तेलंगाना में बीजेपी की पश्चिम बंगाल-शैली नीति, सत्ता में आने के लिए अपना रही है यह फार्मूला

तेलंगाना में चुनाव की तैयारी जमकर चल रही है। एक ओर चुनाव आयोग वोटरों की लिस्ट जारी कर चुकी है। बाकी तैयारियों की समीक्षा की है। वहीं राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर रही है और जीतने के लिए जमकर प्रचार भी किया जा रहा है। हर पार्टी दूसरी को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने और सत्ता हासिल करने के लिए बेकरार है। इसके लिए कई तरह की रणनीतियां भी बनाई जा रही है। हाल ही में अन्य पार्टियों को आगे बढ़ते देख बीजेपी ने भी अपनी चुनावी रणनीति में कुछ फेरबदल किया है। आइये यहां देखते हैं इससे जुड़ी ये रिपोर्ट …

इसमें तो कोई संदेह नहीं है कि तेलंगाना में बीजेपी एक वैकल्पिक राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है। हालाँकि, कुछ महीनों से स्थिति उम्मीद के मुताबिक नहीं है। यह भी एक स्वीकृत तथ्य है। पार्टी के नेतृत्व में उथल-पुथल और नेताओं के बीच समन्वय की कमी स्पष्ट रूप से देखी गई। ठीक उसी समय कांग्रेस में एक नये उत्साह का संचार हुआ। नतीजतन, तेलंगाना में वैकल्पिक राजनीतिक दल कौन है, इस नंबर गेम में बीजेपी पिछड़ती दिख रही है। चुनाव से दो महीने पहले पार्टी में यह निराशा निश्चित रूप से काम नहीं आएगी। इसलिए उन्होंने सोचा कि गियर बदलने के लिए कोई बड़ा कदम उठाना होगा।

योजना के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी तीन दिन के अंदर दो बार तेलंगाना का दौरा किया। पहले महबूबनगर का दौरा किया। इस दौरान करोड़ों रुपये के परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने अपने निज़ामाबाद दौरे के दौरान वर्चुअली 8021 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया। रामगुंडम में एनटीपीसी द्वारा निर्मित 800 मेगावाट की अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट की पहली इकाई राष्ट्र को समर्पित की गई। उन्होंने आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन के तहत तेलंगाना के 20 जिला केंद्रीय अस्पतालों में बनने वाली 50 बिस्तरों वाली क्रिटिकल केयर इकाइयों की आधारशिला रखी। 1200 करोड़ की लागत से बनी सिद्दीपेट-मनोहराबाद रेलवे लाइन और पहली सिद्दीपेट-सिकंदराबाद ट्रेन सेवा शुरू की गई।

इससे पहले महबूबनगर आमसभा में समक्का-सारलम्मा ट्राइबल यूनिवर्सिटी, निज़ामाबाद में भी हल्दी बोर्ड स्थापित करने की घोषणा की. इन दोनों घोषणाओं से बीजेपी एक बार फिर उत्साहित हो गई। बीजेपी अब से ऐसे दौरों के साथ-साथ विज्ञापनों की भी योजना बना रही है। तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष किशन रेड्डी ने केंद्रीय भाजपा नेताओं के साथ किस योजना के लिए कितना धन दिया गया है, इसका विवरण केंद्र के साथ साझा करने के लिए नई रणनीतियां तय कर रहे हैं।

रणनीति के अंतर्गत हर दिन एक सभा होनी चाहिए। सभी 119 विधानसभा क्षेत्रों में 30 से 40 सभा आयोजित की जाएगी। ठीक इसी रणनीति के साथ बीजेपी पश्मि बंगाल के चुनाव में भी उतरी थी। वहां बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के साथ सिलसिलेवार सभाएं की थी। इसके चलते भाजपा पश्मिम बंगाल में एक मजबूत विपक्ष बन कर उभरी है। बीजेपी यही रणनीति तेलंगाना में भी लागू करना चाहती है। हाल ही में रास्ते में आए कुछ स्पीड ब्रेकरों को हटाने के लिए गियर बदलना जरूरी है। उस योजना के तहत ही प्रधानमंत्री मोदी दो बार तेलंगाना आये। जनसभा को संबोधित करने के साथ ही कई योजनाओं की शुरुआत भी की।

प्रधानमंत्री की महबूबनगर और निजामाबाद ज सभाओं से पार्टी कैडर उत्साहित है। मोदी के दौरे से तेलंगाना बीजेपी मजबूत नजर आ रही है। पार्टी को लगता है कि हल्दी बोर्ड और आदिवासी विश्वविद्यालयों की घोषणा निश्चित रूप से पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगी। बीजेपी शुरू से ही तेलंगाना में एससी और एसटी निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। माना जा रहा है कि मुलुगु जिले में आदिवासी विश्वविद्यालय की घोषणा के साथ ही उस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। तेलंगाना भाजपा का कहना है कि वह इसी गति को जारी रखने के लिए जल्द ही निर्मल और करीमनगर में पीएम मोदी के साथ बड़ी सार्वजनिक सभाएं आयोजित करने की योजना बना रही है।

पीएम मोदी की सभाओं से पहले इसी महीने की छह तारीख को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हैदराबाद आए। जब तक मोदी तेलंगाना वापस आएंगे, तब तक जेपी नड्डा तेलंगाना में बीजेपी के लिए सारी तैयारियां कर लेंगे और जीत की रणनीतियों पर स्पष्टता ला देंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्मल और करीमनगर जनसभा करने की योजना बना रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी जल्द ही तेलंगाना का दौरा करेंगे। अमित शाह ने 10 तारीख का शेड्यूल तय किया है। मोदी, शाह, जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्रियों, बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राष्ट्रीय नेताओं, कर्नाटक और महाराष्ट्र के सांसदों और विधायकों को तेलंगाना में उतार रही है।

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य विजयशांति, कोमटिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी, पूर्व सांसद रमेश राठौड़ और एनुगु रविंदर रेड्डी जनसभाओं में शामिल नहीं हुए। बीजेपी ऐसे भाषणों और हिसाब-किताब के साथ लोगों के सामने आने वाली है कि उन्हें यकीन हो जाएगा कि अगर वे कहेंगे कि दोनों पार्टियां एक नहीं हैं और अगर उन्होंने कोई हिसाब-किताब बता दिया तो उन्हें यकीन हो जाएगा कि बीजेपी और बीआरएस अलग-अलग हैं। वह पहले ही बता चुके हैं कि 2014 से पहले कांग्रेस सरकार ने किसानों से कितना अनाज खरीदा और भाजपा सरकार आने के बाद कितना अनाज खरीदा। वे चुनाव तक ऐसे ही गणित के साथ जनता के पास जाना चाहते हैं। जरूरत पड़ने पर बीजेपी के केंद्रीय नेता तीखी आलोचना करने के लिए भी तैयार हो रहे हैं।

तेलंगाना में सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से विभिन्न राज्यों के भाजपा के प्रमुख नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों की एक समिति बनाई गई है। इस समिति के 26 नेता चुनाव खत्म होने तक अपना पूरा फोकस तेलंगाना पर लगाने वाले हैं। इस महीने की 5 तारीख को जेपी नड्डा ने इस समिति के साथ विशेष बैठक की हैं। उस बैठक में पार्टी को और मजबूती से जनता के बीच ले जाने के लिए जरूरी कार्यक्रमों पर चर्चा की गई। तेलंगाना के सभी जिलों में मतदाताओं से सीधे मिलने का प्लान तैयार होने जा रहा है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेलंगाना में जन सेना पार्टी का अलग-थलग पड़ना थोड़ा परेशान करने वाला है। जनसेना ने तेलंगाना में चुनाव लड़ने वाले 32 निर्वाचन क्षेत्रों की सूची पहले ही जारी कर दी है।

जन सेना ने लगभग उन क्षेत्रों को चुना है जहां टीडीपी का वोट शेयर अधिक है। इसका असर निश्चित तौर पर तेलंगाना बीजेपी पर भी पड़ेगा। टीडीपी के पास कुकटपल्ली, एलबीनगर, कुतबुल्लापुर, सेरिलिंगमपल्ली, पटानचेरु, सनतनगर, उप्पल, मेडचल, मल्काजगिरी, खम्मम, कोत्तागुडेम, अश्वरपेटा, कोदाडा और सत्तुपल्ली निर्वाचन क्षेत्रों में अपना वोट बैंक है। तेलंगाना में पहले से ही बीआरएस, कांग्रेस और भाजपा प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। चूंकि जन सेना भी उन निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रही है जहां उसकी ताकत है।

तेलंगाना में किसका वोट प्रतिशत खिसक जाएगा, ऐसी स्थिति बनी हुई है। दरअसल, जन सेना द्वारा घोषित कुछ सीटों पर बीजेपी भी मजबूत स्थिति में है। कहा जा रहा है कि कुछ में जीत की स्थिति बन रही है। ऐसे में संभावना है कि जन सेना के अकेले संघर्ष का असर बीजेपी पर भी पड़ेगा। साथ ही जन सेना से गठबंधन की बात भी कोई नहीं कर रहा है। अगर नहीं है तो युवाओं के बीच पवन कल्याण के क्रेज और चंद्रबाबू की गिरफ्तारी के असर के चलते कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जन सेना बीजेपी के वोटों पर असर डाल सकती है। अभी तक ऐसा नहीं लगा है कि पवन कल्याण की प्रशंसा वोट में बदल गई है और यह नहीं कह सकते कि चुनाव के समय तक स्थिति क्या होगी।

साफ है कि बीजेपी ने तेलंगाना में अपनी रफ्तार बढ़ा दी है। इतने कम अंतराल में प्रधानमंत्री मोदी तेलंगाना आए हैं। इससे साफ है कि फोकस किस दायरे में है। अमित शाह, जेपी नड्डा, बीजेपी मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय मंत्रियों के भी आने से कहा जा रहा है कि तेलंगाना बीजेपी में पहले वाला उत्साह जरूर देखने को मिलेगा। अब देखने वाली बात तो यह है कि इस सबसे बीजेपी को चुनावों में फायदा होता भी या फिर कर्नाटक की तरह मुंह की खानी पड़ेगी। खैर यह तो कुछ ही महीनों बाद पता चल जाएगा कि बीजेपी को तेलंगाना में जीत हासिल होती भी है या नहीं।

लेखक मीता वेणुगोपाल पत्रकार

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