क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था सृजन श्रृंखला की मासिक ऑनलाइन परिचर्चा आयोजित

बेंगलुरू (अमृता श्रीवास्तव की रिपोर्ट): क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने सृजन श्रृंखला के क्रम में देश-विदेश के विभिन्न कोनों से जुड़े अपने स्थापित रचनाकारों के साथ हाल में ही अपनी मासिक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया। परिचर्चा को बेंगलुरु के रचनाकार मौसम कुमरावत जी के साथ बढ़ाया गया|

गौरतलब है कि मौसम कुमरावत हिन्दी के नवोदित कवि हैं। मौसम कुमरावत मुख्य रूप से मुक्तक (श्रृंगार रस) व गीत लिखते हैं। मौसम कुमरावत कई मंचों पर काव्यपाठ कर चुके हैं और यह सफ़र अब भी जारी है। मौसम स्वयं को कवि ना मानते हुए कहते हैं कि वे साहित्य के अदने से विद्यार्थी है। मौसम कुमरावत सनावद (इन्दौर), म.प्र. के निवासी है और जीविकोपार्जन हेतु बेंगलुरु (कर्नाटक) में कार्यरत हैं। साथ ही वे समाजसेवी संस्था ‘शेयर किताब’ व साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों की संस्था ‘हुनर – दिखाएं दुनिया को हुनर’ के संस्थापक भी है।

परिचर्चा का उद्देश्य

क्रिएटिव माइंड द्वारा शुरू की गयी इस सृजन श्रंखला का उदेश्य रचनाकारों की सृजनात्मक यात्रा को पाठको एवं नवोदित रचनाकारों के सामने लाना हैं जिससे उनकी यात्रा में आये उतार चढ़ाव और प्रेरणादायी प्रसंगो को सुनकर रचनाकार अपने विचारों के आत्ममंथन के लिए प्रेरित हो सके, साथ ही स्थापित रचनाकारों से जुड़कर उनसे कुछ सीखने का अवसर प्राप्त कर सकें। इस परिचर्चा का संचालन डॉ यास्मीन अली के कुशल हाथों में रहा।

सृजन श्रृंखला की सराहना

मौसम कुमरावत ने क्रिएटिव माइंड की सृजन श्रृंखला की सराहना करते हुए कहा कि जब करोना महामारी के आरम्भिक काल में सारे कार्यक्रम ठप्प पड़े थे तब सृजन में ऑनलाइन परिचर्चा के तहत वर्चुअल लाइव के साथ साहित्यकारों को जोड़कर एक सराहनीय कदम उठाया था। करोना काल में लगातार साहित्यकारों को मंच प्रदान करते रहना रचनाकारों और श्रोताओं में सकारात्मकता को बनाये रखने जैसा था।

साहित्य के प्रति प्रारम्भिक रुझान

कक्षा पांच में जब उनकी लिखी कविता पुरस्कृत की गयी तभी से साहित्य के प्रति उनका रुझान बढ़ गया था। प्रारम्भ में कविता की ज्यादा जानकारी न होते हुए भी उन्होंने अपने सीखने का क्रम जारी रखा। हेलो हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर जैसे अख़बारों में उनके लिखे लेखों को जगह मिली। गायन की तरफ रुझान होने की वजह से जीतेन्द्र तिवारी, नितेश जायसवाल जैसे उनके साहित्यकार मित्रों ने उन्हें गीत, मुक्तक लिखने को प्रेरित किया। मौसम जी की उर्दू में भी अभिरुचि रही जिसे उन्होंने सीखा। शायरी के क्षेत्र में भी उनको काफी काम किया।

माँ से की अपने मुक्तक की शुरुआत

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए मौसम कुमरावत ने बच्चे के जीवन में अभिभावक की महत्ता को बताते हुए कहा कि माँ बाप का साथ आपको एक मजबूती देता है। वर्तमान पीढ़ी को उन्होंने अपने जड़ो से जुड़े रहने की बात कही। अपने इन्हीं पंक्तियों के माध्यम से अभिवावको के लिए श्रदा पुष्प अर्पित किये।

मां के छू लिए चरण तो पुरे ख्वाब हो गए
राह के जो शूल थे वो सब गुलाब हो गए
हम तो कोरे प्रश्न थे हम तो थे अधूरे से
माँ ने गोद में लिया तो पूरी किताब हो गए 

वर्तमान संगीत की स्थिति से परेशान

कर्नाटक संगीत और हिंदुस्तानी संगीत की खूबसूरती का ज़िक्र करते हुए मौसम कुमरावत ने कहा कि इन दोनों संगीत की अपनी अलग महत्ता है पर आजकल संगीत के नाम पर जो परोसा जा रहा है वो चिंतनीय है। आज के संगीत पर उनकी लिखी पंक्तियाँ सही कटाक्ष करती है:

बांसुरी बेसुरी है और, वीणा के तार ढीले हैं,
गीत में रस नहीं है और न ही अब स्वर सुरीले हैं,

संगीत के गिरते स्तर पर अपनी चिंता को उन्होंने स्वरों में ढाल कर दर्शको को सोचने पर मजबूर कर दिया।

रचनाकार बढ़ाये साहित्य के प्रति अभिरुचि

पाठको के सवाल का जबाब देते हुए मौसम कुमरावत ने कहा कि जैसे संगीत में लय और ताल की समझ नहीं होने से अच्छे गीत की उत्पति नहीं हो सकती वैसे ही छंद, पद, मात्रा, रस और अलंकार के ज्ञान से रहित व्यक्ति की कविता कभी अपनी जगह नहीं बना पाती इसलिए एक अच्छे रचनाकार होने के लिए जरुरी है कि सर्वप्रथम वो साहित्य का ज्ञान अर्जन करें।

रचनाकार की होती है समाज के प्रति जिम्मेदारी

मौसम कुमरावत ने कहा कि रचनाकारों को अपनी रचनाओं में सामाजिक मुद्दे उठाने चाहिए। समाज में शोषित वर्ग की आवाज रचनाओं में मुखर की जानी चाहिए। नारियों के शोषण के खिलाफ कवितायें आनी चाहिए। श्रृंगार, प्रेम की कवितायेँ अपने जगह पर अपना मायने रखती है पर कवि की जिम्मेदारी समाज के प्रति ज्यादा होती है तो जरुरी है कि वो अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने श्रोताओं को, पढ़नेवालों को भिन्न सामाजिक मुद्दों के प्रति जागृत करे। समाज पर रचनाओं के प्रभाव को उन्होंने बड़ी खूबसूरती से बताया है-

मैं भले छोड़कर जग चला जाऊंगा
गीत और मेरे मुक्तक रहेंगे सदा
नीर नयनो से सबके बहे ना बहे भाव मेरे
जगत में रहेंगे सदा

कार्यक्रम का समापन

श्री मौसम कुमरावत के साथ हुई। यह परिचर्चा सभी श्रोताओं के लिए काफ़ी मददगार साबित हुई। डॉक्टर यास्मीन अली ने कई सामायिक विषयों को इस परिचर्चा में शामिल किया और मौसम कुमरावत के समक्ष आज के नवोदित रचनाकारों के प्रश्न एवं संदेह रखी जिनके उत्तर उन्होंने बहुत धैर्य के साथ दिए जिससे यह परिचर्चा अपने उदेश्य में सफल होती जान पड़ी। कार्यक्रम का समापन डॉक्टर यास्मीन अली के आभार संदेश के साथ हुआ।

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