केंद्रीय हिंदी संस्थान: ‘हिंदीतर विद्यार्थियों में हिंदी व्याकरण की चुनौतियां’ विषय पर परिसंवाद आयोजित

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्‍थान, अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्‍व हिंदी सचिवालय के तत्‍वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से हिंदी शिक्षण विमर्श की श्रृंखला के अंतर्गत हिंदी शिक्षण-परिसंवाद ‘हिंदीतर विद्यार्थियों में हिंदी व्याकरण की चुनौतियाँ’ विषय पर परिसंवाद आयोजित किया गया। सर्वविदित है कि भाषा और व्याकरण का अन्योन्याश्रित संबंध है। भाषा के अध्ययन-अध्यापन में व्याकरण की विशेष भूमिका होती है। अतएव व्याकरणिक व्यवस्था में चुनौतियाँ भी स्वाभाविक हैं।

ज्ञातव्य है कि हिंदी विश्व भाषा के रूप में अग्रसर है। हिंदी, हिंदीतर और विदेशी विद्यार्थियों के लिए व्याकरण संबंधी कठिनाइयाँ आती हैं जो अन्य भाषाओं में भी हैं। यह क्षेत्रीय प्रभाव और सांस्कृतिक विविधता आदि से भी प्रभावित होती है। हिंदीतर विद्यार्थियों के लिए व्याकरण की चुनौतियों को जानना जरूरी है। आज के परिसंवाद में इस विषय पर विशेषज्ञों और विविध क्षेत्र के विद्वानों द्वारा बेबाक विश्लेषण सहित विचार प्रकट किए गए।

डॉ राजेश कुमार

परिसंवाद के आरंभ में वैश्विक हिंदी परिवार के संयोजक एवं साहित्यकार डॉ राजेश कुमार द्वारा विमर्श की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तदोपरांत केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र की प्रो अपर्णा सारस्वत द्वारा बड़े ही संयत भाव और आत्मीय ढंग से विशिष्ट वक्ताओं और देश-विदेश से जुड़े सैकड़ों सुधी श्रोताओं तथा विद्यार्थियों का विधिवत स्वागत किया गया। कार्यक्रम के संचालन का बखूबी दायित्व संभालते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे ने विद्वानों के समादर के साथ सर्वप्रथमप भाषाविद प्रो वी रा जगन्नाथन से मार्गदर्शन का आग्रह किया।

प्रो जगन्नाथन

वयोवृद्ध भाषाशास्त्री एवं अनेक पुस्तकों के लेखक प्रो जगन्नाथन ने इस आयोजन पर प्रसन्नता प्रकट की। उन्होंने कहा कि आज के विषय के मुख्यतया दो पक्ष हैं। पहला- भाषा की रचना और त्रुटियों से संबंधित है और दूसरा शिक्षण और व्याकरण की व्यवस्था पर आधारित है। उन्होंने आज के समय में भाषा के प्रयोग में अराजकता पर दु:ख प्रकट करते हुए कहा कि इसके लिए जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। हिंदीतर विद्यार्थियों में ध्वनि, कारक, परसर्ग एवं पदबंध आदि की अनेक चुनौतियाँ हैं। उनका कहना था कि ‘ने’ प्रयोग में प्रायः गलतियाँ की जाती हैं। पठन–पाठन, लेखन–बोधन एवं शोध अध्ययन–अध्यापन आदि में मानक व्याकरण अनिवार्य अंग है।

डॉ योगेंद्रनाथ मिश्र

सरदार पटेल महाविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डॉ योगेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि भाषा के मौखिक और लिखित रूप व्याकरण से आबद्ध हैं। हिंदी व्याकरण से संबंधित पुस्तकों के लेखकों में भी वैभिन्य परिलक्षित होता है। स्वर, व्यंजन या वर्णमाला से लेकर विशेषक चिह्न और पदबंध आदि तक मतैक्य नहीं मिलता। हमें मानक का ध्यान रखना चाहिए। प्रो एम ज्ञानम का अनुभवजन्य मत था कि कन्नड, मलयालम और तमिल आदि विद्यार्थियों की चुनौतियाँ भिन्न-भिन्न हैं। इसमें क्षेत्रीय प्रभाव स्पष्ट झलकता है। निश्चय ही मानक की नितांत आवश्यकता है।

श्री अमूल्य कुमार महंती

भुवनेश्वर से जुड़े श्री अमूल्य कुमार महंती का कहना था कि प्रेरणार्थक क्रियाओं के प्रयोग में कठिनाई आती है तथा कारक चिह्नों के प्रयोग में भ्रम होने लगता है। शब्दकोश में भी अंतर दिखता है। सभी क्रियाओं के प्रेरणार्थक रूप नहीं बनते। अतएव हम चुनौतियों का मुक़ाबला करते हुए सीखते और सिखाते हैं। महाराष्ट्र से जुड़े श्री प्रकाश निर्मळ ने कहा कि राजभाषा के क्षेत्र में ‘स्थानांतरण’ जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द बहुतायत मिलते हैं जबकि ‘तबादला’ जैसे हिंदुस्तानी शब्द दरकिनार हो जाते हैं जो स्वाभाविक है।

डॉ वरुण कुमार

रेलवे बोर्ड के निदेशक (राजभाषा) डॉ वरुण कुमार ने कहा कि भाषा की संरचनात्मक आवश्यकता होती है। हर भाषा अनुकूलन करती है। हमें हिंदी में कारक चिह्न बनाम अव्यय पर भी विचार करना चाहिए। हैदराबाद से जुड़ी प्रो मणिक्यांबा ने हिंदी और तेलुगू व्याकरण के व्याघात की ओर ध्यान आकृष्ट किया और कहा कि व्याकरण को याद रखने एवं प्रयोग करने हेतु विद्यार्थियों को सूत्र दिए जाने चाहिए। जैसे ‘ने’ का प्रयोग वर्तमान काल, भविष्यत काल और अपूर्ण भूत में नहीं होता। शिक्षण में सत्यनिष्ठ और जागरूक रहना जरूरी है।

डॉ लता तेजेश्वर रेणुका

मुंबई से जुड़ी तेलुगु-हिंदी विदुषी डॉ लता तेजेश्वर रेणुका ने कहा कि हिंदी और तेलुगू में लिंग की समस्या भी आती है। हिंदी वर्णमालाओं का तेलुगू में उच्चारण भिन्न मिलता है जैसे ‘क’, को ‘का’, तथा ‘अ’, और ‘आ’ को एक समान ‘आ’ ही पढ़ा जाता है। हर सप्ताह की तरह जापान से जुड़े पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकामि ने “भाइयो एवं बहनो सम्बोधन में अनुनासिकता का प्रयोग न होने का सवाल उठाया जिसे प्रो॰ जगन्नाथन ने व्यावहारिक और प्रयोजनपरक बताया। असम से जुड़े श्री परीक्षित नाथ ने कहा कि असमियाँ में ‘ण’ के स्थान पर ‘न, के उच्चारण से हिंदी व्याकरण शिक्षण में कठिनाई आती है जो क्षेत्रीय प्रभाव के कारण है।

प्रो संध्या सिंह

सिंगापुर नेशनल युनिवर्सिटी की प्रो संध्या सिंह ने अनुवाद से हिंदी सीखने पर रंजक क्रियाओं की समस्या बताई। नाइजीरिया के छात्र अलहाज कादरे नागरे का कहना था कि हमें हिंदी सीखने के लिए पहले अङ्ग्रेज़ी सीखनी पड़ती है। बिना अंग्रेज़ी का सहारा लिए हिंदी सिखाना श्रेयस्कर होगा। प्रो किरण टाक ने कहा कि हिंदी में ‘ल’ वर्ण से स्वीकार्यता के आधार पर हमें काम चलाना होगा। तमिलनाडु के श्री गुर्रम चक्रपाणि ने ‘विद्या’ शब्द को पुराने प्रचलित रूप में प्रयोग की सलाह दी।

नसरीन अली

श्रीनगर से जुड़ीं मोहतरमा नसरीन अली “निधि, ने बताया कि कश्मीर में “कश्मीरी और उर्दू को समाहित कुछ लेखकों ने हिंदी व्याकरण लिखा है जो विद्यार्थियों तक आसान पहुँच बनाकर पुस्तकों का प्रचार कराते हैं जिससे शिक्षण अशुद्ध होता है। अतएव पूरे भारत राष्ट्र के लिए ‘मानक हिंदी व्याकरण’ की व्यवस्था करना समीचीन होगा। खाड़ी क्षेत्र से जुड़ी प्रो उल्फ़त ने ‘का, के, की’ के स्थान पर संबंधवाचक रा, रे, री की समस्या उठाई जिसे मानक नहीं माना गया है।

प्रो जगन्नाथन ने समाहार स्वरूप कहा कि आज की परिचर्चा में अनेक प्रश्न और आयाम उभरे हैं अतएव चर्चा उपयोगी और सार्थक रही। निश्चय ही हमें मानक व्याकरण, मानक कोश, मानक पाठ्यक्रम और मानक पुस्तकों की आवश्यकता है। कंप्यूटर और कोश तथा शिक्षण के क्षेत्र में लेखन अंतर दिखता है। अब प्रकार्यात्मक व्याकरण लिखने की नितांत आवश्यकता है। डॉ योगेंद्रनाथ मिश्र ने भी उठाई गई समस्याओं का निराकरण किया।

प्रो बीना शर्मा

केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की निदेशक प्रो बीना शर्मा ने वक्ताओं की भावनाओं का आदर करते हुए कहा कि इस चर्चा का श्रीगणेश होना सुखद है। इसके लिए निरंतर संगोष्ठियों की आवश्यकता है। क्षेत्रीय व्याकरण की पुस्तकों की जाँच जरूरी है। व्याकरण शिक्षण की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर समाधान देना परमावश्यक है। हमारी ओर से केंद्रीय हिंदी संस्थान की सेवाएँ उपलब्ध रहेंगी। हम नियमों के अनुसार बिना उलझे चलें और भाषा कौशल को सुधारें। उन्होंने अनेक देशों से जुड़े सैकड़ों सुधी जनों के सुझावों पर प्रसन्नता प्रकट की तथा सभी संस्थानों और विद्वानो तथा विशेषज्ञों से सहयोग की अपील की।

कार्यक्रम में सभी महाद्वीपों के लगभग पच्चीस से अधिक देशों के सैकड़ों लेखक, विद्वान, साहित्यकार एवं विद्यार्थी आद्योपांत जुड़े रहे। चैट बॉक्स में भी सौ से अधिक लोगों द्वारा लिखना उत्साहवर्धक रहा। वैश्विक हिंदी परिवार के समस्त सहयोगियों का आभार जिसमें विश्व के 25 से अधिक देशों के हिंदी से जुड़े विचारकों, साहित्यकारों और भाषाकर्मियों का समूह सहभागिता करते हैं।

आभारी हैं –

संयोजक: डॉ जवाहर कर्नावट, डॉ रमेश यादव (भारत), संध्या सिंह (सिंगापुर)। प्रो बीना शर्मा निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा; पद्मेश गुप्त संयोजक, वैश्विक हिंदी परिवार; माधुरी रामधारी, उप महासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय, मॅरिशस। मार्गदर्शक: संतोष चौबे, नारायण कुमार, प्रो वी जगन्नाथन कार्यक्रम संयोजन: प्रो राजेश कुमार; अंतरराष्ट्रीय संयोजक: शैलजा सक्सेना। तकनीकी सहयोग: डॉ.मोहन बहुगुणा, डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’। तकनीकी सहयोग: प्रो विजय मिश्र, डॉ गंगाधर वानोडे, डॉ विजय नगरकर जी फेस बुक सोशल मीडिया के संचालन के लिए तथा रिपोर्ट लेखन में डॉ जयशंकर यादव, डॉ राजीव कुमार रावत का सहयोग प्राप्त हुआ। साथ ही अन्य सभी सहभागी का सहयोग प्राप्त हुआ।

कृतज्ञता प्रकट

सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह ने संयत भाव और मृदुल वाणी में विशिष्ट वक्तावृंद तथा सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया। विदुषी डॉ संध्या सिंह ने हिंदी का वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय तल से धन्यवाद दिया। ज्ञातव्य है कि यह कार्यक्रम ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ यूट्यूब पर भी उपलब्ध है।

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