[मिलिंद प्रकाशन के प्रबंधक श्रुतिकांत भारती को हर कोई मुख्य रूप से हिंदी भाषी साहित्यकार अच्छी तरह से जानते हैं। हालांकि 75 साल के भारती जी आजकल एक बात से बहुत दुखी है। वह दुख पारिवारिक संबंध को लेकर है। हम उनके दुख को पाठकों में बांटने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी यह कोशिश है कि यदि एक भी पाठक के दिल को उनके दुख को छू जाये तो हम समझेंगे कि हमारा प्रयास सफल हुआ।]
चार-पांच दिनों से संदेशे तो बहुत आ रहे हैं, लेकिन मेहमान कोई नहीं आया है। सोचता हूँ, ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं या ड्राइंग रूम का कंसेप्ट ही खत्म कर दूं। दो दिन से वाट्सएप और फेसबुक पर मैसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते – करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है। संदेशें आते जा रहे हैं।
बधाइयों का तांता है, लेकिन मेहमान नदारद हैं। मां, घरवाली और बहू ने आने वाले मेहमानों के लिये बहुत सारा नाश्ता बनाया पर ये क्या दूर के सगे संबंधियों, दोस्तों की तो छोड़ दें, आज के समय आसपास के खास सगे-संबंधी और पड़ोसी के यहां मिलने – जुलने का प्रचलन भी समाप्त हो गया है। ये है आज के समय की दिवाली और अन्य त्यौहार।
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अमीर रिश्तेदार और अमीर दोस्त मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते हैं, लेकिन घर पर देने वो खुद नहीं आते, बल्कि उनके यहां काम करने वाले कर्मचारी आते हैं। दरअसल घर अब घर नहीं रहे हैं। ऑफिस की तरह घर एक सिर्फ रात्रि में सोने (?) के स्थान रह गए हैं। हर दिन का एक रात्रि रिटायरिंग रूम! आराम करिए, फ्रेश होईये और सुबह वापस कोल्हू के बैल बनकर निकल जाईये…।
घर अब सिर्फ दिखावे के लिये बनाए जाते हैं, अपनेपन के लिए नहीं। घर का समाज से कोई संबंध नहीं है। मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं। हमें स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नहीं रहा है। अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा हो गया है। घर अब सिर्फ और सिर्फ महल या बंगला हो गया है। वैसे भी अब कोई भी शुभ मांगलिक कार्य और शादी-व्याह अब मेरिज हॉल में होते हैं। बर्थ-डे मैकडोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है। बीमारी में सिर्फ हॉस्पिटल या नर्सिंग होम में ही खैरियत पूछी जाती है और अंतिम यात्रा के लिए भी लोग सीधे श्मशान घाट पहुँच जाते हैं।
सच तो ये है कि जब से डेबिट-क्रेडिट कार्ड और एटीएम आ गये हैं, तब से मेहमान क्या… चोर भी घर नहीं आते हैं। चोर भी आज सोचतें हैं कि मैं ले भी क्या जाऊंगा… फ्रिज, सोफा, पलंग, लैपटॉप, टीवी…कितने में बेचूंगा इन्हें? री सेल तो OLX ने चौपट कर दी है। वैसे भी अब नगद तो एटीएम में है। इसीलिए घर पर होम डिलेवरी देनेवाला भी पिज़ा-बर्गर के साथ मशीन भी लाता है। सच तो ये है कि अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट और साज-सज्जा का ही बचा है। जी हाँ… क्या अब घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कंसेप्ट ही खत्म कर देना चाहिये… ?
इस पर विचार करियेगा… पुराने के समय की तरह ही अपने रिश्तेदारों, दोस्तों को घर पर बुलाइए और बुलाते है तो उनके यहां जाइएगा। आइए, भारत की इस महती संस्कृति को पुनः जीवित करें। जिन्हें उपरोक्त समय याद होगा, उन्हें अपने आज के बच्चों को यह सिखाना चाहिए, नहीं तो आज का बच्चा (90 के दशक के बाद का) बाकी तो ठीक सगे भाई-बहन भी नहीं मिल पाएंगे और न ही पहचान पाएंगे। आइए परिवार बनाएं, राष्ट्र और संस्कृति बचाएं।