हैदराबाद: सोमवार को परिसीमन के खिलाफ तेलंगाना विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जाएगा। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी सदन में यह प्रस्ताव पेश करेंगे। विभिन्न राजनीतिक दल इस पर अपनी राय व्यक्त करेंगे। भाजपा को छोड़कर अन्य सभी पार्टियां परिसीमन का विरोध कर रही हैं।
इस बात की आलोचना हो रही है कि केंद्र की भाजपा सरकार उत्तरी राज्यों में सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए काम कर रही है। विभिन्न राजनीतिक दल भाजपा पर उन क्षेत्रों में अपनी सीटें बढ़ाने और सत्ता में वापसी का प्रयास करने का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस समेत सभी क्षेत्रीय दलों का मानना है कि मोदी सरकार दक्षिणी राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को कम करके उन्हें महज आंकड़ों तक सीमित करने की साजिश कर रही है।
परिसीमन के खिलाफ शनिवार को चेन्नई में सर्वदलीय बैठक हुई। केंद्र में भाजपा की सहयोगी पार्टियों और वाईएसआरसीपी के प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं हुए। इसमें भाग लेने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने घोषणा की कि वे परिसीमन के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित करेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि जल्द ही हैदराबाद में एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की जाएगी और लोगों को शामिल करने के लिए एक विशाल जनसभा भी आयोजित की जाएगी।
परिसीमन प्रस्ताव पर बहस के कारण आज विधानसभा में प्रश्नोत्तर सत्र रद्द कर दिया गया। प्रस्ताव के बाद विधेयक पर चर्चा की जाएगी। इसके अलावा पंचायत राज एवं नगर पालिका अधिनियमों में भी संशोधन किया जाएगा। कोत्तागुडेम निगम के रूप में छह नई नगर पालिकाएं बनाई जाएंगी। कुछ ग्राम पंचायतों की सीमाएं और नाम भी बदले जाएंगे।
सीएम रेवंत रेड्डी केंद्र को लोकसभा सीटों में वृद्धि को अगले 25 वर्षों के लिए स्थगित करने का सुझाव दे रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि वर्तमान में 543 सीटों वाली लोकसभा में दक्षिणी राज्यों के पास 130 सीटें हैं तथा पुनर्विभाजन के बाद बनने वाली नई लोकसभा में 33 प्रतिशत सीटें दक्षिणी क्षेत्र को दी जाएं। सीएम रेवंत मांग कर रहे हैं कि अगर भाजपा अपनी सीटों में 50 प्रतिशत की वृद्धि करना चाहती है तो 272 सीटों की वृद्धि के साथ लोकसभा सीटों की कुल संख्या 815 हो जाएगी, जिसमें से 33 प्रतिशत यानी 272 सीटें दक्षिणी राज्यों को दी जानी चाहिए। यह सुझाव दिया गया है कि इन सीटों को वर्तमान आनुपातिक आधार पर तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पुडुचेरी राज्यों के बीच वितरित किया जा सकता है।
డీలిమిటేషన్ డౌన్ డౌన్: అసెంబ్లీలో కీలక తీర్మానం ప్రవేశపెట్టనున్న ముఖ్యమంత్రి రేవంత్రెడ్డి
హైదరాబాద్ : డీలిమిటేషన్కు వ్యతిరేకంగా నేడు అసెంబ్లీలో తీర్మానం చేయనున్నారు. ఈ తీర్మానాన్ని ముఖ్యమంత్రి రేవంత్రెడ్డి సభలో ప్రవేశపెట్టనున్నారు. దీనిపై వివిధ రాజకీయ పార్టీలు తమ అభిప్రాయాలు తెలపనున్నాయి. బీజేపీ మినహా మిగిలిన పక్షాలన్నీ డీలిమిటేషన్ను వ్యతిరేకిస్తున్నాయి.
ఉత్తరాది రాష్ట్రాల్లో ఎక్కువ సీట్లు పెరిగే విధంగా కేంద్రంలోని బీజేపీ ప్రభుత్వం వ్యవహరిస్తున్నదనే విమర్శలు వ్యక్తమవుతున్నాయి. ఆయా ప్రాంతాల్లో సీట్లు పెంచుకుని మళ్లీ అధికారంలోకి రావాలని బీజేపీ ప్రయత్నిస్తున్నదని వివిధ రాజకీయ పార్టీలు ఆరోపిస్తున్నాయి. దక్షిణాది రాష్ట్రాలకు రాజకీయ ప్రాతినిధ్యం తగ్గేలా చేసి ఇక్కడి రాష్ట్రాలను నామమాత్రం చేయాలని మోడీ ప్రభుత్వం కుట్ర పన్నుతున్నదని, కాంగ్రెస్సహా ప్రాంతీయ పార్టీలన్నీ అభిప్రాయపడుతున్నాయి.
డీలిమిటేషన్కు వ్యతిరేకంగా శనివారం చెన్నయ్లో అఖిలపక్ష సమావేశం జరిగింది. దీనికి కేంద్రంలోని బీజేపీ భాగస్వామ్య పక్షాలు, వైఎస్ఆర్సీపీ ప్రతినిధులు అటెండ్ కాలేదు. ఇందులో పాల్గొన్న తెలంగాణ సీఎం రేవంత్ రెడ్డి తాము డీలిమిటేషన్కు వ్యతిరేకంగా అసెంబ్లీలో తీర్మానం చేస్తామని ప్రకటించారు. త్వరలోనే హైదరాబాద్లో అఖిలపక్ష సమావేశం నిర్వహిస్తామని, ప్రజలను భాగస్వామ్యం చేసేందుకు భారీ బహిరంగ సభ సైతం ఏర్పాటు చేస్తామని సీఎం తెలిపారు.
డీలిమిటేషన్ తీర్మానంపై చర్చ ఉన్న నేపథ్యంలో నేడు అసెంబ్లీలో ప్రశ్నోత్తరాలను రద్దు చేశారు. తీర్మానం తర్వాత పద్దులపై డిస్కస్ చేయనున్నారు. దీంతో పాటు పంచాయతీరాజ్, మున్సిపల్చట్టాల సవరణ చేయనున్నారు. కొత్తగా ఆరు మున్సిపాలిటీలను, కొత్తగూడెం కార్పొరేషన్గా ఏర్పాటు చేయనున్నారు. కొన్ని గ్రామ పంచాయతీల సరిహద్దులు, పేర్లను సైతం మార్చనున్నారు.
లోక్సభ స్థానాల పెంపును మరో 25 ఏండ్ల పాటు వాయిదా వేయాలని సీఎం రేవంత్ రెడ్డి కేంద్రానికి సూచిస్తున్నారు. 543 సీట్లు ఉన్న లోక్సభలో ప్రస్తుతం దక్షిణాది రాష్ట్రాల సీట్ల సంఖ్య 130 అని, పునర్విభజన తర్వాత ఏర్పడే కొత్త లోక్సభలో దక్షిణాది ప్రాంతానికి 33 శాతం సీట్లు ఇవ్వాలని డిమాండ్ చేస్తున్నారు. బీజేపీ 50 శాతం సీట్లు పెంచాలనుకుంటే అలా పెరిగే 272 సీట్లతో మొత్తం లోక్సభ సీట్ల సంఖ్య 815 అవుతుందని, ఇందులో దక్షిణాది రాష్ట్రాలకు 33 శాతం అంటే 272 సీట్లు ఇవ్వాలని సీఎం రేవంత్ డిమాండ్ చేస్తున్నారు. ఈ సీట్లను తమిళనాడు, కర్ణాటక, కేరళ, తెలంగాణ, ఆంధ్రప్రదేశ్, పుదుచ్చేరి రాష్ట్రాలకు ఇప్పుడున్న ప్రొరేటా ప్రాతిపదికన పంచొచ్చని సూచిస్తున్నారు. (ఏజెన్సీలు)
परिसीमन पर तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने की बैठक
गौरतलब है कि परिसीमन पर शनिवार को तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने बैठक बुलाई। परिसीमन विवाद पर गरमाई सियासत के बीच मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति की अपनी जरूरतों के हिसाब से इस मुद्दे पर संतुलन बनाए रखने की रणनीति पर चलती दिखाई दे रही है। वहीं आम आदमी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति तथा बीजू जनता दल जैसी पार्टियां भी अपनी चुनौतियों के मद्देनजर सियासी संतुलन बनाए रखने का विकल्प अभी नहीं छोड़ रही हैं। द्रमुक प्रमुख तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की चेन्नई में शनिवार को परिसीमन पर बुलाई गई बैठक में इन तीनों पार्टियों के नेताओं की मौजूदगी में इसकी झलक साफ दिखाई पड़ी।

परिसीमन मसले पर कांग्रेस फिलहाल अपने क्षेत्रीय नेताओं को ही आगे रखने की सतर्कता बरत रही है। जबकि कांग्रेस से असहज रिश्ते होने के बावजूद बीआरएस और आप उसके साथ विपक्षी राजनीति का मंच साझा करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।
परिसीमन पर दक्षिणी राज्यों को एकजुट करने के अपने एक प्रमुख सहयोगी दल द्रमुक का साथ देने के बावजूद राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस इस मसले पर संतुलन की राह पर चल रही है। पार्टी ने जहां दक्षिणी राज्यों की चिंताओं से इत्तेफाक रखते हुए भविष्य में प्रस्तावित परिसीमन में इसका ख्याल रखे जाने की पूरी पैरोकारी की है। वहीं, उत्तरी राज्यों के बारे में ऐसी कोई टिका-टिप्पणी नहीं की है जैसी द्रमुक या बीआरएस ने की है। कांग्रेस ने परिसीमन से पहले जनगणना कराए जाने की मांग कर इस विवाद को फिलहाल विराम देने में ज्यादा रूचि दिखाई है।
चेन्नई बैठक के संदर्भ में कांग्रेस का परिसमीमन पर रूख जाहिर करते पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने साफ कहा है कि वाजपेयी सरकार ने 2002 में 25 साल के लिए लोकसभा सीटों के परिसीमन पर रोक लगाते हुए 2026 के बाद की जनगणना के उपरांत परिसीमन कराए जाने का निर्णय लिया था। कांग्रेस नेता ने कहा कि इसका अर्थ है कि 2031 की जनगणना के बाद ही परिसीमन होना है और 2025 की जनसंख्या को आधार बनाया गया तो कई राज्यों को परिसीमन में बड़ा नुकसान होगा।
परिसीमन पर संतुलन की रणनीति के तहत ही कांग्रेस ने स्टालिन के बुलावे पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेडडी और कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार जैसे क्षेत्रीय नेताओं को चेन्नई बैठक भेजा। नीट परीक्षा तथा नई शिक्षा नीति पर तमिलनाडु के रूख का समर्थन करने के बावजूद कांग्रेस ने हिन्दी को लेकर द्रमुक के विरोध से अपनी एक दूरी बनाए रखी है, जो संसद के वर्तमान सत्र में भी नजर आया है। इन मसलों पर द्रमुक सांसदों के साथ राज्य के कांग्रेस सांसद चाहे विरोध में शामिल हुए मगर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भाषा विवाद को सियासी तूल देने के द्रमुक की रणनीति से दूरी बनाए रखी है।
परिसीमन पर चेन्नई की बैठक में कांग्रेस की तरह ही आप, बीआरएस तथा बीजद भी अपनी सियासत का संतुलन साधने की कोशिश करते दिखे। दिल्ली चुनाव में कांग्रेस से बढ़ी तीखी खटास के बावजूद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का स्टालिन और कांग्रेस संग मंच साझा करने जाने का संकेत साफ है कि वर्तमान सियासी परिस्थितियों में विपक्षी खेमे की छतरी से बाहर जाने का जोखिम उठाने की स्थिति में आम आदमी पार्टी नहीं है। तेलंगाना में रेवंत सरकार पर चंद्रशेखर राव चाहे जितना बरसें पर बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव को चेन्नई में कांग्रेस नेताओं की मंच पर मौजूदगी से कोई दिक्कत नहीं हुई और उन्होंने परिसीमन पर स्टालिन का सबसे मुखर समर्थन भी किया।
विपक्षी मंच पर केटीआर की उपस्थिति पर भाजपा ने सियासी तंज कसने में देर नहीं लगाई। तेलंगाना से भाजपा सांसद अरविंद ने केटीआर से पूछा कि कांग्रेस का विरोध करते-करते क्या बीआरएस अब आईएनडीआईए गठबंधन में शामिल हो गई है। दरअसल, तेलंगाना में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद बीआरएस का ग्राफ नीचे जा रहा है और भाजपा को इसका फायदा मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। इसीलिए बीआरएस को अपनी सियासत बचाने के लिए भाजपा के खिलाफ लामबंदी का सियासी मंच ही मुफीद नजर आ रहा है। ओडिशा में पहली बार भाजपा के सत्ता में आने के बाद नवीन पटनायक को भी राजनीति की नई हकीकत का अहसास हो गया है और चाहे वीडियो कांफ्रें¨सग के जरिए ही सही स्टालिन की परिसीमन बैठक में शामिल होकर उन्होंने ने भी बीजद की सियासत का संतुलन नए सिरे से साधने के संकेत दिए हैं।