जगन्नाथ की निकली सवारी रे। रथ खींच पुण्य कमाना रे।।
हैदराबाद : जगन्नाथ मंदिर कुकटपल्ली के तत्वाधान में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आगामी 7 जुलाई को निकाली जाएगी। यह रथ यात्रा मंदिर के चैयरमेन अंजनी कुमार अग्रवाल और अग्रवाल समाज के अध्यक्ष मनीष अग्रवाल के नेतृत्व में आयोजित की जाएगी। इस दौरान अनेक भक्तों को मार्ग में प्रसाद वितरण करते हुए रथ यात्रा आगे बढ़ेगी। अनेक कलाकार नृत्य करेंगे और रथ यात्रा की शोभा बढ़ाएंगे।
हमारे संवाददाता ए के अग्रवाल ने रथयात्रा के बारे में विस्तार से बताया कि हमारी धार्मिक मान्यताओं में चार पवित्र धाम है। ये हैं- बद्रीनाथ, द्वारकाधीश, रामेश्वरम और जगन्नाथपुरी है। जगन्नाथ पुरी भगवान की मुख्य लीला भूमि है। राधा और कृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं। जगन्नाथ पूर्ण परात्पर भगवान हैं। ओडिशा के तट पर ऐतिहासिक शहर प्राकृतिक सौंदर्य और बहुत सुंदर कला के लिए माना जाता है। भगवान जगन्नाथ को श्री विष्णु का दसवां अवतार माना गया है। मान्यताओं के अनुसार जगन्नाथपुरी धाम को धरती का बैकुंठ कहा जाता है। यानी स्वर्ग कहा गया है।
यहां पर मंदिर परिसर में अनेक देवी देवताओं के मंदिर है। मां विमला देवी शक्तिपीठ शामिल है। मुख्य द्वार पर दो सिंह लगे हुए हैं। चारों प्रवेश द्वारों पर हनुमान विराजमान है, जो मंदिर की सदैव रक्षा करते रहते हैं। हर बरस यहां पर जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों लाखों की संख्या में वृद्ध युवा नारी बाल बच्चे भाग लेते हैं। सबकी तमन्ना होती है कि रथ को थोड़ा खींचा जाए और पुण्य कमाया जाए। इसी प्रकार पूरे भारत में अनेक जगहों पर भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। इसमें बढ़ चढ़कर लोग भाग लेते हैं और पुण्य कमाते हैं। पदम् पुराण के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो सिद्धि प्रदान करने वाली है।
जगन्नाथ मंदिर में जगत के नाथ बड़े भाई व बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। यह तीनों प्रतिमाएं कास्ट की बनी हुई हैं और हर 12 वर्ष बाद इन मूर्तियों को बदला जाता है। वेदों के अनुसार भगवान हलदर ऋग्वेद स्वरूप श्रीहरि नारायण रामदेव स्वरूप सुभद्रा देवी यजुर्वेद की मूर्ति है। शिखर पर अष्ट धातु का भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र लगा हुआ है। इसे निलचक्र कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, वास्तुशिल्पी भगवान विश्वकर्मा मूर्ति बना रहे थे तो उन्होंने राजा के पास एक शर्त रखी कि वह मंदिर का दरवाजा बंद करके मूर्ति बनाएंगे और अगर कोई अंदर आ गया तो वह मूर्ति बनाना छोड़ देंगे।
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प्रतिदिन राजा यह जानने के लिए दरवाजे के बाहर आकर खड़े हो जाते थे और आवाज सुनकर चले जाते थे। एक दिन अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी तो राजा ने अचानक दरवाजा खोल दिया और शर्त के अनुसार विश्वकर्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए। इसलिए जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां पूरी नहीं बन पाई है। आज भी इसी रूप में विराजमान है। और वैसे ही पूजा की जाती है।
पूरे भारत में भी इसी प्रकार की मूर्तियां बनाई गई हैं। प्रतिदिन मंदिर में भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी का बाल भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद सात बर्तन में एक दूसरे को ऊपर रखकर बनाए जाते हैं। ये बर्तन मिट्टी के होते हैं। इसमें आश्चर्य इस बात का है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है। फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक पकता जाता है। कहते हैं कि जितना प्रसाद बनता है, वह पूरा बांट दिया जाता है और कभी कम नहीं पड़ता है। इस दौरान रथयात्रा में रथ खींचने और दान करने से पुण्य का लाभ मिलता है। साथ ही मन को शांति मिलेगी। जय जगन्नाथ जी।