केंद्रीय हिंदी संस्थान: सारगर्भित रही ‘भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन विषयक संगोष्ठी, जानिए इन वक्ताओं के विचार

हैदराबाद/नई दिल्ली: केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से ‘भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन-संभावनाएँ और चुनौतियाँ’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई।

ज्ञातव्य है कि आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति का युग है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नए अध्ययन, अनुसंधान और विविध आयाम स्थापित हो रहे हैं। अब प्रौद्योगिकी जीवन का अनिवार्य अंग बन गई है। भारतीय भाषाओं में तकनीकी पठन-पाठन और लेखन-बोधन सोचनीय रहा है। आज इसकी संभावनाओं और चुनौतियों पर गहन चर्चा के दौरान विद्वानों द्वारा नवीनतम जानकारियाँ दी गईं। वैश्विक हिंदी परिवार के विचारक, संस्थापक एवं भाषा आग्रही, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने अपना मंतव्य कार्यक्रम की प्रस्तावना परिचालित करते हुए स्पष्ट किया था कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं को लाना समाज और सरकार की प्राथमिकता है।

भारतीय भाषाओं को शिक्षण व्यवस्था में मान सम्मान दिलाना इस देश की अस्मिता, आत्मनिर्भरता और शक्ति के लिए बहुत आवश्यक है। इस कार्य का सबसे महत्वपूर्ण आयाम है भारतीय भाषाओं में विशेषकर तकनीकी और व्यावसायिक लेखन में भारतीय भाषाओं में पुस्तकें और पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराना। तकनीकी पाठ्यक्रमों विशेषकर इंजीनियरिंग के पहले दो वर्षों के लिए ए आई सी टी ई ने 250 से अधिक मानक पुस्तकें तैयार कर प्रकाशित की हैं। हम इस क्षेत्र के लिए यह प्रेरक मानते हैं। इससे रास्ता तो प्रशस्त हुआ परंतु यह सफ़र की शुरुआत है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि हिंदी ज्ञान विज्ञान की भाषा बने न केवल पारिवारिक या अन्यत्र संवाद की।

कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ राजेश कुमार ने भारतीय भाषाओं और प्रौद्योगिकी में लेखन की पृष्ठभूमि और महत्ता को रेखांकित किया। तदोपरांत केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे द्वारा अतिथि परिचय कराते हुए सुधी श्रोताओं का आत्मीयता से शाब्दिक स्वागत किया गया तथा इस वैश्विक भाषाई विमर्श से ज्ञानार्जन का आग्रह किया गया। इस अवसर पर देश विदेश से फेस बुक और यूट्यूब आदि पर सैकड़ों विद्वान जुड़े थे।

हिंदी भवन, भोपाल के निदेशक एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ जवाहर कर्नावट ने भाषा और प्रौद्योगिकी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को अपनी मृदुल व विद्वतापूर्ण वाणी में संक्षेप में प्रस्तुत किया। उन्होंने शालीनता और तकनीकी दक्षता सहित संचालन करते हुए विषय के विस्तृत पक्षों को उजागर किया। डॉ कर्नावट ने नई शिक्षा नीति के लागू होने और इंजीनियरिंग व मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी और भारतीय भाषाओं में शुरू होने के मद्देनजर विषय को विस्तृत फ़लक प्रदान किया और प्रस्तुति हेतु वक्ताओं को आदर सहित आमंत्रित किया।

भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन के संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के सेवानिवृत्त महानिरीक्षक श्री गिरीश कुमार ने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर काल में यह चिंताजनक रहा है किन्तु पिछले कुछ वर्षों में इस ओर विशेष ध्यान दिया जाना नए विहान का उदय है। उन्होने सुझाव दिया कि आम बोल-चाल एवं प्रचलित शब्दों का प्रयोग श्रेयस्कर होगा। भारतीय भाषाओं में असीम क्षमता है। हालांकि हमारे प्राचीन समृद्ध पुस्तकालय और ज्ञान कोश के भंडार नष्ट किए गए किन्तु फिर भी अपरिमित भाषायी विरासत विद्यमान है। संयुक्त राष्ट्र संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य देशों की सेना के साथ संयुक्त रूप से कार्य का संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया कि अनेक देशों में हमारी भारतीय भाषाओं की समृद्धि के कारण बहुत सम्मान है। इसे हमें अक्षुण्ण रखना चाहिए।

वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष डॉ गिरीश नाथ झा ने कार्यक्रम से जुड़कर प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि तकनीकी लेखन चुनौती के साथ अवसर भी है। बहुत से शब्दों को यथावत देना स्वाभाविक है। अंग्रेजी के आगत एवं प्रचलित शब्दों को ग्रहण करने हेतु समाचार पत्र और पत्रिकाओं आदि पर हमारी निगहबान आँखें गड़ी हैं। हाल ही में कार्यभार संभालने के बाद डिजिटलाइजेशन पर बल दिया जाने लगा है। मानक शब्द निर्माण हेतु जन मन की स्वीकार्यता को भी ध्यान में रखा जा रहा है। मानक शब्द सर्च इंजिन में स्वतः ही जुड़ जाएँगे। आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं के अलावा राष्ट्र की अन्य भाषाओं जैसे तुलु, भोजपुरी, मगही और पूर्वोत्तर आदि से भी शब्द ग्रहण किए जाएँगे ताकि लोगों तक सहज भाव से पहुँच सकें। हाल ही में इंजीनियरिंग के ग्यारह भाषाओं में पचास हजार और मेडिकल के बीस हजार शब्द बनाए गए हैं। शिक्षार्थी कोश और पोषित संस्थाओं की भी समीक्षा की जा रही है। अनुभवी विद्वान डॉ झा ने कहा कि एक शब्द की विभिन्न क्षेत्रों में प्रयुक्ति भी दर्शाई जाएगी और शब्दों की बहुउद्देश्यीय योजना से आकांक्षाएँ पूरी की जाएंगी।

वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषाकर्मी राहुल देव ने पैनल के विद्वानों से संवाद पर प्रसन्नता प्रकट की। उन्होने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा सात-आठ महीनों के अंदर ढाई सौ से अधिक पुस्तकों के हिन्दी व अन्य भाषाओं में अनुवाद और प्रकाशन को क्रांतिकारी कदम और बड़ा बदलाव बताया। उनका कहना था कि इस वर्ष से भारतीय भाषाओं में शुरू इंजीनियरिंग की पढ़ाई से पाँच वर्ष बाद निकले छात्र द्विभाषी रूप में भी निष्णात होंगे तथा रोजगार और पैकेज आदि संबंधी शंकाएँ भी दूर होंगी। अगले चरण में जब मौलिक पुस्तक लेखन होगा तब भारतीय भाषाओं की अपार क्षमता उजागर होगी और उच्चतम ज्ञान ग्रहण के अवसर मिलेंगे। अब तक निर्मित अधिकांश शब्दों का लोगों तक न पहुंचना अफसोसजनक है। इसे वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के लिंक से सन्नद्ध करना श्रेयस्कर होगा। इन संस्थाओं में सोशल मीडिया विभाग की भी जरूरत है जिससे शब्द संपदा आम जन तथा शिक्षकों-छात्रों आदि तक पहुंचे। यह भी आवश्यक है कि सूचना तकनीकी की भागीदारी के साथ भारतीय भाषाओं में तकनीकी शब्दों की उपलब्धता संबंधी लेख भी छपते रहें।

केरल से जुड़े अनुवाद विशेषज्ञ के सी अजयकुमार ने संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार तकनीकी लेखन में भी भारतीय भाषाओं के शब्दों को ग्रहण करने का सुझाव दिया तथा राज्य सरकार के स्तर पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत बताई। वयोवृद्ध भाषा वैज्ञानिक प्रो वी आर जगन्नाथन का मत था कि प्रत्येक राज्य में संबन्धित भाषा के विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र शब्द निर्माण आदि विविध क्षेत्रों से जोड़कर ज़िम्मेदारी तय की जाए तथा निर्मित शब्दों की उपयोगिता का समय-समय पर परीक्षण होता रहे। हमें अखिल भारतीय पारिभाषिक शब्दावली की भी निहायत जरूरत है।

जापान के ओसाका से जुड़े पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकामी का अनुभवजन्य मत था कि हिन्दी प्रेमी चाहेंगे तो तकनीकी लेखन और पठन-पाठन अवश्य संभाव्य है।तकनीकी विशेषज्ञ श्री मोहन बहुगुणा का कथन था कि तकनीकी शब्दों का सरलीकरण सतही ज्ञान का रोड़ा है। ज्ञान विज्ञान और सामाजिक विज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों के लिए शब्दावली स्वाभाविक है। आयोग द्वारा निर्मित शब्दों का ई-पब्लिकेशन, समेकन और डाउनलोड प्रबंधन अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी होगा।

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी जी ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की ढाई सौ से अधिक बेहतरीन तकनीकी पुस्तकों के लेखन एवं प्रकाशन पर सभी का अभिनंदन किया और इन्हें शिक्षकों व विद्यार्थियों तक पहुँचने की आवश्यकता बताई तथा इनका फीड बैक लेने की निहायत जरूरत जताई। उनका कहना था कि बदलते युगीन परिवेश के अनुसार भारतीय भाषाएँ ज्ञान विज्ञान, कॅरियर और रोजगार की भाषा तथा जीवन निर्माण का सशक्त माध्यम बनें। चिकित्सा आदि क्षेत्रों के लिए भी सामूहिक सत प्रयत्न हो। शोध जर्नल, शब्दावली, तकनीकी पुस्तकें आदि वेब पर भी उपलब्ध हों तथा समग्र रणनीति के साथ तकनीकी लेखन में आगे बढ़ते हुए व आशंकाएँ निर्मूल साबित करते हुए मार्ग प्रशस्त किए जाएँ।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अखिल भारतीय तकनीकी परिषद के उपाध्यक्ष डॉ महावीर पूनिया ने इस चर्चा पर प्रसन्नता प्रकट की और शिक्षा की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा के बैरियर को बहुत विलंब से हटने पर पीड़ा प्रकट की। उनका कहना था कि हमारे देश में बारहवीं कक्षा के बाद लगभग 27 प्रतिशत विद्यार्थी ही उच्च शिक्षा के लिए नामांकित होते हैं जो अन्य देशों की तुलना में बहुत ही कम है। इससे वास्तविक प्रतिभा उजागर नहीं हो पाती। इसका एक प्रमुख कारण अपनी भाषाओं का माध्यम न होना है जिससे लगभग पंचानवे प्रतिशत विद्यार्थी वंचित रह जाते हैं।

दीर्घानुभवी विद्वान पूनिया जी ने बताया कि इस समय इंजीनियरिंग की 330 शाखाओं की पढ़ाई हो रही है। अभी तात्कालिक रूप से इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष के लिए 7 माह में 22 विषयों की 6 भाषाओं में 250 से अधिक पुस्तकों का बेहतरीन प्रकाशन किया गया है जो एक कीर्तिमान है। द्वीतीय वर्ष के लिए लगभग आठ सौ विविध पुस्तकों की जरूरत है जिनके प्रकाशन का कार्य संतोषजनक ढंग से प्रगति पर है। अब ये डिजिटल सामग्री के साथ प्रभावी वीडियो रूप में भी बन रही हैं। वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली आयोग की शब्दावली का हमें लाभ मिल रहा है। अब औपन्यासिक रूप में भी पुस्तक निर्माण की योजना है जिससे विद्यार्थी, प्राध्यापक की मदद के बिना भी रुचि के साथ पढ़कर समझ सकें। हमें सामूहिक प्रयास से आगे बढ़ाना होगा ताकि भारत-भारती का सम्मान बढ़े और विश्व गुरु का सपना साकार हो सके।

इस कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ तोमियो मीजोकामी, जापान, दिव्या माथुर व शिखा रस्तोगी, थाइलैंड, प्रो संध्या सिंह, सिंगापुर, मीरा सिंह, फिलाडेल्फिया एवं भारत से जवाहर कर्नावट, डॉ गंगाधर वानोडे, डॉ राजवीर सिंह, विजय कुमार मिश्रा, हरिराम पंसारी, किरण खन्ना, डॉ बीना शर्मा, डॉ वी रा जगन्नाथन, डॉ नारायण कुमार, डॉ मोहन बहुगुणा, डॉ सुरेश मिश्रा, डॉ राजीव कुमार रावत, डॉ विजय प्रभाकर नगरकर, डॉ सौभाग्य कोरले, डॉ महादेव कोलूर, मीनाक्षी जोशी, ललिता रामेश्वर, मधु भंभानी, सोनु कमार आदि की विशेष उपस्थिति रही।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी डॉ राजीव कुमार रावत ने कार्यक्रम के अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ता और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की तथा उनके कथनों को संक्षेप में रेखांकित किया। उन्होने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया। डॉ रावत ने हिंदी का वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, श्रोताओं, अभिप्रेरकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय से धन्यवाद दिया। ज्ञातव्य है कि यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यूट्यूब पर भी उपलब्ध है

रिपोर्ट लेखन- डॉ जयशंकर यादव

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