हैदराबाद : ब्रह्मर्षि सेवा समाज हैदराबाद के तत्वावधान में जगतगीरगुट्टा स्थित परशुराम मंदिर में अक्षय तृतीया एवं परशुराम जयंती के अवसर पर विशेष पूजा का आयोजन किया गया।
समाज के महासचिव इंद्रदेव सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति जानकारी देते हुए कहा कि कोविड और लॉकडाउन की स्थिति को देखते हुए पूजा में अधिक लोगों को न बुलाकर समाज के अध्यक्ष सुजीत ठाकुर एवं महासचिव इंद्रदेव प्रसाद सिंह के नेतृत्व में कार्यकारिणी के प्रमुख सदस्य गोविंद राय (पूर्व अध्यक्ष), श्री रामगोपाल चौधरी (पूर्व अध्यक्ष), श्री सुनील सिंह (कार्यकारिणी सदस्य) आदि के द्वारा पूजा सम्पन्न की गई।
स्वरबद्ध कीर्तन
गौरतलब है कि गत कई वर्षों से समाज जगतगीरगुट्टा स्थित परशुराम मंदिर में संयुक्त रूप से परशुराम जयंती व अक्षय तृतीया समारोह का भव्य आयोजन करता आ रहा है। इस के अंतर्गत 24 घंटे का अखंड रामायण पाठ किया जाता है और साथ ही 2 दिन अनवरत राम और श्याम धुन की स्वरबद्ध कीर्तन करते हुए अष्टयाम सम्पन्न किया जाता है, परंतु वर्तमान परिस्थिति में सदस्यों के स्वास्थ्य का ख़याल रखते हुए ऐसा भव्य आयोजन उपयुक्त नहीं था। चूंकि कार्यकारिणी की पिछली बैठक में यह तय हुआ था कि कई वर्षों से चल रही परंपरा को बनाए रखना भी समाज की जिम्मेदारी बनती है ।
भगवान परशुराम ब्रह्मर्षि सिर्फ़ वंश पुरुष हैं बल्कि वंश गौरव है
ब्रह्मर्षि एक ऐसी सवर्ण जाति है जो अपने शौर्य, पराक्रम एवं बुद्धिमत्ता के लिये जानी जाती है। भगवान परशुराम ब्रह्मर्षि के न सिर्फ़ वंश पुरुष हैं बल्कि वंश गौरव भी हैं। वे प्राचीन काल से ही भगवान परशुराम को अपना मूल पुरुष और कुल गुरु मानते हैं। ऋषि जमदग्नि और रेणुका के ये पुत्र अक्षय तृतीया के दिन अवतरित हुए और वे भगवान विष्णु के छठे अवतार भी माने जाते हैं। इनके गुरु भगवान शिव द्वारा प्रसन्न होकर फरसा पाने के बाद ये परशुराम के नाम से जाने जाने लगे। चूंकि परशु पराक्रम का और राम सत्य सनातन का प्रतीक है अतः परशुराम का अर्थ पराक्रम कारक और सत्य का धारक है।
भगवान परशुराम की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना
ब्रह्मर्षि समाज हैदराबाद गत कई वर्षों से इस अवसर पर भव्य पूजा का आयोजन करता आ रहा है। इस बार परिस्थिति विपरीत होने के बावजूद इस अवसर को अनदेखा न करते हुए और परम्परा को बनाए रखते हुए समाज द्वारा भगवान परशुराम की विधिपूर्वक पूजा – अर्चना की गई। मंदिर के पुजारी ने विधिवत अभिषेक के साथ पूजा प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् मंत्रोच्चार के साथ हवन की गई। सश्वर आरती गाते हुए मंत्र पाठ के साथ घंटा ध्वनि के गुंजन में भगवान की आरती की गई। अंत में भोग लगाकर एवं भक्तों द्वारा प्रसाद ग्रहण कर पूजा सम्पन्न किया गया।