हैदराबाद: सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत, हैदराबाद द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर ‘वैश्विक पटल पर हिन्दी की स्थिति’ विषय पर एक परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन शहर के हृदय स्थल बंजारा हिल्स में स्थित प्रतिष्ठित सांस्कृतिक केन्द्र ला-मकान में किया गया। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी शोध संस्थान, देहरादून के महानिदेशक डॉ जयन्ती प्रसाद नौटियाल के सम्मान में आयोजित किया गया।
संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित अतिथियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। उन्होंने विशेष अतिथि डॉ जयन्ती प्रसाद नौटियाल, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, हैदराबाद के निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे और भारतीय स्टेट बैंक, हैदराबाद के पूर्व सहायक महाप्रबंधक, राजभाषा विष्णु भगवान शर्मा को मंच पर आमंत्रित किया।
संस्था सचिव आर्या झा द्वारा प्रस्तुत महाप्राण निराला द्वारा रचित सरस्वती वन्दना से परिसंवाद का शुभारंभ हुआ। सरिता सुराणा ने संस्था की गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। तत्पश्चात् संस्था के सदस्यों द्वारा मंचासीन अतिथियों का शॉल एवं मोती माला से सम्मान किया गया। फिर डॉ जयन्ती प्रसाद नौटियाल ने अपना उद्बोधन दिया।
नौटियाल ने अपने शोध कार्य के आरंभ से लेकर अब तक की प्रगति और शोध कार्यों में आई अड़चनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उनके अनुसार पिछले 42 वर्षों से अपने शोध कार्य के द्वारा वे निरन्तर इस प्रयास में लगे हुए हैं कि हिन्दी भाषा को विश्व में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा की मान्यता मिले। उन्होंने कहा कि सन् 1997 में विश्व के हरेक देश का डाटा प्रामाणिक स्रोतों से जुटाया और उसे प्रकाशित करने के लिए राजभाषा विभाग की पत्रिका राजभाषा भारती को भेजा, लेकिन उनके संपादकीय विभाग द्वारा अनेक प्रश्नों के समाधान के बाद ही उनकी रिसर्च रिपोर्ट को प्रकाशित किया गया।
इस शोध का नवीनतम संकरण 2004 को विश्व के कई देशों में प्रकाशन हेतु भेजा गया। सम्पूर्ण विश्व में जब यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई तो इसमें हिन्दी को प्रथम स्थान पर तथा मंडारिन (चीनी भाषा) को दूसरे स्थान पर दिखाया गया था। इस शोध से चीन में खलबली मच गई और चीन सरकार ने एक वेब पोर्टल बनाया और उस पर डॉ नौटियाल की रिसर्च के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्हें सबसे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। इससे बौखला करके चीन ने वह पोर्टल ही बंद कर दिया। उसके बाद उन्होंने अपने रिसर्च पेपर अंतरराष्ट्रीय संस्था एथ्नोलॉग को भेजे। यह संस्था विश्व में भाषाओं की रैंकिंग तय करती है।
संस्था के संपादक पॉल लेविस ने कहा कि वे इस रिपोर्ट को अगले अंक में प्रकाशित करेंगे, क्योंकि वर्तमान अंक की सामग्री को प्रकाशन हेतु फ्रीज कर दिया गया है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि एथ्नोलॉग के अनुसार स्टैंडर्ड हिन्दी बोलने वालों की संख्या दर्शाई जाती है जो गलत है। भाषा बोलने की दृष्टि से स्टैंडर्ड और नॉन स्टैंडर्ड जैसा भेद नहीं होना चाहिए। स्टैंडर्ड हिन्दी बोलने वालों की संख्या के आधार पर वे हिन्दी को तीसरे स्थान पर दिखाते हैं, जबकि उन्होंने अंग्रेजी के लिए दोहरा मापदंड अपनाया है।
अगर स्टैंडर्ड अंग्रेजी की बात करें, जिसे क्वींस इंग्लिश कहते हैं तो उसे बोलने वाले एक करोड़ लोग भी नहीं मिलेंगे। उसके बाद उन्होंने अपने शोध पत्र को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा को भेजा। संस्थान ने इस शोध के फैक्ट चेक हेतु विशेषज्ञ नियुक्त किया जिन्होंने इस शोध को प्रामाणिक माना। यह शोध सन् 2021 से संबंधित था। अब उन्हें अपने शोध 2023 के लिए सरकारी प्रमाणीकरण व्यवस्था के अधीन भाषा संस्थान से अनुमोदन मांगा है व शीघ्र ही अनुमोदन मिलने की संभावना है। जिस दिन उन्हें अनुमोदन मिल जायेगा, उस दिन हिन्दी भाषा को विश्व में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा का दर्जा मिल जायेगा।
सभा में उपस्थित सभी विद्वजनों ने उनके श्रमसाध्य शोध कार्य की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। इसके उपरांत प्रश्नोत्तर सत्र रखा गया। इसमें श्रीमती आर्या झा और उपस्थित विद्वानों ने इस शोध पर प्रश्न पूछे और अपनी जिज्ञासाएं उनके समक्ष प्रस्तुत की और डॉ नौटियाल से यथोचित स्पष्टीकरण और समाधान प्राप्त किया। विष्णु भगवान शर्मा ने अपने विचार रखते हुए संस्था के कार्यक्रमों की प्रशंसा की और अपना सम्पूर्ण सहयोग देने का विश्वास दिलाया।
भाषाविद एवं सिंडिकेट बैंक के राजभाषा विभाग के पूर्व सहायक महा प्रबंधक डॉ वी वेंकटेश्वर राव ने सभी विद्वानों की ओर से यह प्रस्ताव पारित किया कि भारत सरकार के राजभाषा विभाग को इस शोध को प्रचारित और प्रसारित करने हेतु अनुरोध किया जाए। उन्होंने यह प्रस्ताव भी रखा कि इस शोध के सरकारी प्रमाणीकरण के आ जाने के बाद एथ्नोलॉग को रैंकिग में बदलाव करने के लिए भेजा जाय। सभी विद्वानों ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया। उपस्थित विद्वजनों ने अपनी प्रकाशित पुस्तकें एक-दूसरे को भेंट की। डॉ वी वेंकटेश्वर राव ने अपनी सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘राजभाषा सहूलियतकार’ सरिता सुराणा को प्रदान की।
इस कार्यक्रम में संस्था की उपाध्यक्ष डॉ संगीता जी. शर्मा, सचिव श्रीमती आर्या झा, वरिष्ठ परामर्शदाता सुहास भटनागर, वरिष्ठ संयोजिका श्रीमती ज्योति गोलामुडी, वरिष्ठ सदस्या श्रीमती भगवती अग्रवाल और संगठन मंत्री सुश्री खुशबू सुराणा की गरिमामय उपस्थिति रही। प्रसिद्ध भाषाविद डॉ वी वेंकटेश्वर राव का इस परिसंवाद के संयोजन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके साथ-साथ सभा में प्रख्यात विद्वान जी वी मुरलीधर शर्मा, इन्दौर से पधारी हुईं साहित्यकार भूतपूर्व प्राचार्य ममता सक्सेना, हिन्दी भाषा प्रेमी रमा भईरी, मोहम्मद मुनीर और प्रवीण एस की गरिमामय उपस्थिति रही।
इस दौरान उपस्थित सभी विद्वजनों का सम्मान किया गया। सभी ने कार्यक्रम को अत्यन्त सफल और सारगर्भित बताया। इस कार्यक्रम में ला-मकान के प्रबन्धन समिति सदस्यों और वहां पर कार्यरत सभी सदस्यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। संस्था द्वारा उन्हें धन्यवाद दिया गया। डॉ संगीता शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।