हैदराबाद : हिन्दी विभाग उस्मानिया विश्वविद्यालय, हिन्दी विभाग विवेकानंद शासकीय महाविद्यालय (स्वा) एवं शासकीय महाविद्यालय सीताफलमंडी के संयुक्त तत्वावधानमें ‘अनुवाद- बदलते परिप्रेक्ष्य और उभरती संभावनाएँ’ विषय पर त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का बुधवार को भव्य उद्घाटन किया गया। संगोष्ठी के आयोजक महाविद्यालयों के प्राचार्य प्रो. एम. रामचन्द्रम एवं प्रो. के प्रभु ने अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी की दिशा की ओर संकेत किया।
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उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो. जी यादगिरि, संयुक्त निदेशक सीसीई, तेलंगाना सरकार, सम्माननीय अतिथि, संयुक्त निदेशक सीसीई, तेलंगाना राज्य सरकार, प्रो. बाल भास्कर, एजीओ सीसीई , विशिष्ट अतिथि उस्मानिया विश्वविद्यालय, आर्ट्स कालेज के प्राचार्य प्रो. सी. कासिम, प्रो. सर्राजु, शासी परिषद सदस्य, केन्द्रीय हिन्दी शिक्षण मंडल, आगरा, प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रोफेसर डीएसआर राजेंद्र सिंह, दिगंबर कवि निखिलेश्वर, शिक्षाविद् डॉ अहिल्या मिश्रा, प्रो अनुपमा, प्रो नाना साहेब यशवंत राव गोरे, प्रो माया देवी और अन्य वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किया।
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इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि एक भाषा का अनुवाद अन्य भाषाओं के लोगों को जोड़ती है। उनकी खायी मिटाती है। अनुवाद से भाषा का विकास होता है। ज्ञान प्राप्त होता है। एक दूसरों की संस्कृति और परंपरा को समझने के लिए अनुवाद की आवश्यकता होती है। अनुवाद से विभिन्न प्रांतों के लोगों को एक सूत्र में बांधती है। अनुवाद भाषा सेतु का कार्य करती है। वैश्विक समाज की भाषा को समझने के लिए अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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वक्ताओं ने बल दिया कि हिंदी भाषा के अनुवाद कार्य से छात्रों का भविष्य उज्जवल है। अनुवाद की बाजार में अच्छी मांग है। मस्तिष्क और दिल से किया जाने वाला अनुवाद ही सही अर्थ और संदेश दे सकता है। अनुवाद के छात्रों को इस पर अधिक ध्यान रखना चाहिए।
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साहित्यकारों ने आगे कहा कि रामायण के तीन सौ भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यदि गीतांजलि का अनुवाद नहीं होता तो देश का सर्वोच्च पुरस्कार नहीं मिल पाता। अनुवाद करने वालों को मूल भाषा और अनुवाद भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। देश के संस्कृति को जानने के लिए उस प्रांतीय भाषा का अनुवाद होना जरूरी है। बिना अनुवाद के समाज को समझ पाना काफी मुश्किल है। अनुवाद का अर्थ है- एक घर से दूसरे घर में पहुंचना है। पुनर्वास करना है। बदलते परिप्रेक्ष्य में एआई ने प्रवेश किया है। तेलुगु से अन्य भाषाओं में अनुवाद कार्य लगभग सौ साल से जोर पकड़ा है। सभी को अनुवाद को प्रोत्साहन और सहयोग देना चाहिए। अनुवाद ही संवाद है। अनुभव और अनुभूति ही भाषा का कार्य करती है।
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वक्ताओं ने आगे कहा कि आने वाला युग अनुवादों का है। वैश्विक सांस्कृतिक का परिचय अनुवाद से ही संभव है। बिना अनुवाद के समाज अंधा, गुंगा और बहरा रह जाता है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि हर दिन एक करोड़ पुस्तकें बिकती है। विभिन्न भाषा के दस हजार करोड़ पुस्तकें बिक रही है। समाज पर साहित्य का प्रभाव पड़ता है। इसीलिए हर भाषा के साहित्य का अनुवाद होना चाहिए। अनुवाद करते समय इस बात का ध्यान होना चाहिए कि वह वर्तमान समाज से प्रेरणा लेकर समाज का मार्गदर्शन करें। सभी वक्तओं ने संगोष्ठी के आयोजन के लिए शुभकामनाएँ दीं और विषय के महत्व और प्रासंगिकता को रेखांकित किया। अबतक अनुवाद कर चुके ऐसे महान साहित्यकारों को कोटि-कोटि नमन।
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इस कार्यक्रम में ख्याति प्राप्त अनुवादकों का सम्मान किया गया। साथ ही प्रो. तुम्मला रामकृष्णा की रचना मट्टि पोय्य का श्रीमती टी. श्रीलक्ष्मी द्वारा किए गए हिन्दी- अनुवाद मिट्टी का चूल्हा- का लोकार्पण किया गया। साथ ही देवा प्रसाद मायला व श्रीमती सुरभी दत्त की पुस्तकों का भी लोकार्पण हुआ। केन्द्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी जी ने अनुवाद की नवीनतम संभावनों पर श्रोताओं को अवगत कराया। गौरतलब है कि यह अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आगामी 10 जनवरी तक सुबह 10 से शाम 5 बजे तक उस्मानिया विश्वविद्यालय के आर्ट्स कालेज में आयोजित की जा रही है।
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