हैदराबाद निजामशाही मुक्ति के लिए आर्यसमाज ने जो संघर्ष किया उसे कभी भी भूलाया नहीं जा सकता। मुझे लगता है कि यदि आर्यसमाज नहीं होता तो शायद ही हैदराबाद ऐसा नहीं हो पाता। अर्थात हम स्वतंत्र भारत के नागरिक भी नहीं हो पाते! आर्यसमाज के प्रचार – प्रसार और जन-जागरण से ही अनेक लोग इससे जुड़ते गये। अपनी जान की बाजी लगाकर संघर्ष किया और हैदराबाद को मुक्ति दिलाकर ही सांस ली।
इसी समाज से जुड़ने और जान की बाजी लगाकर संघर्ष करने वाले का गंगाराम जी का जन्म चंद्रिकापुर में 2 फरवरी 1916 यानी बसंत पंचमी के दिन हुआ। मेरी जानकारी के मुताबिक जब वे तीन वर्ष के थे तब उनके पिता चल बसे। माता बाडू बाई जी ने उन्हें पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया और बड़ा किया। परिणामस्वरूप अपनी लगन व पुरुषार्थ से शिक्षा हासिल करते हुए आर्यसमाज के सत्संग में आ गये। इसके चलते दक्षिण भारत वे एक महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, कुरीति निवारक, समाजसेवी, परोपकारी बन गये। अंग्रेजी में कहावत है- “Nothing succeeds like success.” अर्थात सफलता से बढ़कर कुछ भी सफल नहीं होता है।
गंगाराम जी के जीवन का आरंभ एक साहसिक घटना से होता है। जब वे अपने स्काउट एंड गाइड्स प्रशिक्षण के तहत निजामाबाद के पास गोदावरी नदी के पास ठहरे हुए। यह बात साल 1933 की है। तब वे 17 वर्ष के थे। इसी दो महिलाएं गोदावरी नदी में कूद गये। यह देख अपनी जान हथेली में रखकर गंगाराम जी ने उफनती गोदावरी नदी में कूद गये और एक बाल विधवा को बचाया। तब तक दूसरी महिला नदी में बह गई। इस तरह उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।
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जब इस बात का पता तत्कालीन हैदराबाद स्टेट की लेडी ब्रिटिश रेजिडेंट को चला तो उन्होंने निजाम प्रशासन की ओर से घोषित और दिये जाने वाला प्रथम गैलंट्री अवॉर्ड गंगाराम जी प्रदान किया। इसी तरह 1934 में हैदराबाद में गंगाराम जी चारमीनार के पास एक प्रशिक्षण कार्य में व्यस्त थे, उसी समय वहां पर मौजूद पटाखों की दुकानों में भयंकर आग लग गई। इस आग के पास ही एक बंगले में एक महिला और उसके बच्चे फंस गये थे। यह देख गंगाराम जी ने आग की पर्वा किये बिना बंगले में चले गये और तीनों को लेकर बाहर आ गये। ऐसे अनेक साहसिक कार्य गंगाराम जी ने उस समय किये। इससे गंगाराम जी का नाम हैदराबाद में गूंजने लगा। तब से आर्य समाज में गंगाराम जी का नाम एक साहसी पुरुष के रूप में भी लिये जाने लगा।
पंडित गंगाराम जी निजाम शासन की हिंदू विरोधी नीतियों से परिचित थे। इससे निपटने के लिए कुछ करने का संकल्प लिया। इसी के तरह एडवोकेट दत्तात्रेय प्रसाद के साथ मिलकर आर्यन डिफेंस लीग की स्थापना की। इसमें अनेक कर्मठ कार्यकर्ताओं को जोड़ा और लीग को मजबूत किया। गंगाराम जी ने सर्वप्रथम सशस्त्र क्रांति का बिगुल 1938 में बजाया। उन्होंने दो बार विरुद्ध बम विस्फोट किया। इस मामले में पकड़े गए। उनके साथी प्रताप सिंह भी बम विस्फोट में पकड़े गये। निजाम की पुलिस ने उन्हें अनेक यातनाएं दी। उन यातनों को देख कर आर्य समाज सदस्य स्तब्ध रह गये। कुछ समय बाद जेल से रिहा हो गये।
फिर भी निज़ाम सरकार की दृष्टि पंडित गंगाराम जी पर थी। उन्हें पकड़ने के लिए खोज रही थी। यह देख गंगाराम जी भूमिगत होकर शोलापुर चले गये। वहां पर आर्य समाज के कार्यों की नीतियां बनाई। सत्याग्रह की वहीं से नींव रखी गई। इसी नीति के चलते निजाम के विरुद्ध आर्य सत्याग्रह आरंभ कर दिया। पहले सार्वदेशिक सभा को सूचित कर उनकी छत्रछाया में सत्याग्र करना था। हालांकि कुछ निर्णय वहां से तुरंत नहीं मिलते थे। उन्होंने निजाम के अत्याचारों से तंग आकर स्वयं ही आर्य सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर किया। इससे निज़ाम की नींद टूट गई। निजाम की पुलिस ने लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।
यह देख सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा ने इन घटनाओं देखकर आर्य सत्याग्रहों को और तेज करने की स्वीकृति दे दी। यह देख देश-विदेश से आर्य सत्याग्रही आते गये। एक के बाद एक बड़ा आर्य सत्याग्रहियों का आंदोलन जत्था शुरू हो गया। यह देख निजाम ने आंदोलनकारियों को जेलों में ठूंसने लगी। पंडित विनायकराव जी के नेतृत्व में आठवां विशाल जत्था अहमदनगर से निकलने वाला ही था कि निजाम ने आर्यसमाज की सभी मांगे मान ली। इस सफलता के बाद सत्याग्रह को समाप्त कर दिया गया। इन आयोजनों की सफलता में पंडित गंगाराम जी का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वामी स्वतंत्रानंद जी के निर्देशानुसार गंगाराम जी ने कभी सत्याग्रह में भाग नहीं लिया। केवल आर्य सत्याग्रहीयों को यथास्थान पहुंचाना और उनकी देखभाल किया। इसका उद्देश्य गंगाराम जी को पुलिस की गिरफ्तारी से बचाये रखना मात्र था।
आर्यवीर दल के हैदराबाद स्टेट प्रमुख होने के कारण आर्य महासम्मेलनों की व्यवस्था और सुरक्षा का पूरा भार गंगाराम जी पर था। इन कार्यों को वे बड़े सुचारू रूप से निभाया। गुलबर्गा महासम्मेलन में सैकड़ों हजारों आर्यों को गंगाराम जीने निजाम की पुलिस और राजाकारों से बचाया। निज़ाम के दमन, दलन और क्रूरता काल में अनेक कष्ट उन्हें झेलना पड़ा। गोली भी लगी। लहू लुहान हो गये। परंतु वे पीछे नहीं हटे। आगे बढ़ते ही चले गये। क्योंकि उनका जीवन लक्ष्य निजाम के दमन को खत्म करना था।
उस्मानिया विश्वविद्यालय में जब वे पढ़ते थे तब पहली बार रॉयल एयर फोर्स ( RAF) में भर्ती के लिए छह विद्यार्थियों को चुना गया। उनमें गंगाराम जी का नाम सबसे पहला था। तब विनायकराव जी विद्यालंकार और कृष्ण दत्त जी ने आपसे कहा, “आपके ऐसा करने से आर्यसमाज के कार्य को धक्का लगेगा। आर्यसमाज की उन्नति की भारी क्षति होगी।” यह बात सुनते ही आपने वायु सेना की सर्विस, मान व शान को तत्काल ठुकरा दिया। जो व्यक्ति ऐसे निर्णय लेते हैं, वही इतिहास में अमर होकर औरों के लिए प्रेरणा के स्रोत बनते हैं। यह बात गंगाराम जी पर सौ फीसदी खरी उतरती है।
यह बताते हमें गर्व महसूस होता है कि वरिष्ठ इतिहासकार प्रा. राजेंद्र जिज्ञासु जी अगर जीवन संग्राम – क्रांतिवीर पंडित गंगाराम वानप्रस्थी ” पुस्तक न लिखते तो इतिहास को नई दिशा देने वाली स्वर्णिम घटनाओं का लोप हो जाता। इतिहास की परतों से खोजकर प्राप्त हुई इन घटनाओं से आर्यसमाज खूब समृद्ध हो गया लगता है। विश्वास है कि आर्यों की आने वाली पीढ़ी इन घटनाओं को एक आदर्श और संदेश मानकर समाज सेवा के ऐसे नए-नए अध्याय लिखेगी।
भारत स्वतंत्र होने वाला था तो मुस्लिम लीग का कोलकत्ता में डॉयरेक्ट एक्शन का आतंक और नोआखाली में बड़े स्तर पर धर्मांतरण और हिंदुओं पर अत्याचार, बलात्कार आदि घटनाओं से एक भयानक दृश्य सामने आया था। हैदराबाद के निज़ाम और रजाकार भी इन परिस्थितियों का लाभ ले रहे थे। इस महासंकट की घड़ी में आर्य प्रतिनिधि सभा, हैदराबाद स्टेट का 1946 से 1950 तक गंगारा जी को मंत्री बनाया गया। इन विकट परिस्थितियों में आर्यों और हिंदुओं की सुरक्षा बहुत बड़ी समस्या थी। हर आर्य समाज में, उनके अधिकारियों और सक्रिय कार्यकर्ताओं को शस्त्र आदि से अपनी सुरक्षा का प्रशिक्षण शिवरों द्वारा प्रशिक्षित करवाना और हर समय सावधान और चौंकन्ने रहने के लिए जागरूकता को निरंतर चलाना कोई आसान काम नहीं था। नए-नए शस्त्रों से सुसज्जित कर इन्हें प्रशिक्षित कर पूर्ण सुरक्षा के लिए तैयार किया गया। इसी के परिणामस्वरूप जहां-जहां आर्य समाज और उसके प्रभाव वाले क्षेत्रों में उतनी हानि नहीं हुई जितनी दूसरी जगहों पर हुई।
पंडित गंगाराम वानप्रस्थी का नाम आते ही मस्तिष्क में रेखा चित्र बनने लगता है। ऐसे निर्भीक और तेजस्वी का जो पराधीन भारत और हैदराबाद के निज़ाम शासन की विषम परिस्थितियों में जो निरंतर संघर्ष किया। उनके जीवन के इतने आयाम है कि उनके विलक्षण व्यक्तित्व से व्यक्ति अचंभित होता है। उनके गौरवशाली जीवन का सूर्य जैसा तेजस्वी और व्यक्तित्व का कोई अन्त नहीं होता। गंगाराम जी के जीवन से हमें अतीत के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिली है। यह हमारे भविष्य की रूपरेखा बनाने, आर्य समाज के साथ-साथ समाज के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक है। गंगाराम जी के नेतृत्व में निज़ाम शासन के खिलाफ किये गये संघर्ष और समाज सेवा में उनके योगदान को भावी पीढ़ी को बताना ही इस लेख का उद्देश्य है।

भक्त राम,
अध्यक्ष
पंडित गंगाराम स्मारक मंच