‘सूत्रधार’ ने किया संत कबीर दास पर विशेष परिचर्चा गोष्ठी का शानदार आयोजन, इनकी उपस्थिति रही हैं खास

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : साहित्य, कला, संस्कृति, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्रीय संस्था ‘सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, हैदराबाद, भारत द्वारा आयोजित 53 वीं ऑनलाइन मासिक गोष्ठी बहुत ही उमंग और उत्साह के साथ सम्पन्न हुई। संस्थापिका सरिता सुराणा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई थी। उन्होंने सभी सम्मानित सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती कुसुम सुराणा को प्रथम सत्र की अध्यक्षता हेतु मंच पर सादर आमंत्रित किया। रिमझिम झा की स्वरचित सरस्वती वन्दना से गोष्ठी प्रारम्भ हुई।

तत्पश्चात् सरिता सुराणा ने कबीर दास जी का जीवन परिचय और साहित्यिक परिचय प्रस्तुत किया। उन्होंने कबीर दास जी के विभिन्न दोहों के माध्यम से उदाहरण देते हुए कहा कि कबीर दास जी का प्रत्येक दोहा अपने आप में एक दृष्टांत है। उन्होंने अपने दोहों में उदाहरण के माध्यम से अपनी बात को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया।कबीर केवल कवि नहीं अपितु सम्पूर्ण संस्कृति और एक जीवन दर्शन है। कबीर उस समय भी प्रासंगिक थे और आज़ भी हैं।

शिक्षिका रिमझिम झा ने कबीर दास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि आजकल के बच्चों को कबीर दास के दोहे पढ़ाते हुए उन्हें बहुत सवालों का सामना करना पड़ता है और वे बहुत मुश्किल से सन्तुष्ट होते हैं। आजकल अध्यापन का कार्य बहुत कठिन हो गया है। रिटायर्ड प्रिंसिपल ममता सक्सेना ने कबीर दास जी के दोहों की संगीतमय प्रस्तुति दी। हर्षलता दुधोड़िया ने कबीर दास के नाम कुण्डलिया छंद प्रस्तुत किया।

अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए कुसुम सुराणा ने कहा कि कबीर दास जी ने हमें विनम्रता सिखाई और गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा का भाव रखना सिखाया। उनके दोहे सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते हैं। साथ ही साथ आडम्बर और पाखण्ड का भी विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि आज़ की यह परिचर्चा गोष्ठी बहुत ही सारगर्भित रही, इससे हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। तृप्ति मिश्रा ने प्रथम सत्र का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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द्वितीय सत्र में समस्त पिताओं को समर्पित काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार एवं नाटककार सुहास भटनागर ने इस सत्र की अध्यक्षता की। इस काव्य गोष्ठी में मुम्बई, महाराष्ट्र से कुसुम सुराणा, उदयपुर, राजस्थान से उर्मिला पुरोहित, कटक, उड़ीसा से रिमझिम झा, हैदराबाद से हर्षलता दुधोड़िया, ममता सक्सेना, तृप्ति मिश्रा, विशाखापट्टनम से कनक पारख, अमेरिका से किरन सिंह, उदयपुर से सपना श्रीपत और सरिता सुराणा ने पिता से सम्बन्धित एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ और संवेदनशील रचनाएं प्रस्तुत की। उनको सुनकर सभी की आँखों में पानी आ गया। प्रायः सभी सहभागियों ने एकमत से इस बात को स्वीकार किया कि पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता और वे सब आज भी उन्हें बहुत याद करते हैं।

अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए सुहास जी ने सभी रचनाकारों की रचनाओं की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और कहानी विधा के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। सरिता सुराणा ने कहा कि हम अपने विचार गद्य या पद्य की किसी भी विधा में व्यक्त कर सकते हैं। चाहे वह कविता, नज़्म, ग़ज़ल या गीत हो या फिर लघुकथा, कहानी, संस्मरण और व्यंग्य हो। गोष्ठी में अमेरिका से ओम कुमार सिंह की विशेष उपस्थिति रही। उन्होंने कार्यक्रम की सराहना की और संस्था के प्रति अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की। स्पेन, बार्सिलोना से भावना पुरोहित ने अपनी उपस्थिति प्रदान की। तृप्ति मिश्रा ने बहुत ही कुशलतापूर्वक काव्य गोष्ठी का संचालन किया और अंत में सबके प्रति आभार प्रकट किया।

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