक्ता के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। अध्यक्षता डॉ सरोज गुप्ता (साहित्यकार, सागर) ने की। इसमें डॉ गिरीश पंकज, किरण सिंह, राजेंद्र मिलन, प्रदीप भट्ट, मोहिनी देवी, दर्शन सिंह, भावना पुरोहित, शिल्पी भटनागर, डॉ सुरभी दत्त, रामदास कामत, विनोद गिरी अनोखा, संतोष कुमार रजा, डॉ रमा द्विवेदी, चंद्र प्रकाश दायमा, सुनीता लुल्ला, संपत देवी मुरारका, डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, रमाकांत श्रिवास, सीताराम माने, जी परमेश्वर, डॉक्टर अहिल्या मिश्र, मीना मुथा ने काव्य पाठ किया।

अध्यक्षीय टिप्पणी में डॉक्टर सरोज गुप्ता ने कहा कि विभिन्न विधाओं के रंग देखने सुनने को मिले । कविता, गीत, गजल, दोहे, मुक्तक, भोजपुरी गीत, लघुकथा, हाईकु, आदि समसामयिक विषयों पर साहित्यकारों ने अपनी प्रतिभा दर्शाई। सभी को सुनकर आनंद आया। हैदराबाद में चल रही यह महत्वपूर्ण गतिविधी डॉक्टर अहिल्या मिश्र के निर्देशन में 3 दशक पूर्ण करने जा रही है। क्लब से जुड़कर मुझे बेहद खुशी हुई है। डॉक्टर सरोज ने अपनी रचना प्रस्तुति के साथ अपनी बात को विराम दिया। मीना मुथा ने संचालन की जिम्मेदारी संभाली। डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ ने तकनीकी सहयोग देते हुए उपस्थित सभा के प्रति आभार व्यक्त किया। साहित्यिक क्षेत्र में जिन सदस्यों को सम्मान मिले हैं क्लब की ओर से उन्हें बधाई दी गई। राजेंद्र तिवारी दर्शक के रूप में उपस्थित हुए।

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