महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जयंती पर विशेष

आज महर्षि दयानंद सरस्वती 200वीं जयंती है। इस संदर्भ में दिल्ली में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में देश के अनेक लोग भाग लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जयंती कार्यक्रम को संबोधित किया। स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच ऐसे महान महर्षि दयानंद की सेवाओं को याद करना अपना कर्तव्य मानता है। क्योंकि दयानंद जी ने वैदिक धर्म की उच्चता का सविस्तार से वर्णन और सम्पूर्ण आर्य जनमानस का मार्ग प्रशस्त किया। उनके महान ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के जरिए लोगों को जीवन जीने की रोशनी मिलती है। ऐसे महान महर्षि देव दयानन्द सरस्वती जी की केवल 59 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका निधन धोखा यानी षड्यंत्र से हुआ। उनके दूध में कांच का बारीक पीसा हुआ चूर्ण रसोइए के जरिए दुध में मिलाकर दिया गया। इसके कारण 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर (राजस्थान) में दयानंद जी ने प्राण त्याग दिये।

महर्षि दयानन्द जी हमेशा कहते थे कि वेदों की ओर लौट आओ। वेद ही सत्य और ईश्वरीय ज्ञान है। साथ ही महर्षि ने ही स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला को प्रज्वलित किया। इससे क्रांति की लहर चल पड़ी। यही देश को स्वराज का मंत्र साबित हुआ। इसी मंत्र के कारण 1857 की क्रान्ति का जन्म हुआ और कई राजा इनके समर्थन में उतरे और इकठ्ठा होते चले गए। हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि स्वामी जी का इतिहास के पन्नों पर इस अवधी के बारे में कोई विवरण नहीं मिलता। क्योंकि गुप्त रूप से सभी राजा और योद्धाओं को स्वराज क्रान्तिकारी ले आने में वे प्रमुख भूमिका निभा रहे थे।

दयानन्द का बचपन का नाम मूलशंकर था और इनके पिताजी का नाम करशनलाल था। बहुत ही प्रसिद्ध और सम्पन्न ब्राह्मण समाज से आते थे। इनका जन्म टंकारा गांव, काठियावाड़, राजकोट गुजरात में 12 फरवरी 1824 को हुआ। इनके गुरु प्रज्याचक्षु गुरुवर विराजानंद महाराज जी थे। महाराज ने दयानन्द जी से गुरु दक्षिणा के रूप में कहा कि शिक्षा को सफल बनाओ, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो। देश में प्रकाश से इस अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर करो। यही तुम्हारी गुरु दक्षिणा होगी। इसके बाद दयानन्द ने वेदों का डंका ऐसा बजाया कि वे विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय स्थान पर पहुंच गये।

स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु इन्होंने जो क्रान्ति की ज्वाला जगाई उसे देख सभी राजा और योद्धा एक जूट हो गये। इसी के दम पर गुप्त रूप से सन् 1857 की अंग्रेजों के विरुद्ध इन्होंने ही सम्पूर्ण क्रान्ति का बिगूल बजाया। इसी कारण उस समय के इतिहास के पन्नों पर से महर्षि दयानन्द जी का नाम हमें नहीं मिलता है। वैसे तो दयानन्द के बारे में कितना भी लिखूं, सूर्य की रोशनी में दीया जलाने के समान है। एक बात बहुत ही आवश्यक है। वह यह है कि एक राष्ट्र, एक भाषा होनी चहिए और वह भाषा केवल हिन्दी ही है।

हम सभी आर्य बंधु, ऋषि देव दयानन्द सरस्वती जी महाराज के ऋणी है, जिनके कारण ही हमें आर्य कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। हमें सच्चे अर्थों में बहुत कुछ करना है और महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के आदशों पर चल कर उनके सपनों को साकार करना है। स्वतन्त्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच यह बताना चाहता हैं कि हम हृदय से प्रयत्न करेगें कि जो भी स्वामी जी के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं या बढ़ना चाहते हैं उन्हें अपने से जितना हो सके समर्थन और सहयोग करते रहेंगे।

– लेखक भक्त राम, अध्यक्ष स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच, हैदराबाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X