हैदराबाद: सर्वविदित है कि अनुवाद सेतु का कार्य करता है। इससे अपरिचित भी परिचित होकर आत्मीय बनता है और ज्ञान बढ़ाता है। अतएव हमें किसी भी भाषा से दूसरी भाषा से अनुवाद करते शुद्धता और गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना चाहिए अन्यथा मूल भाव का अनर्थ हो जाता है। आज के तकनीकी युग में अच्छे अनुवादकों और निर्मल मन से काम करने वाले भाषा सेवियों की निहायत जरूरत है।
यह उद्गार कन्नड और हिंदी के विख्यात विद्वान डॉ प्रधान गुरुदत्त द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा आयोजित आभासी वैश्विक परिचर्चा में अध्यक्ष पद सुशोभित करते हुए प्रकट किए गए। वे भारतीय भाषा परिसंवाद में “हिंदी और कन्नड की स्थिति और चुनौतियाँ” विषय पर मैसूर से यह विचार प्रकट किये। इस आयोजन में 25 से अधिक देशों के हिंदी से जुड़े विचारकों, साहित्यकारों और भाषाकर्मियों ने उत्साहवर्षक ढंग से सहभागिता की।
विशिष्ट वक्ता के रूप में बेंगलुरु विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं प्रसिद्ध बसवेश्वर अनुवादक प्रभाशंकर प्रेमी ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं के विकास से ही हिंदी का विकास होगा। हमें ज्ञान विज्ञान के अनुवाद को त्वरित गति से आगे बढ़ाना चाहिए तथा क्षेत्रीयतावाद की जकड़न से ऊपर उठकर निर्मल मन से काम करना चाहिए। भाषा के शिक्षकों और प्राध्यापकों आदि की नियमित नियुक्तियाँ होनी चाहिए।
मैसूर विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ प्रतिभा मुदलियार का कहना था कि मनुष्य होने की पहली शर्त भाषा ही है। हमें क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों को ठीक से समझकर ही हिंदी या अन्य भाषाओं के अनुवाद में प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने हिंदी और कन्नड के ज्ञान पीठ से सम्मानित लेखकों एवं प्रमुख साहित्यकारों की चर्चा करते हुए दोनों के समृद्ध साहित्य को जन मानस तक पहुँचाने की पुरजोर अपील की।
कर्नाटक में विश्वविद्यालय हिंदी प्राध्यापक संघ के महासचिव एवं बिशप कॉटन विमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज, बेंगलुरु के अध्यक्ष डॉ विनय कुमार यादव ने कहा कि नई शिक्षा नीति में निर्धारित भाषायी विविधता और मातृभाषा में शिक्षा के कार्यान्वयन को विद्वानों, शिक्षकों, प्रशासकों और विद्यार्थियों पर छोड़ देना चाहिए। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
कार्यक्रम में स्वागत भोपाल से साहित्यकार एवं संयोजक डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा किया गया और बखूबी संचालन पौंपे कालेज मंगलुरु के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ मंजूनाथ द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में देश/विदेश के हिंदी प्रेमी विद्वान साहित्यकार उपस्थित थे। संयोजन एवं सहयोग मॉरीशस से विश्व हिंदी सचिवालय की महासचिव डॉ माधुरी रामधारी, केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो सुनील कुलकर्णी, अमेरिका से श्री अनूप भार्गव और सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, यूके से साहित्यकार दिव्या माथुर, वंदना मुकेश, कनाडा से डॉ शैलेजा सक्सेना तथा भारत से प्रो वी जगन्नाथन, वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव, डॉ रमेश यादव, डॉ विजय नगरकर, डॉ विजय मिश्र, डॉ गंगाधर वानोडे तथा डॉ जयशंकर यादव द्वारा किया गया।
तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा और डॉ सुरेश मिश्र ‘उरतृप्त’ द्वारा बखूबी संभाला गया। अंत में सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं सुधी श्रोताओं के प्रति आत्मीयता से आभार प्रकट किया गया। समूचा कार्यक्रम वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष एवं साहित्यकार अनिल जोशी के कुशल एवं सुयोग्य मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ शीर्षक से यू-ट्यूब पर द्रष्टव्य है। रिपोर्ट लेखन कार्य वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से बेलगावि, कर्नाटक से डॉ॰ जयशंकर यादव द्वारा किया गया।