भारतीय मान्यता के अनुसार प्रत्येक वर्ष का एक नाम होता है। इस प्रकार साठ वर्षो की एक आवृत्ति होती है। इसीलिए तेलुगु भाषियों के लिए षष्टिपूर्ति अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है। अर्थात जिस नाम के वर्ष में पैदा हुए हैं, उस वर्ष में दुबारा प्रवेश करना।
इस वर्ष का नाम है- शुभकृत। युग की आदि = युगादि। यह शब्द धीरे-धीरे उगादी और युगादि हो गया है। तेलुगु भाषा भाषियों के लिए नव वर्ष उगादी से आरंभ होता है। अन्य त्योहारों के समान इस दिन भी घर की साफ-सफाई, नूतन वस्त्र धारण, पकवान-मिष्टान बनाना होते ही हैं। परन्तु कुछ विशेष उल्लेखनीय बातों के बारे में ध्यान दिलाना चाहती हूँ।
स्नान के पश्चात सबसे पहले प्रसाद के रूप में भगवान को समर्पित उगादी पच्चडि का सेवन (खाली पेट) करना चाहिए।
इसमें छह स्वाद होते हैं। 1- मीठा नया गुड/गन्ने के टुकड़े, 2- नमक, 3- खट्टा, नयी इमली, 4- कसैला, कैरी (आम), 5- तीखा हरी मिर्च और 6- कड़वा- नीम के फूल।
इनके छोटे -छोटे टुकड़े बनाकर मिलाते हैं। मिलाने पर रस निकलता है। साहित्य के विद्यार्थी भरत मुनि के रस सिद्धान्त को अवश्य स्मरण करते हैं। क्योंकि इन सबका सम्मिश्रण ही साहित्य है। समाज के हित को लेकर चलने वाला और मन को रसास्वादन कराने वाला! ये सारे प्राकृतिक स्वाद हैं। यह प्रतीकात्मक है कि जीवन सुख और दुःखों का सम्मिश्रण है।
यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायी है। ऋतु परिवर्तन के आरंभ में इसका सेवन शरीर को व्याधियों से लडने के लिए तैयार रखता है। इसे पकाने की आवश्यकता नहीं। आयुर्वेद में कहा गया है कि आज से आरंभ होने वाले वसन्त नवरात्रियों में प्रतिदिन लेना अधिक लाभ दायी होता है। राम नवमी के दिन भी काली मिर्च, इलायची और गुड के सम्मिश्रण का रस पिलाया जाता है। क्योंकि उष्णं उष्णेन शीतलम! इस दिन आप अपने इष्ट देव की पूजा कीजिए। मन चाहे पकवान बनाकर खाइए।
शाम के समय पंचांग श्रवण होता है। इसमें हर राशि वालों के वर्ष भर के फल (भविष्य) के बारे में सुनाये जाते हैं। साथ में समूचे देश का राशिफल, शासक का राशिफल भी कहा जाता है। सम्मान और अपमान की मात्रा वर्ष भर में आने वाले ग्रहण, होने वाली वर्षा, उगने वाली फसल की मात्रा, कष्ट देने वाली प्राकृतिक विपदायें, पशु और मनुष्यों की जनसंख्या के क्षय और वृद्धि के बारे में, शुभ मुहूर्त, शुक्र और गुरु तारा के अस्त आदि का ब्योरा मिलता है।
आश्चर्य होता है कि कितने सही ढंग से हर चीज की गणना कर, निर्धारित करने की क्षमता हमारे पास है, जिसे हम समझ नहीं पा रहे हैं। जिस दिन उगादि पर्व पडता है, उस दिन के अधिपति, उस वर्ष का राजा है। अबकी बार उगादि 2 अप्रैल 2022 शनिवार के दिन होने के कारण इस वर्ष का राजा शनि हैं। गोचार के आधार पर सारी गणना होती है। पंचम स्वर में गाने वाले कोयल का गान सुनने के लिए लोग ललाइत रहते हैं, जो वसन्त के आगमन पर ही सुना जा सकता है। वरना काक और पिक का अंतर कौन जाने?
उगादी पर विशेष रूप से स्थान-स्थान पर विश्व भर के तेलुगु भाषियों के कई कवि सम्मेलन, साहित्यिक स्पर्धा, कवियों/साहित्यकारों का सम्मान होना बहुत गर्व की बात है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि उगादी और वसन्त ऋतु के लिए कवि कोकिल भी अपने काव्य पाठ करने के लिए प्रतीक्षा करते
गुड़ी पड़वा
गुड़ी पड़वा मराठी और कोंकणी हिन्दुओं के लिए पांरपरिक त्योहार है। गुड़ी पड़वा का त्योहार को किसी ने किसी रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा वंसत समय का त्योहार है। गुड़ पड़वा हिन्दू नव वर्ष आरम्भ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा, उगादि या युगादि कहा जाता है। ‘गुड़ी’ का अर्थ ‘विजय पताका’ होता है। ‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि’। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादी’ और महाराष्ट्र में यह पर्व ‘ग़ुड़ी पड़वा’ के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।
गुड़ी पड़वा वसंत के आगमन और रबी फसलों की कटाई का प्रतीक है। यह त्योहार उस पौराणिक दिन से जुड़ा हुआ है इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बंदनवार समृद्धि, व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। ‘उगादि’ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ की रचना की।
शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से शिक्तशाली शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए। आज भी घर के आंगन में ग़ुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ीपडवा नाम दिया गया।
महाराष्ट्र में गुड़ी पांडव के रूप में जाना जाता है। गोवा के हिंदू कोंकणी, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना राज्य में उगादी और कश्मीरी पंडितों के बीच नवरेह के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इस अवसर को नबा बरसा के रूप में, असम में बिहू के रूप में, केरल में विशु के रूप में, तमिलनाडु में पुतुहांडु के रूप में मनाया जाता है। इसे साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है। यह त्योहार भारत में ही नहीं नेपाल, बर्मा, कंबोडिया व अन्य देशों में भी मनाया जाता है। आशा करते हैं कि यह शुभकृत वर्ष सार्थक नाम सिद्ध होगा। सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
लेखिका डॉ सुमन लता