आज (2 अक्तूबर) महात्मा गांधी जी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयन्ती हैं। वैसे तो इन दो व्यक्तित्वों ने उल्लेखनीय कार्य किया, लेकिन इस दिन जितने जोर शोर से गांधी जी की जयन्ती मनाई जाती (कहीं-कहीं तो दीपोत्सव जैसा माहौल भी देखने को मिलता) है, उतना जोर-शोर से पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री जी की जयन्ती का आयोजन नहीं होता है। उनके नाम पर छुट्टी भी नहीं दी जाती है। मैं यहां किसी के कार्य को कमतर करके नहीं देख रहा हूं, क्योंकि सबका अपना अपना महत्व है। हां एक बात अवश्य है कि महात्मा गांधी जी के नाम पर स्वच्छता अभियान जोर-शोर से चलाया गया, लेकिन वहीं दूसरी तरफ स्वच्छता के समाजशास्त्र के प्रणेता संत गाडगे महाराज जी, जिन्होंने गली-गली और गांव-गांव जाकर न केवल स्वच्छता के महत्व को बताया।
अपितु स्वयं गलियों और गांवों को साफ सुथरा करके स्वच्छता जो अलख जगाया उसकी किसी अभियान से तुलना ही नहीं की जा सकती। गाडगे महाराज जी पढ़े लिखे न होने के बावजूद जानते थे कि नेक तंदुरुस्ती लाख नियामत और सही मायने में क्लीन लाइनेश इज गॉड लाइनेश को चरितार्थ भी किया। फिर उनके समाज के प्रति किए गए इस महत्वपूर्ण योगदान की उपेक्षा केन्द्र सरकार ने की। जब कि होना यह चाहिए था कि इस अभियान का आइकॉन गाडगे महाराज जी को बनाया जाता और इसकी शुरुआत उनके जन्मदिन या फिर पुण्यतिथि के अवसर पर की जाती। बहरहाल ऐसा क्यों नहीं किया गया यह बड़ा सवाल है।
लेकिन एक बात अवश्य है कि गाडगे बाबा की झाड़ू ने देश को एकता का पाठ अवश्य पढ़ाया था। क्या उस समय गाडगे बाबा स्वयं या अन्य लोगों ने सोंचा था कि आने वाले समय में झाड़ू क्रांति का प्रतीक बन सकता है? शायद नहीं। क्योंकि जब गाडगे बाबा सार्वजानिक तौर पर झाड़ू लगाते थे या साफ़-सफाई करते थे तो लोग उन्हें पागल समझते थे। जबकि गाडगे बाबा झाड़ू के भरोसे लोगों को स्वस्थ रखना चाहते थे। वे एक सन्देश यह भी देना चाहते थे कि यह झाड़ू जो कई सींकों से मिलकर बना है वह बड़ी से बड़ी गन्दगी को दूर कर सकती है।
यही सीकें यदि अलग रहें तो कुछ भी नहीं कर सकतीं अर्थात समाज में हर धर्म हर जाति और समुदाय एक होकर रहेंगे तो विषमता रूपी गन्दगी को भी आसानी से ख़त्म किया जा सकता है। इसका एक सन्देश यह भी था कि यदि हम सब एक हो जाएं तो अंग्रेजों को भी यहां से भगाने में देर नहीं लगेगी। इसीलिए गाडगे बाबा ने अपने हांथों में झाड़ू पकड़ा और उसी झाड़ू के जरिए (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों से) लोगों को एकजुट होने का संदेश दिया।
उन्होंने सकल समाज के लिए कई धर्मशालाओं, छात्रावासों (विशेष रूप से वंचित तबकों के लिए), गौशालाओं आदि का निर्माण किया/कराया, जिससे सामाजिक विषमता को ख़त्म किया जा सके। उन्होंने झाड़ू किसी को संघर्ष करने के लिए नहीं दिया, बल्कि वह एक प्रत्यक्ष उदाहरण बने। उन्हें यह आभास था कि झाड़ू कोई मामूली चीज नहीं है। इससे राष्ट्र के प्रति एकता की भावना का भी संचार होता है। हालांकि शायद ही उन्होंने राष्ट्रीय एकता शब्द का इस्तेमाल किया हो पर वह सबको साथ लेकर चलते थे। उनका उद्बोधन भी किसी खास धर्म, जाति या समुदाय के लिए न होकर सभी के लिए होता था।
संत गाडगे ने कुष्ठ रोगियों के लिए भी काम किया। इसके लिए गांधी की तारीफ की जाती है लेकिन गाडगे बाबा को याद नहीं किया जाता। गाडगे बाबा ने मरीजों के लिए अस्पतालों तथा कुष्ठ रोगियों के लिए कुष्ठ आश्रमों का निर्माण करवाया। उन्होंने जीव रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण काम किये।. जिन धार्मिक स्थलों पर बकरे, मुर्गे व भैसे कटते थे गाडगे बाबा ने जीवदया नामक संस्थाओं की स्थापना की शुरुआत की।
आज भी यदि उसी झाड़ू को दिखावे के लिए न प्रयोग कर सही मायनों में स्वच्छता अभियान चलाया जाये तो गाडगे बाबा का वही झाड़ू क्रांति का प्रतीक बन सकता है। लेकिन केन्द्र सरकार ने जब स्वच्छता अभियान चलाया तो उसने इसका आइकन गाडगे बाबा को न बनाकर महात्मा गांधी को बनाया। जबकि गाडगे बाबा के बरक्स स्वच्छता अभियान के मामले में गांधी जी ने कम काम किया था। यदि धोबी समुदाय के लोग भी गाडगे बाबा की झाड़ू रूपी क्रान्ति के प्रतीक के संकेत को समझ सकें और एकजुट होने का प्रयास करें तो धोबियों की एकजुटता बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर सकती है। हमारी आपसी सामूहिकता जिसे हमने लगभग भुला दिया है बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए हमें अपने महापुरुष के इस संदेश को अपनाकर सम्पूर्ण देश में एकजुट होना चाहिए और अपने समुदाय के महापुरुषों, क्रांतिकारियों और वीरांगनाओं को सम्मान दिलाने हेतु आगे आना होगा।
– नरेन्द्र दिवाकर (9839675023) कौशाम्बी की कलम से…
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