द्वारका शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य का निधन, प्रधानमंत्री ने किया गहरा शोक व्यक्त

हैदराबाद: द्वारका शारदा पीठ और ज्योतिर्मठ के जगतगुरु शंकराचार्य का निधन हो गया। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 साल की उम्र में परमेश्वर में एकाकार हो गये। नरसिंहपुर के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में रविवार को दोपहर अंतिम सांस ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंकराचार्य के निधन पह गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। शोक के इस समय में उनके अनुयायियों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति!

बताया गया कि वह लंबे समय से अस्वस्थ थे। गौरतलब है कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने आजादी की आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। इस दौरान वो जेल भी गये थे। इसके अलावा राम नगरी अयोध्या में बन रहे राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी। हाल ही में हरियाली तीज बीता है। उसी दिन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्मदिन भी था। उनका 99 वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। खास बात ये है कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारका एवं ज्योतिर्मठ दोनों मठों के शंकराचार्य थे।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म देश की आजादी से पहले 2 सितंबर सन 1924 में मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के छोटे से गांव दिघोरी में हुआ था। उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और माता का नाम गिरिजा देवी था। घर परिवार और माता-पिता की तरफ से उन्हें पोथीराम उपाध्याय नाम दिया गया। तब पोथीराम ने मात्र 9 साल की उम्र में घर बार छोड़ दिया। घर छोड़कर उन्होंने धर्म यात्राएं शुरू कर दी। धर्म यात्रा के दौरान वह वाराणसी पहुंचे। यहां पर उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग से शास्त्रों की शिक्षा ली।

इसी समय भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने की आजादी की लड़ाई चल रही थी। आजादी के लिए लोग अपनी जान न्योछावर कर रहे थे। तब काशी भी इसका बहुत बड़ा गढ़ था। स्वामी भी इससे अछूते नहीं रहे। सन 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया गया, तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। मात्र 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में जाने जाने लगे।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को वाराणसी में 9 महीने और मध्यप्रदेश में 6 महीने जेल में रहे। करपात्री महाराज से शिक्षा लेने के बाद वह उनके राजनीतिक दल ‘राम राज्य परिषद’ में भी शामिल हो गये। इस राजनीतिक दल के वह अध्यक्ष भी रहे। 1950 में वह दंडी संन्यासी बन गये। 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली। साल 1950 में शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दंडी-सन्यास की दीक्षा ली। इसके बाद वह स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हो गये। (एजेंसियां)

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