विश्व भाषा अकादमी और सूत्रधार: ‘कामकाजी महिलाओं के समक्ष चुनौतियां’ गोष्ठी में वक्ताओं ने दिया यह सुझाव

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई और सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत (हैदराबाद) के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संस्था अध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सहभागियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और होली मिलन समारोह की शुभकामनाएं दी। मां सरस्वती का आशीर्वाद लेकर कार्यक्रम प्रारम्भ किया।

सरस्वती वन्दना

श्रीमती रिमझिम झा ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। तत्पश्चात् अध्यक्ष ने दोनों संस्थाओं की स्थापना के उद्देश्यों और गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई। प्रथम सत्र में ‘कामकाजी महिलाओं के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर परिचर्चा रखी गई।

सरिता सुराणा ने कहा …

विषय प्रवेश करते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि वर्तमान समय में कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर दोनों जगह दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। आज भी स्त्रियों के सम्बन्ध में हमारे भारतीय समाज की मानसिकता में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है। आज भी एक कामकाजी महिला से यही अपेक्षा की जाती है कि वह पहले घर की जिम्मेदारियों को और साथ में ऑफिस की जिम्मेदारियों को एक साथ संभाले। उसे रुकने और थकने का कोई अधिकार नहीं है।

घर और बाहर की ज़िम्मेदारियां निभाते-निभाते वह यंत्रचालित मशीन बन गई है और अन्दर ही अन्दर खोखली होती जा रही है। आम मध्यमवर्गीय परिवारों की महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी न तो स्वनिर्णय का और न ही अपनी कमाई को अपने ऊपर खर्च करने या किसी और के लिए उपहार आदि खरीदने का अधिकार है। ऑफिस में भी बॉस और सहकर्मियों के साथ सामंजस्य बिठाते-बिठाते वह चक्की के दो पाटों के बीच पिसती हुई अपनी पूरी जिन्दगी बिता देती है।

डॉ सुमन लता के विचार…

मुख्य वक्ता डॉ सुमन लता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जब हम नौकरी करते थे तो हम भी इस दौर से गुज़र चुके हैं। बचत की अपेक्षा हमेशा महिलाओं से ही की जाती है। बाहर काम पर जाते समय महिलाओं को अपने व्यक्तित्व को सुघड़ और शालीन बनाए रखने के लिए प्रसाधन सामग्री की भी जरूरत पड़ती है। लेकिन आम भारतीय महिला को घर की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए अपने तैयार होने और ठीक से खाना खाने का समय ही नहीं मिलता। उसे अगले दिन अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए रात को जागकर नोट्स तैयार करने पड़ते हैं। आज महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर तो हो गई हैं लेकिन मानसिक तनाव बढ़ने के कारण उनमें डायबिटीज और अन्य मानसिक बीमारियां बढ़ रही हैं।

श्रीमती रिमझिम झा ने कहा…

श्रीमती रिमझिम झा ने कहा कि वह स्वयं एक कामकाजी महिला हैं इसलिए चाहती हैं कि वे सास बनकर अपनी बहू के लिए स्ट्रेस का कारण नहीं बनेंगी। वह उसका पूरा साथ देंगी तभी समाज में परिवर्तन आएगा। श्रीमती भावना पुरोहित ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कामकाजी महिलाओं को रिश्तेदार हमेशा ताने देते हैं और एक दिन भी उसे आराम करने को नहीं मिलता है। कटक, उड़ीसा से द्विभाषीकवयित्री एवं अनुवादक, विशिष्ट अतिथि श्रीमती संघमित्रा रायगुरु ने कहा कि एक महिला दूसरी महिला को सहयोग और समर्थन दे, तभी समाज में परिवर्तन आएगा। परिचर्चा बहुत ही सार्थक रही।

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी में राजस्थान से श्रीमती उर्मिला पुरोहित, संभलपुर, उड़ीसा से विशिष्ट अतिथि टीजीटी हिन्दी इन दिल्ली पब्लिक स्कूल श्रीमती पुष्पलता सारंगी, कोलकाता से श्रीमती सुशीला चनानी, कटक उड़ीसा से श्रीमती संघमित्रा रायगुरु और श्रीमती रिमझिम झा, हैदराबाद से श्रीमती भावना पुरोहित, डॉ.सुमन लता, प्रदीप देवीशरण भट्ट और सरिता सुराणा ने महिला सशक्तिकरण और अन्य विषयों पर अपनी रचनाओं का पाठ किया। श्रीमती तृप्ति मिश्रा भी गोष्ठी में उपस्थित थीं। रिमझिम झा ने काव्य गोष्ठी का सफल संचालन किया। सरिता सुराणा के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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