नव वर्ष 2022 का है स्वागत, मगर न बदले भारतीय संस्कृति और संस्कार

[नोट- लेखिका डॉ संगीता शर्मा ने ‘तेलंगाना समाचार’ के आग्रह पर लेख भेजा है। लेखिका ने दो नये सालों का उल्लेख किया है। एक पाश्चात नया साल और एक भारतीय नया साल है। विश्वास है पाठक इसे पसंद करेंगे। पाठकों से आग्रह है कि दो नये सालों पर संक्षिप्त में अपनी प्रतिक्रिया भेजे। पाठकों की प्रतिक्रिया को प्रकाशित किया जाएगा ]

दो सूंईयां घड़ी में मिलती और बिछुड़ती रही। एक बंधे हुए सांचे में पूरी दुनिया को बांध दिया, जिसे कहते हैं वक्त या समय-समय अपनी धुरी पर चलता रहता है मौसम बदलते रहते हैं। धरा हर बार हर मौसम में एक नए श्रृंगार के साथ अवतरित होती हैं। यूं ही सुबह और शाम होती हैं। सूर्य और चंद्रमा अपने काम करते हैं। सभी अपने-अपने कामों में संलग्न अपने हिसाब से जिंदगी बिताते हैं।

फिर क्या है यह नव वर्ष जो सबको गुदगुदाता है। जाने वाले दिन एक आने वाली सुबह का उल्लसित मन से स्वागत करता है। 1 जनवरी एक तारीख ही तो है जो बदलती हैं। एक महीना ही तो है जो बदलता है। जनवरी से दिसंबर फिर दिसंबर से यकायक जनवरी का आगमन। 12 महीनों में बंधा 1 साल 1 महीना महीने दर महीने कैलेंडर की तारीख में बदलता अपना रूप बदलता रहता है।

किसी ने सच ही कहा है कैलेंडर बदले, कपड़े बदले, रात दिन बदले, मौसम बदले लेकिन हमारे संस्कार और संस्कृति न बदले। 31 दिसंबर को हम बड़ी खुशी-खुशी नव वर्ष 2022 के स्वागत में रात 12 बजे कुछ पल का अंधेरा कर फिर उजाला करते हैं। पलक पावडे बिछा नववर्ष का बदलती तारीख के साथ बदले साल का स्वागत उल्लसित हृदय से करते हैं।

क्या यह नववर्ष सचमुच में हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है? यह भारतीय नववर्ष है, तो उत्तर तो यही होगा नहीं। यह तो ईसाई धर्म का नववर्ष होता है। हमारे भारतीय संस्कृति में तो नववर्ष बदलते विक्रम संवत् से उगादि के दिन होता है। जिसे भारत का हर वर्ग जाति विशेष अलग-अलग नामों से मनाता है।

पाश्चात्य सभ्यता का इतना प्रभाव भारतीयों पर हो रहा है। आजकल वह नवसंवत्सर को भूल जनवरी को ही अपना नव वर्ष समझने लगे हैं। हमारे संस्कृति को भूलना हमारे संस्कारों और हमारी सांस्कृतिक सभ्यता पर करारी चोट है।

ऐसा नहीं है 1 जनवरी को नववर्ष ना मनाएं। मन में उमंग भरने के लिए कुछ नया तो होते ही रहना चाहिए। अन्यथा एक ही ढ़र्रे पर चलते-चलते जिंदगी मुरझाने लगती हैं। उसमें नवसंचार के लिए कुछ बदलाव जरूरी है। अगर थोड़े से बदलाव से चेहरे पर हंसी खुशी मुस्कुराहट हृदय में उल्लास उमंग भर जाए तो उसे मानने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन अपनी संस्कृति को भूल कर इसी को नववर्ष मनाना और पाश्चात्य सभ्यता का पूरा सम्मान करना भारतीय नववर्ष की अवहेलना करना न्यायोचित नहीं है।

अगर यही सब चलता रहेगा तो आने वाली पीढ़ी हिंदी नववर्ष क्या है? कब है? कैसा है? कैसे मनाते हैं यह भूली बिसरी बातें हो जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो यह गलती आने वाली पीढ़ी कि नहीं हमारी होगी। हमने ही उन्हें अपनी संस्कृति से दूर किया। फिर इल्जाम भी हमारे सिर यह होना चाहिए उनके नहीं।

वैसे भी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने कहा है-
यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है
अपना यह त्यौहार नहीं है

फिर भी हर पुराना सही नवीन खराब या पुराना गलत व नवीन सही नहीं होता। यह सब समय पर निर्भर करता है। साथ ही हमारे अपने विचार सोचने की शक्ति हमारी शैली हमारे संस्कारों को सहेज कर आने वाली पीढ़ी को विरासत में देना होगा। हमारा सही गलत का मूल्यांकन ही आने वाली पीढ़ी की धरोहर होगा। अंग्रेजी नववर्ष एक नए साल के स्वागत में खुशनुमा माहौल में मनाइए, परंतु यही उल्लास उमंग भारतीय नववर्ष उगादि पर भी दिखाना चाहिए।

लेखिका डॉ संगीता शर्मा, हैदराबाद

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