[नोट-हमास-इजरायल युद्ध एक भयानक मोड़ ले चुका है। इस युद्ध का अंत कैसे और कब होगा कहना मुश्किल है। क्योंकि जिन देशों को इसे रोकना चाहिए, वो ही आग में घी डाल रहे हैं। युद्ध के आमादा हो चुके देशों को इस पर सोचना चाहिए। किसी भी भोले और मासूम लोगों को मारने का किसी को अधिकार नहीं है। इंसान का जन्म एक वरदान है। इस तरह खून-खराबा और लोगों का जीवन बर्बाद करके किसी को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। इससे केवल साम्राज्यवाद देशों का भला होता है। उनके हथियार और गोलाबारूद की बिर्की होती है। वो मालामाल होते हैं। इस पर युद्ध कर रहे हमास-इजरायल को सोचना और समझना चाहिए। विश्वास है कि 29 नोबेल विजेताओं की मार्मिक अपील पर दोनों देश विचार करेंगे और समाधान निकालेंगे। उत्तम लेख के लिए हम प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा जी के आभारी है।]
29 नोबेल विजेताओं ने हमास-इजरायल युद्ध में बच्चों की सुरक्षा के लिए एक संयुक्त बयान जारी किया है। इस बयान में युद्ध में पिस रहे निरीह और निर्दोष बच्चों के प्रति संवेदनशीलता और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कारगर कदम उठाने का आग्रह किया गया है।
गौरतलब है कि हमास-इजराइल युद्ध के विश्वयुद्ध में बदलने के डर के बीच जहाँ यह खबर सुखकर कही जा सकती है कि कतर की कोशिश से हमास ने दो बंधक अमेरिकी महिलाओं (माँ-बेटी) को रिहा करने की ‘भलमनसाहत’ दिखाई है, वहीं दोनों ही पक्षों के लगातार कठोर होते जा रहे तेवर सभी धरतीवासियों की चिंता बढ़ा रहे हैं। इस चिंता का एक अहम पहलू युद्ध में बच्चों की सुरक्षा से भी जुड़ा है।
आखिर महिलाएँ, बुजुर्ग और बच्चे ही तो किसी भी युद्ध का अभिशाप झेलते हैं न? इसलिए बच्चों के हक़ में उठी आवाज़ असल में मनुष्यता के हक़ में उठी आवाज़ है। आतंक और नफरत के तुमुल कोलाहल में मानवता की यह क्षीण सी फुसफुसाहट बाल अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की पहल पर 29 नोबेल विजेताओं की ओर से आई है। उन्होंने दुनिया को याद दिलाया है कि इजराइल और गाजा के बच्चे भी “हमारे बच्चे” हैं!
जी हाँ, ‘हमारे’ इन बच्चों को तत्काल सुरक्षा और मानवीय सहायता की जरूरत है। नोबेल पुरस्कार की सभी छह श्रेणियों के इन विजेताओं का कहना है कि सभी अपहृत बच्चों को तत्काल रिहा किया जाए। देखना यह है कि उनकी यह अपील युद्धोन्माद में बहरे हो चुके कानों तक पहुँच भी पाती है या नहीं! सवाल यह भी है कि हमास हो या इजराइल, किसी को सचमुच बच्चों की परवाह है भी या नहीं!
सवाल यह भी है कि हमास के लिए इन नोबेल विभूतियों की इस अपील का कुछ भी अर्थ है क्या कि अपहरण किए गए सभी बच्चों को तत्काल रिहा किया जाए, उनको युद्धस्थल से दूर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया जाए? इतनी संवेदनशीलता होती तो इन बच्चों का अपहरण ही क्यों किया जाता?
जगजाहिर है कि आतंकी संगठनों के लिए बच्चे मानव ढाल होते हैं। वे सौदेबाजी के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा बच्चों को वे श्रम और यौन शोषण और गुलामी के लिए ही तो उठाते हैं न? उन्हें इतनी आसानी से रिहा कर देंगे, यह तो फिलहाल संभव नहीं दिखता।
इसके बावजूद यह अपील दुनिया भर की युद्ध चाहने और न चाहने वाली सभी ताकतों को ज़रूर जगा सकती है कि वे इन बच्चों के लिए खड़े हों। सयाने बता रहे हैं कि दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है कि इतने सारे नोबेल विजेताओं ने एक साथ मिलकर युद्ध के शिकार बच्चों की सुरक्षा और उनकी मदद के लिए आवाज उठाई है।
ध्यान रहे कि जब हम बच्चों कि सुरक्षा की बात करें तो उन्हें इस और उस जाति और मुल्क में न बाँटें। हर बच्चा मनुष्यता का भविष्य है, अतः रक्षणीय है। इसीलिए इन चिंतित नोबेल विजेताओं ने अपने बयान में यह भी कहा है कि “केवल एक समूह के बच्चों की मौत पर अफसोस जताया जा रहा है। विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। नेता उस पर बातें कर रहे हैं। मगर, हमारे दिलों में दोनों ही पक्ष के बच्चों के लिए एक जैसी पीड़ा है। गाजा पट्टी में रहने वाले दस लाख बच्चों और इजरायल में रहने वाले तीस लाख बच्चों के जीवन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।”
यानी, चिंता सिर्फ उन बच्चों तक सीमित नहीं है जिनका अपहरण किया गया है। बल्कि दोनों ही ओर के तमाम बच्चे एक तरह से युद्ध की स्थिति के बंधक ही तो हैं। युद्ध के उन्माद में नित नई क्रूरताओं की खोज करने वाले ताकतवर लोग क्या यह नहीं जानते कि युद्ध में बच्चों की रत्ती भर भूमिका नहीं और न ही वे किसी भी तरह की नफरती राजनीति के लिए ज़िम्मेदार हैं?
काश, इन नोबेल विभूतियों की यह अपील पत्थर हो चुके दिलों में प्रेम की ज्योति जगा सके कि-
“आज रात,
इस अँधेरे के बीच हम तीन मोमबत्तियाँ जलाएँ।
एक इजरायल में मारे गए और अपहृत बच्चों के लिए।
एक गाजा में बमबारी और लड़ाई में मारे गए
और अपंग हुए सभी बच्चों के लिए।
एक मानवता, आशा और संभावना के लिए।”
प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा