युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच: ‘सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन की प्रासंगिकता’ विषय पर संगोष्ठी संपन्न

हैदराबाद : युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच पंजीकृत न्यास, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वार्षिक पंचम ऑनलाइन संगोष्ठी ‘सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन की प्रासंगिकता’ विषय पर आयोजित की गई। डॉ रमा द्विवेदी (अध्यक्ष आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं श्रीमती दीपा कृष्णदीप महासचिव ने संयुक्त विज्ञप्ति में बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पुष्पा जोशी (नोएडा) ने की। मुख्य अतिथि एवं वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही (कोटा राजस्थान) रहे एवं गौरवनीय विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) मंच पर उपस्थित रहे हैं।

डॉ रमा द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया एवं संस्था का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के साथ-साथ विविध क्षेत्रों की प्रतिभाओं को प्रोत्साहित एवं सम्मानित करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों को उनके उत्कृष्ठ साहित्यिक योगदान के लिए प्रतिवर्ष वार्षिक आयोजन में पुरस्कृत करती है।

‘सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन की प्रासंगिकता’ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ रमा द्विवेदी ने कहा कि सोशल मीडिया ने हिंदी साहित्य को ग्लोबल बनाया है। इसने छोटे बड़े सभी रचनाकारों को समान रूप से प्लेटफार्म सर्वसुलभ कराया है। महामारी के लॉकडाउन के समय में साहित्य सृजन करने में सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है और लोगों के अवसाद को दूर कर जीवन को संतुलित रखने में इससे सहायता मिली है। सोशल मीडिया साधन है साध्य नहीं इसलिए इसका उपयोग हमें स्वविवेक सहित करना चाहिए। तभी इसकी सार्थकता सर्वसिद्ध होगी।

कार्यक्रम का शुभारंभ वसुंधरा त्रिवेदी की सरस्वती वंदना के साथ हुआ। प्रथम सत्र का संचालन महासचिव दीपा कृष्णदीप ने किया। दीपा कृष्णदीप ने कार्यक्रम की अध्यक्षा आदरणीया वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पुष्पा जोशी एवं गौरवनीय विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय का स्वागत किया एवं उनका परिचय दिया। “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ। ” अनमोल एहसास शीर्षक में- ‘सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन की प्रासंगिकता’ पर व्याख्यान एवं दूसरे भाग में ‘मन के रंग मित्रों के संग’ संस्मरण के साथ आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि एवं वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार श्री जितेंद्र निर्मोही (कोटा, राजस्थान) का परिचय सुनीता लुल्ला (संयुक्त सचिव) ने दिया एवं आदरणीय जितेंद्र निर्मोही को वक्तव्य के लिए आमंत्रित किया।

‘सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन की प्रासंगिकता’ विषय पर अपना व्यापक वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही ने कहा कि सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन वैश्विक ही नहीं बहुआयामी भी है। यह एकल भी है और सामूहिक भी। साहित्य व्यष्टि से समष्टि और समष्टि से व्यष्टि की ओर की यात्रा करता है। भारतीय संस्कृति और भारतीयता को सामने लाने में इसने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साहित्यकार इसके सकारात्मक पक्ष पर ही ध्यान देते हैं, यही इसकी उपादेयता है।

गौरवनीय विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार/कवि रामकिशोर उपाध्याय ने ‘सोशल मीडिया पर साहित्य सृजन की प्रासंगिकता’ पर अपने वक्तव्य में कहा “फेसबुक पर लाइक्स और कमेंट्स साहित्यिक लोकप्रियता के छद्म मानदंड हैं”। हालांकि फेसबुक ने हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन गंभीर साहित्य और सामाजिक सरोकारों के प्रति कोई प्रतिबद्धता दिखाई नहीं देती है। अतः फेसबुक पर साहित्य की मौलिकता की कोई गारंटी नहीं है। लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए लाइक्स और कमेंट्स की संख्या को आधार मान बैठे हैं। फेसबुक पर हिन्दी के पाठक बढ्ने से साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का बड़ा नुकसान हुआ है एवं फेसबुक की व्यवसायिकता के चलते घटिया एवं अस्तरीय साहित्य को भी बढ़ावा मिल रहा है।

कार्यक्रम की अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पुष्पा जोशी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि यह सत्य है कि फेसबुक और व्हाट्सअप ने हिन्दी साहित्य को बहुत आगे बढ़ाया है। बहुत से नए रचनाकार जो आगे नहीं बढ़ पा रहे थे उन्हें सोशल मीडिया ने बहुत प्रोत्साहित किया है तथा फेसबुक में लोगों को हिंदी में लिखना भी सिखाया है। कोरोना काल के लॉकडाउन में फेसबुक ने सभी रचनाकारों को साहित्य सृजन में व्यस्त रखा है और अवसाद को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया के सदुपयोग के जहाँ अनेक फायदे हैं तो वही दुरूपयोग के कई नुकसान भी हैं। अतः इसका उपयोग हमें सोच समझकर करना चाहिए तभी साहित्य सृजन की सार्थकता एवं प्रासंगिकता सिद्ध होगी। ‘मन के रंग मित्रो के संग’ सत्र के दूसरे भाग में युवा रचनाकार श्री रमाकांत श्रीवास ने `ईश्वर के प्रति आस्था’ से संबंधित स्वयं का एक अनुभव साझा किया जो बहुत ही सार्थक, संदेशप्रद एवं हास्य रस से परिपूर्ण था।

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। युवा साहित्यकार शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने बहुत सुन्दर ढंग से संचालन किया।
उपस्थित रचनाकारों ने गीत , ग़ज़ल , मुक्तक , छंदमुक्त कविता आदि विविध विषयों पर काव्यपाठ करके माहौल को बहुत खुशनुमा बना दिया । रमाकांत श्रीवास , विनीता शर्मा , भावना मयूर पुरोहित ,सूरज कुमारी गोस्वामी , किरण सोनी( कोरबा) , विनोद गिरि अनोखा ,अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली ) दर्शन सिंह , डॉ रमा द्विवेदी , वसुंधरा त्रिवेदी( इंदौर) , संपत देवी मुरारका ,सुनीता लुल्ला, जितेंद्र निर्मोही ,रामकिशोर उपाध्याय, लावण्या साहित्य , डॉ सुरभि दत्त ,तृप्ति मिश्रा ने विविध रसों से परिपूर्ण रचनाएँ सुनाई | डॉ पुष्पा जोशी ने अपनी बधाई एवं शुभकामनाएँ दीं एवं अध्यक्षीय काव्यपाठ किया । डॉ. पी. के. जैन , प्रो ऊषा सिन्हा ( लखनऊ) डॉ मिथिलेश झा (झारखण्ड ) भी इस अवसर पर उपस्थित रहे तथा अतुलित ठाकर ने रिकॉर्डिंग की भूमिका निभाई । दीपा कृष्णदीप के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।

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