तेलंगाना में उगादी त्यौहार और परंपरा

13 अप्रैल (मंगलवार) को उगादी मनाया गया। तेलंगाना के साथ दक्षिण भारत में उगादी को नये साल क रूप में मनाया जाता है। मुख्यमंत्री और विपक्ष पार्टियां अपने कार्यालयों में त्यौहार मनाते है। वेद-पंडितों को बुलाकर पंचागों का पठन करवाते है। वेद-पंडित उनके कल्याण और विजयी होने के बारे में बताते हैं।

आज हम कोरोना काल में जी रहे है। फिर भी उगादी हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि हमें अतीत को पीछे छोड़कर आने वाले भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। किसी तरह के असफलता पर उदास नही होना चाहिए। बल्कि सकारात्मकता के साथ नयी शुरुआत करनी चाहिए। कोविड 19 के नियमों का पालन करते हुए सबको आगे बढ़ना है।

कोरोना के दूसरे साल और दूसरे दौर में उगादी

इस बार हम कोरोना के दूसरे साल और दूसरे दौर में उगादी मना रहे हैं। लोगों की लापरवाही और सरकारी गैर-जिम्मेदाराना फैसलों के कारण कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे हैं। खुशी की बात यह है कि कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हो गया है। मगर कुछ अफवाहों के कारण लोग वैक्सीन लेने से कतरा रहे हैं। यह अच्छी बात नहीं है। सभी को निडर होकर वैक्सीन लेने के लिए आगे आना चाहिए।

दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व

उगादी दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। ग्रागेरियन कैलेंडर के हिसाब से उगादी मार्च या अप्रैल में आता है। वसंत आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह पर्व नयी फसल के आगमन का भी अवसर होता है।

साल सुख और शांति से गुजरने की प्रार्थना

लोग उगादी के दिन नये कपड़े पहनते हैं। तेलंगाना के कुछ इलाकों में मालिक उनके खेतों में काम करने वालों के लिए भी नये कपड़े देते हैं। इस दिन सभी लोग अलस सुबह उठते हैं। तिल के तेल को अपने सर और शरीर में लगाकर स्नान करते हैं। उसके बाद मंदिर जाते हैं और नया साल सुख और शांति से गुजरने की प्रार्थना करते हैं। साथ ही पशुओं को भी नदी-नालों में ले जाकर स्नान करवाते हैं।

स्वादिष्ट व्यंजन

इस दिन बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन जैसे पुरण-पोली ( तेलंगाना में बुरेलु नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का पराठा होता है, जिसे चने के दाल, गेहुं के आंटे, गुढ़ और हल्दी आदि को पानी की सहायता से गूंथकर देशी में तलकर बनाया जाता है। इस व्यंजन को पच्चड़ी के साथ खाया जाता है), लड्डू और अन्य मिठाइयां बनाते हैं और अपने परिवार और आस-पास के लोगों को खाने पर बुलाते हैं। तेलंगाना में उगादी को तीन दिन तक मनाया जाता है।

उगादी को बहुत ही शुभ मानते हैं। इसे नव वर्ष की शुरुआत मानते हैं। लोग भगवान की मूर्तियों को सुन्दर व सुगन्धित चमेली के फूलों का हार चढ़ाते हैं और पूजा व आराधना करते हैं। पंडितों के वेद-मंत्रों के गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय हों जाता हैं।

मकानों की दीवारों को सफ़ेद रंग से पुताई करते हैं और ताज़ा आम के पत्तों से सजाते हैं। मकानों को फूलों से सजाते हैं। लोग अपने घरों के दरवाजों पर कलश और उस पर नारियल और आम के पत्तों को रखते हैं।

कहा जाता है कि शिवजी ने ब्रह्मा जी को शाप दिया था कि उनकी पूजा नहीं होगी। मगर तेलंगाना में उगादि का त्यौहार खासकर भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित किया जाता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी ने मत्स्य का अवतार लिया था। माना जाता है ब्रह्मा ने इस श्रृष्टि की रचना की, उसी दिन इस ब्रह्माण्ड को बनाना शुरू कर दिया था।

उगादी को लेकर कई सारे ऐतहासिक तथा पौराणिक वर्णन मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि उगादि के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक भी हुआ था। इसके साथ ही इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।

यदि सामान्य परिपेक्ष्य से देखा जाये तो उगादि का यह त्योहार उस समय आता है जब भारत में वसंत ऋतु अपने चरम पर होती है और इस समय किसानों को नयी फसल भी मिलती है। क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए प्रचीन समय से ही किसानों द्वारा इस पर्व को नयी फसल के लिए ईश्वर को दिये जाने वाले धन्यवाद के रुप में मनाया जाता है।

उगादी पच्चड़ी

उगादी के दिन एक विशेष पेय बनाने की भी प्रथा है। इस पेय को पच्चड़ी नाम से जाना जाता है। पच्चड़ी नामक पेय को नई इमली, आम, नारियल, नीम के फूल, गुड़ जैसे चीजों को मिलाकर नये मटके में बनायी जाती है। लोगों द्वारा इस पेय को पीने के साथ ही आस-पड़ोस में भी बांटा जाता है। उगादी के दिन कर्नाटक में पच्चड़ी के अलावा एक और चीज का भी लोगों द्वारा खायी जाती है- इसे ‘बेवु-बेल्ला’ नाम से जाना जाता है।

यह गुड़ और नीम के मिश्रण से बना होता है, जो हमें हमारे जीवन में इस बात का ज्ञान कराता है कि जीवन में हमें मीठेपन तथा कड़वाहट भरे दोनों तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ता है। इस मीठे-कड़वे मिश्रण को खाते वक्त लोगों द्वारा निम्नलिखित संस्कृत श्लोक का उच्चारण किया जाता है।

“शतायुर्वज्रदेहाय सर्वसंपत्कराय च। सर्वारिष्टविनाशाय निम्बकं दलभक्षणम्॥”

श्लोक का अर्थ है– ‘वर्षों तक जीवित रहने, मजबूत और स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति के लिए एवं विभिन्न प्रकार के धन की प्राप्ति तथा सभी प्रकार की नकरात्मकता का नाश करने के लिए हमें नीम के पत्तों को खाना चाहिए।’

उगादी के दिन घर में रंगोली या स्वास्तिक का चिन्ह बनाने से घर में सकरात्मक ऊर्जा पैदा होती है। यदि इस दिन आप सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल बनाकर उसपर ब्रम्हा जी स्वर्ण मूर्ति स्थापित करेंगे तो आपको ब्रम्हा जी की विशेष कृपा प्राप्त होगी।

इस आधुनिक समय में उगादी के पर्व को मनाने में पहले के अपेक्षा काफी अंतर आ गया है। पहले के समय में इस दिन को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता था। व्यस्त जीवन के कारण इस पर्व का आनंद लेने के लिए समय नही निकाल पाते हैं। मगर हमें इसके प्राचीन परम्पराओं का पालन करने की कोशिश करनी चाहिए।

उगादी पर्व हमें प्रकृति के और भी समीप ले जाने का कार्य करता है। पच्चड़ी नामक पेय पर गौर करें तो यह शरीर के लिए काफी स्वास्थ्यवर्धक होता है। जोकि हमारे शरीर को मौसम में हुए परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार करता है और हमारे शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन कोई नया काम शुरु करने पर सफलता अवश्य मिलती है। इसलिए उगादी के दिन लोग दुकानों का उद्घाटन, भवन निर्माण का आरंभ आदि जैसे नये कार्यों की शुरुआत करते हैं।

उगादी पर्व का इतिहास काफी प्रचीन है और इस त्यौहार को कई शताब्दियों से दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जा रहा है। दक्षिण भारत में चंद्र पंचाग को मानने वाले लोगों ने इसे नव वर्ष के रुप में भी मनाते है। इतिहासकारों का मानना है कि इस पर्व की शुरुआत सम्राट शालिवाहन या जिन्हें गौतमीपुत्र शतकर्णी के नाम से भी जाना जाता है। उनके ही शासनकाल में हुआ था। इसके साथ ही इस पर्व के दौरान वसंत अपने पूरे चरम पर होता है। मौसम काफी सुहावना रहता है।

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