हैदराबाद: मुनुगोडु उपचुनाव में तीन मुख्य दलों के बीच घामासान जारी हैं। तीनों दलों ने मुनुगोडु चुनाव को अपने राजनीतिक भविष्य के महत्वाकांक्षी रूप में लिया है। इसीलिए यह चुनाव अब रोमांचक मोड़ पर पहुंच गया है। विधायक पद से इस्तीफा देने वाले कोमाटिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी ने भाजपा की ओर से चुनावी जंग में उतरे है। कांग्रेस पार्टी ने अपनी सीट को कायम रखने के लिए पालवई श्रवंती को चुनावी मैदान में उतारा है। टीआरएस एक राष्ट्रीय पार्टी बनने के मौके पर कूसुकुंटला प्रभाकर रेड्डी को उपचुनाव के दंगल में उतारा है।
सबकी नजरें बीसी और एससी/एसटी मतदाता पर
तीन मुख्य दल चुनावी दंगल में खम ठोक कर उतरे हैं। ऐसे समय में छोटे दलों की क्या भूमिका होगी? यह अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। चुनाव के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखने में आये हैं कि जहां कईं चुनावों में सरकारें एक या दो फीसदी वोटों से बदली गई हैं। इसी पृष्ठभूमि में तीन प्रमुख दल आपस में भिड़ रहे हैं। क्योंकि ये इस उपचुनाव को आगामी आम चुनावों के लिए जनमत संग्रह मान रहे हैं। ऐसे प्रतिष्ठित उपचुनाव में किसे फायदा होगा? ऐसे महत्वपूर्ण इस निर्वाचन क्षेत्र में बीसी और एससी मतदाताओं का बहुमत है। इनके वोट कौन ले जाएगा? अब यह एक चर्चा का गर्म विषय बन गया है। सभी दलों की नजर इन वोटरों पर हैं।
सभी पार्टियों के लिए उपचुनाव चुनौती बन गई है
सभी दलों ने मुनुगोडु उपचुनाव को चुनौतीपूर्ण माना है। उपचुनाव में कौन जीतता है या हारता है। इसका असर आगामी आम चुनावों में संबंधित दलों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है। इसीलिए सभी दल इसे चुनौती के रूप में ले रहे हैं। ऐसे महत्वपूर्ण उपचुनाव के लिए एक महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में प्रमुख दलों के मुख्य नेताओं ने चुनाव प्रचार अभियान तेज कर दिया है। टीआरएस से कूसुकुंटला प्रभाकर रेड्डी, बीजेपी से कोमाटिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी और कांग्रेस से पालवई श्रवंती ने अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है।
मूंछ पर ताव दे रही हैं छोटी पार्टियां
मुनुगोडु उपचुनाव में छोटे दल भी मूंछ पर ताव दे रहे हैं। छोटे दल प्रत्याशी की तलाश करते हुए प्रचार की तैयारी कर रहे हैं। कुछ पार्टियां मुख्य पार्टियों का समर्थन कर रही हैं। वहीं खबरें आ रही हैं कि तेलंगाना टीडीपी, जन सेना और वाईएसआरटीपी चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है। लेकिन भले ही इन पार्टियों के पास किफायती वोट बैंक है। फिर भी यह किस दल का समर्थन करेंगे? इनके वोट किस पार्टी को जाएंगे? इस बारे में नेता विश्लेषण कर रहे हैं।
प्रजा शांति पार्टी को गद्दर से अपेक्षा
बसपा की ओर से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व आईपीएस अधिकारी आरएस प्रवीण कुमार मुनुगोडु में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। बसपा की ओर से बीसी सामाजिक समूह से ताल्लुक रखने वाले आंदोज शंकराचारी को बी-फॉर्म देकर चुनावी मैदान में उतारा है। प्रजा शांति पार्टी की ओर से लोक गायक गद्दर को चुनाव में खड़ा करने का पार्टी के अध्यक्ष केए पॉल ने फैसला किया। हाल ही में गद्दर प्रजा शांति पार्टी में शामिल हुए हैं। प्रजा शांति पार्टी के अध्यक्ष केए पॉल ने विश्वास व्यक्त किया कि बीसी और एससी के वोट अधिक हैं। इसका हमें फायदा होगा और इसीलिए गद्दर को चुनावी मैदान में उतारा है।
मुनुगोड़ा में कुल 2.20 लाख वोट हैं
मुनुगोडु निर्वाचन क्षेत्र में कुल वोट 2 लाख 20 हजार है। अब तक वहां पर केवल वाम दल और कांग्रेस पार्टी की ही जीत हुई है। इसमें टीआरएस और कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ा था, जबकि बीजेपी ने टीडीपी के साथ गठबंधन किया। 2019 के चुनाव में बीजेपी अकेले चुनाव लड़ी थी और उसे 12,000 वोट मिले थे। इस समय तेलुगु देशम पार्टी के पास कुछ वोट बैंक है। यह अनुमान लगाना असंभव है कि उनके वोट किस पार्टी को जाएंगे।
बीसी समुदाय सरकार पर नाराज
मुनुगोडु में मुख्य पार्टियों ने सवर्ण (रेड्डी) को टिकट दिया है। ऐसे में बीसी समुदाय का सवाल सामने आया है। एक तर्क यह भी है कि उपचुनाव में जाति प्रामाणिक नहीं होगी। फिर भी संदेह है कि इनमें से कुछ जातियों के वोट बंटने का खतरा है। मुनुगोडु में बीसी वोट 70 फीसदी से ज्यादा है। वहीं एससी और एसटी वोट 20 फीसदी हैं। मुख्य रूप से गौड़, मुदिराज, पद्मसाली और एससी समुदायों के लोग बहुसंख्यक हैं। उम्मीद की जा रही है कि जो कोई भी इन सामाजिक समूहों को प्रभावित करेगा वे उनके साथ जुड़ जाएंगे। बीसी संघों के नेताओं का कहना है कि बीसी समुदाय को बीसी बंधु और ऋण नहीं देने के कारण वो सरकार पर नाराज हैं।
बीसी और एससी समुदाय के उम्मीदवार
मुनुगोडु में चुनाव लड़ने वाले मुख्य पार्टियों के उम्मीदवार रेड्डी समुदाय यानी उच्च वर्ग से हैं। जबकि छोटी पार्टियों के उम्मीदवार बीसी और एससी समुदाय के हैं। लेकिन अब देखना होगा कि मुनुगोडु के लोग किस तरफ जाते हैं। दूसरी ओर यह भी देखना है कि छोटी पार्टियों द्वारा प्रमुख दलों को दिया गया समर्थन किस हद तक काम करता है? अगर बीसी और एससी उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं तो संभव है कि उनके वोटों का बंटवारा होगा। इसका फायदा किसको होगा? यह तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।