शिक्षकों व अभिभावकों का भी कर्तव्य है बाल अधिकारों के हनन को रोकना: पूर्णिमा प्रांजल

कौशाम्बी में शोषण के विरुद्ध बाल अधिकारों पर साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन

कौशाम्बी (डॉ नरेन्द्र दिवाकर की रिपोर्ट): जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्त्वावधान में विन्ध इंटर कॉलेज मोहम्मदपुर चायल कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) में शोषण के विरुद्ध बालकों के अधिकार एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदत्त सेवाएं विषय पर विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया।

इस शिविर में बच्चों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि अपर जिला जज सह सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पूर्णिमा प्रांजल ने कहा कि भारतीय संविधान सहित कई अन्य विधियों व कानूनों में बाल अधिकारों के शोषण के विरुद्ध प्रावधान हैं। बाल अधिकारों के शोषण से जहां उनके शिक्षा के मौलिक अधिकार का हनन होता है वहीं उनके शारिरिक व मानसिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे अपराधों से निपटने के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के दिशा निर्देश पर लीगल सर्विस यूनिट फ़ॉर चिल्ड्रेन का गठन प्रत्येक जिले में किया गया है। यह यूनिट देखभाल व संरक्षण योग्य बालकों और विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों के संरक्षण और पुनर्वास से संबंधित मामलों में सहायक के तौर पर कार्य करेगी।

इसके अतिरिक्त मुख्य अतिथि ने पॉक्सो अधिनियम 2012, बाल कल्याण समिति, किशोर न्याय बोर्ड, सखी वन स्टॉप सेंटर, भारतीय न्याय संहिता, पीसीपीएनडीटी एक्ट आदि में वर्णित बाल अधिकारों के संरक्षण से जुड़े प्रावधानों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि शिक्षकों व अभिभावकों का कर्तव्य है कि बच्चों का ध्यान रखें, उनकी बातों को अनसुना न करें और उनके अधिकारों का हनन होने से रोकें। ऐसा न करना भी अपराध की श्रेणी में आता है। यदि किसी बालक के अधिकारों का उल्लंघन होता है तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय व तहसीलों में बने लीगल एड क्लिनिक में जाकर नियुक्त पीएलवी से शिकायत करें या चाइल्ड लाइन और विधिक सेवा प्राधिकरण के टोल फ्री नंबर पर शिकायत दर्ज कराएं।

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इस दौरान पीएलवी डॉ. नरेन्द्र दिवाकर ने शोषण के ख़िलाफ़ बालकों के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अधिवेशन, किशोर न्याय अधिनियम, पॉक्सो अधिनियम और राष्ट्रीय बाल नीति आदि के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के प्रत्येक बच्चे को बालक माना गया है। बच्चों को मारना, चिढ़ाना, मजाक करना, मजदूरी करवाना, उनके साथ छल करना, उनकी बात अनसुनी करना, अश्लील चित्र या किताब दिखाना, भद्दे इशारे करना, गाली-गलौच करना, डराना-धमकाना, तंग करना व बलात्कार आदि जैसे कृत्य अपराध की श्रेणी में आते हैं।

बाल अधिकारों के हनन को रोकने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में शोषण के ख़िलाफ़ अधिकारों का प्रावधान है। अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। बाल मज़दूरी (निषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 के मुताबिक, 14 साल से कम उम्र के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में काम नहीं लगाया जा सकता। लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत, बालक के लिए मित्रतापूर्ण वातावरण बनाए रखने का प्रावधान है।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाने वाली निःशुल्क विधिक सहायता, पीड़ित को क्षतिपूर्ति योजना, आपदाग्रस्त लोगों की मदद आदि से संबंधित प्रदान की जाने वाली सेवाओं के बारे में भी विस्तार से बताया। शिविर में नायब तहसीलदार चायल कपिल देव मिश्र और विद्यालय के प्रबंधक लवकुश कुमार ने भी अपने विचार रखे। शिक्षक धर्मेन्द्र पटेल ने अतिथियों का धन्यवाद व्यक्त किया। इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक सोहन लाल, शिव कुमार सहित सैकड़ों की संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे।

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