हौसले बुलंद : जुनून और दीवानगी से पीवी सिंधु ने ओलंपिक खेलों में जीते पदक

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता….

ए पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।।

इस प्रसिद्ध शेर को अक्षरश: साकार किया है तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद की पीवी सिंधु ने। अपने खेल के प्रति अद्भुत जुनून रखने वाली इस महान खिलाड़ी ने लगातार चार साल तक विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप तक पहुंच कर विजय से चूकने और फिर उसी अदम्य इच्छा के साथ विजय हासिल कर महज 21 साल की इस सलोनी खेल प्रतिभा ने भारत का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन कर दिया था।

अब एक बार फिर से इस राइजिंग क्वीन ने टोक्यो ओलंपिक में अपने देश का परचम लहरा कर हम भारतीयों को गौरवान्वित कर दिया। अपने खेल का शानदार प्रदर्शन करते हुए सिंधु ने रविवार को चीन की हेविंग को हराकर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया।

हैदराबाद में 5 जुलाई 1995 को जन्मी सिंधु का पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है। पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी पीवी रमणा और विजया की छोटी संतान सिंधु ने 8 साल की उम्र में ही बैडमिंटन को अपना कैरियर चुन लिया। वर्ष 2000 में सिंधु के पिता को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वयं खेलों से संबंधित होने के कारण सिंधु के माता-पिता ने उन पर कभी पढ़ाई का दबाव नहीं डाला, बल्कि खेलों में अपना कॅरियर बनाने के सिंधु के फैसले का पूरे दिल से स्वागत किया और प्रोत्साहित किया।

बचपन से ही सिंधु ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप-2001 के विजेता रहे पुल्लेला गोपीचंद (Pullela Gopichand) से काफी प्रभावित थी। आगे चलकर वे ही सिंधु के कोच बने और उनकी खेल प्रतिभा को निखारा। साल 2004 से सिंधु ने पुल्लेला से औपचारिक ट्रेनिंग लेना आरंभ किया, जिसके तहत उन्होंने अपने प्रतिभावान कोच से बैडमिंटन की बारीकियां सीखीं।

सिंधु के घर और खेल अकादमी के बीच लगभग 56 किलोमीटर का फासला था, फिर भी वह सुबह 4.15 बजे ही तैयार होकर यथा समय अकादमी पहुंच जातीं। खेल के प्रति उनके जुनून और दीवानगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं अपने कोच के आदेश पर सिंधु ने 8 महीने तक अपने फोन को हाथ नहीं लगाया, क्योंकि फोन से उनका ध्यान भंग हो जाया करता।

साल 2013 में सिंधु ने अपनी ऊंचाइयों की पहली सीढ़ी चढ़ी, जब उन्होंने वर्ल्ड बैडमिंटन में वरिष्ठ लेवल पर पहली बार कांस्य पदक जीता। इसके बाद 2016 में रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतकर उन्होंने खेल-जगत में हड़कंप मचा दी। ओलंपिक में सिल्वर जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। इसके उपरांत सिंधु ने 16 मैचों में भाग लिया, जिसमें 5 बार पदक हासिल किए। साल 2019 में सिंधु ने वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती।

बैडमिंटन में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें 2013 में अर्जुन पुरस्कार, 2014 में एफआईसीसीआई स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ द ईयर, 2015 में पद्मश्री और 2016 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पीवी सिंधु की इस अपार सफलता से हर इंसान को एक सीख जरूर मिलती है कि… “हारने के बाद जीत जरूर मिलती हैं बस हौसला बनाए रखना जरूरी है।”

यह तेलुगु बाला ओलंपिक खेलों में लगातार दो बार पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है। यह न केवल भारतीय महिलाओं के लिए अपितु समूचे देश के लिए गर्व का विषय है। सबसे मुख्य तेलंगाना के हैदराबाद के लिए फक्र की बात है।

-बेला कक्कड़ की कलम से …

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