25 मार्च पण्डित रामचन्द्र देहलवी जी की जयंती है। पंडित रामचंद्र जी देहलवी को भारतवर्ष में शास्त्रार्थ महारथी के नाम से जाना जाता था। पंडित जी संस्कृत, हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी, अरबी भाषा के भी महान विद्वान थे। भाषा पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत होने से कई ग्रंथों के सही मूल्यांकन करने में उनसे बड़े-बड़े लोग अलग-अलग धर्मों में शास्त्रार्थ पर टिक नहीं सकते थे। कुरान पर तो अच्छे से अच्छे मौलवी भी उनके ज्ञान की प्रशंसा करते हैं और उनकी बात को कोई काट नहीं सकता था। पण्डित रामचन्द्र देहलवी का जन्म 25 मार्च 1881 में नीमच (मध्य प्रदेश) में हुआ था। रामनवमी के दिन जन्म लेने से इनका नाम रामचन्द्र रखा गया था।
हैदराबाद में निजाम सरकार ने तांडव मचा रखा था और खुले रूप में धर्मांतरण करना, हिंदुओं पर जुल्म और अत्याचार करना और बाहर से मुसलमानों को लाकर बसाना, निजाम का एक अलग स्वतंत्र राज्य बनाने का सपना था। इन सब के कारण हिंदुओं में अविश्वास, अभाव और हीन भावना उत्पन्न हो रही थी। हिंदुओं को मंदिर में पूजा और अर्चना करना भी बहुत भारी और मुश्किल हो रहा था।
उन्हीं दिनों की बात है हैदराबाद राज्य में सिद्दीक दीनदार जन बसवेश्वर नामक व्यक्ति अपने को लिंगायत मत का अवतार बतलाकर हुबली, धारवाड़, मैसूर, गुलबर्गा, रायचूर इत्यादि स्थानों के भोले-भाले ग्रामीण लिंगायत भाइयों और हिंदुओं को मुसलमान बनाने का काम निजाम सरकार की गुप्त शह पा कर आरंभ किए हुए था। निजाम सरकार का धार्मिक विभाग पर्याप्त धन धर्म – परिवर्तन के निमित्त देता था। सिद्दीक दीनदार की फरेबकारी, चालाकी, धोखेबाजी से जनता को परिचित और सावधान किया जाए, क्योंकि हैदराबाद निजाम ने यहां के मुसलमानों में यह श्रेष्ठता का भाव उत्पन्न कर रखा था कि तुम अल्पसंख्यक हो परंतु शासक हो।
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सिद्दिक दीनदार ने बड़े जोर – शोर से तबलीग (धर्म परिवर्तन) का काम हैदराबाद और मैसूर राज्य में फैला रखा था। उसने “सरवरे आलम” नामक पुस्तक प्रकाशित की थी, जिसमें योगेश्वर कृष्ण और हिंदू देवताओं की निंदा की गई थी। इस पुस्तक के विरुद्ध आर्य समाज सुल्तान बाजार के मंत्री श्री चंदूलाल जी ने जो उस समय आर्य समाज के प्राण कहलाते थे, इस कार्य को अपने हाथों में लेकर हैदराबाद में हिंदुओं के भीतर जागृति उत्पन्न कर दी थी। चंदूलाल जी के साथ सर्व श्री बंसीलाल व्यास, मुन्नालाल मिश्र, मोहनलाल बलदवा और मोहनाचार्य को हैदराबाद की जनता कदापि नहीं भूल सकती, इन्होंने हिंदुओं पर शासन के अत्याचार, उत्पीड़न और अनाचार के विरुद्ध आवाज उठाई, जिसके कारण निजाम द्वारा दिए गए कष्टों का शिकार होना पड़ा था, जिन्होंने तन, मन, धन से अपने – आप को आर्य समाज की सेवा और प्रचार के लिए समर्पित कर रखा था।
श्री चंदूलाल जी ने सन 1929 ई. में दिल्ली से सुप्रसिद्ध कुरानवेत्ता पंडित रामचंद्र जी देहलवी को प्रवचन के लिए बुलाया जो सिद्दीक दीनदार की पोल खोलने और इस्लामी शिक्षा की वास्तविकता को प्रकट कर सकें। हैदराबाद में सर्वसाधारण में यह चर्चा फैल गयी की अरबी के एक आर्य समाज विद्वान व्यक्ति आए हुए हैं, और उनका भाषण सुनने चाहिए। देवीदीन बाग, सुल्तान बाजार में 5 दिन तक पंडित रामचंद्र जी देहलवी के विभिन्न विषयों का भाषण हुए। देवीदीन बाग श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था। स्त्री-पुरुषों के सिरों का समूह समुद्र के समान दूर-दूर तक दिखाई पड़ रहा था। जनता की निगाहें पंडित जी के आगमन की बाट जोह रही थी।
एक कोने से नारा उठा “जो बोले सो अभय” – “वैदिक धर्म की जय” – सारा मैदान इस नारे से गूंज उठा। कुछ मिनटों में ही जनसमूह से होता हुआ एक विशालकाय महापुरुष जिनके सिर पर सफेद पगड़ी बंधी थी, शेरवानी पहने हुए थे और जिनकी मूछें लंबी थी और जो धीरे-धीरे जनता को हाथ जोड़कर नमस्ते का उत्तर दे रहे थे, ऊंचे मंच पर जो भाषण के निमित्त निर्मित किया गया था और जिसे बड़े से सलीके से सजाया गया था, ले जाया गया। उस वेदी पर पहुंचकर देहलवी जी ने चारों तरफ दृष्टि फेरी और दूर-दूर तक फैले हुए जनसमूह को नमस्ते कहा।
घड़ी की सुइयां ठीक 6 बजा रही थी कि एक छोटे कद के खादीधारी वृद्ध सज्जन ने जोरदार स्वर में कहा – “भाइयों। अब दृष्टांत सम्राट, मधुर भाषी प्रवक्ता, कुरान – वेत्ता पंडित रामचंद्र जी देहलवी भाषण करेंगे।” वह वृद्ध सज्जन आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता और मंत्री श्री चंदूलाल जी थे। पंडित रामचंद्र देहलवी जी ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे व्याख्यान का विषय होगा- “परमात्मा, आत्मा और भौतिक पदार्थों की प्राचीनता।” पंडित जी ने ईश्वर की एकता और आत्मा तथा भौतिक तत्वों की प्राचीनता पर भाषण करते हुए वेद, कुरान के संदर्भों और प्रमाणों एवं तर्क द्वारा यह बात सिद्ध करने का सफल प्रयास किया कि तीनों वस्तुएं आदिकाल से हैं। पंडित जी के प्रमाणों ने मन मस्तिष्क को झिंझोड़ कर रख दिया और चिंतन का नया मार्ग सभी के लिए खोल दिया।
पंडित रामचंद्र जी देहलवी हैदराबाद के कई जिलों में प्रचार हेतु गए जिसमें हलीखेड़ भी एक है जहां पर देहलवी जी के स्वागत के लिए हजारों आर्य समाजी राज्य के कोने-कोने से आए थे। गांव में पहुंचते ही हजारों आर्य समाजियों के साथ आर्य समाज के प्राण भाई बंसी लाल जी ने हार्दिक और भव्य स्वागत किया। हाथों में तलवारें, लाठियां और पिस्तौल लिए हुए चिटगोपा, उदगीर और बीदर के बांके और मतवाले नवयुवक देहलवी जी के आगे आगे चले रहे थे। समारोह तीन दिन तक आनंद और उत्साह के साथ चलता रहा। पण्डित जी के व्याख्यानों ने हिंदुओं में नवजीवन के प्राण फूंक दिये।
देहलवी जी प्रवचनों से प्राभावित होकर कई युवाओं ने आर्य समाज में प्रवेश किया और हिन्दुओं की रक्षा की। निजाम सरकार ने तो इन पर प्रतिबन्ध लगा दिया की कोई भाषण नहीं कर सकते और फिर इनके निजाम स्टेट में प्रवेश पर भी पाबंदी। इतने प्रभावशाली नेताओं के मार्ग दर्शन पर युवाओं ने अपने आप को समर्पित किया था और हमें निज़ाम रियासत से मुक्ति दिलाई।
स्वतन्त्र भारत में, निजाम शासन को ध्वस्त करने के बाद, एक बार हैदराबाद आगमन पर पण्डित रामचन्द्र जी देहलवी का भव्य स्वागत करते हुए हैदराबाद मुक्ति संग्राम में सशस्त्र क्रांति के सूत्रधार, युवा आर्य समाजी एवं प्रतिष्ठित नेता पण्डित गंगाराम जी एडवोकेट एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित किया जाएगा पण्डित रामचन्द्र देहलवी जी का नाम, इनके बगैर हैदराबाद मुक्ति आंदोलन का इतिहास अधूरा रह जाता। धन्य हो आपका, जो आर्य समाज और महर्षि दयानन्द को अपना सब कुछ अर्पित किया और आर्य समाज का गौरव बढ़ाया। ऐसे महान देहलवी का 87 वर्ष की आयु में 1968 में देहान्त हो गया।
लेखक – भक्त राम, स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच के चेयरमैन
सुख विहार, 2-2-647/A/51,
साईबाबा नगर, शिवम् रोड,
बाग अंबरपेट, हैदराबाद – 500 013