मार्मिक लेख : आज राजा को प्रजा के साथ होना चाहिए था…

थाली, लोटा, कटोरी न जाने क्या-क्या बजाकर वायरस को भगाने का प्रयास किया गया था। आज फिर इतना सन्नाटा क्यों है? आवाज़ सिर्फ कुछ महिलाओं की सुनाई दे रही है। समस्याएं जब तक प्रांत विशेष में बंटी रहेगी, पुनरावृत्ति होती रहेगी। यह कैसी स्वाधीनता है जिसमें चेतना का विकास हुआ ही नहीं है।

जघन्य से जघन्यतम घटनाओं को हजम कर देने की शक्ति जनता ने पा ली है।‌ एक पिता की पगड़ी जमीन पर गिर गई जब उसने अपनी बेटी की लाश को निर्वस्त्र जमीन पर पड़े देखा। राजा कैसे पगड़ी बांध सकता है? क्या व्यक्तिगत स्वार्थ के सामने मूलभूत सिद्धांतों ने वाकई में घुटने टेक दिए हैं। आज राजा को प्रजा के साथ होना चाहिए था। प्रजा जागो।

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तुम्हें भी समझना होगा जब तक धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग आदि के जाल में तुम फंसे रहोगे तब तक तुम्हारे ही घर ठीक तुम्हारे आंचल तले दूर्योधन, दु:शासन, जयचंद आदि जन्म लेंगे फिर करते रहो तुम शंखनाद कृष्ण तुम्हें बचाने नहीं आएगा क्योंकि तुमने ही बोया है यह बीज। अब भी देर नहीं हुई है पर अब न जागे तो जाने क्या-क्या ही होगा।

डॉ. सुपर्णा मुखर्जी एक जागरूक नागरिक
सैनिकपुरी, हैदराबाद केंद्र
9603224004
drsuparna.mukherjee.81@gmail.com

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