फिल्म: केजीएफ चैप्टर-2
कलाकार: यश, संजय दत्त, श्रीनिधि शेट्टी, रवीना टंडिन, प्रकाश राज, अर्चना, ईश्वरी राव, राव रमेश अन्य।
प्रोडक्शन कंपनी: होमबले फिल्म्स
निर्माता: विजय किरगंदूर
निर्देशक: प्रशांत नीलू
संगीत: रवि बसरूर
छायांकन: भुवैन गौड़
कोलार गोल्ड फीड-2 (KGF-2) गुरुवार को रिलीज हो गई। फिल्म केजीएफ-2 मूल कन्नड़ भाषा में हैं। इसके अलावा इस फिल्म को तमिल, तेलुगु, मलयालम के साथ हिंदी में भी रिलीज किया गया है। फिल्म को जबरदस्त प्रतिसाद मिल रहा है। आपको बता दें कि ये फिल्म कोलार गोल्ड फीड (KGF) पर कब्जे और उसको लेकर जारी संघर्ष के इर्द गिर्द घूमती नजर आती है। ‘केजीएफ-2’ में भरपूर एक्शन, थ्रिलर और रोमांच है। कोलार की खान की असल कहानी भी उससे कम दिलचस्प नहीं है।
कोलार गोल्ड फीड दक्षिणी कर्नाटक के कोलार जिले में स्थित है और यह रॉबर्ट्सनपेट तहसील में आता है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 30 किलोमीटर है। केजीएफ के गौरवशाली इतिहास की शुरुआत 17-18वीं शताब्दी के बीच हुई। कोलार की खान को लेकर आसपास के इलाकों में तमाम किस्से-कहानियां मशहूर थीं। ब्रिटेन के एक सैनिक माइकल फिट्ज़गेराल्ड लेवेली जब साल 1871 में भारत आये तो उन्होंने बेंगलुरु को अपना ठिकाना बनाया।
लेवेली को जब कोलार की खान का पता चला तो उनकी दिलचस्पी और गहरी हो गईई। उन्होंने तमाम रिसर्च-सर्वे किया और साल 1873 में मैसूर के तत्कालीन महाराजा के पास जा पहुंचे और खुदाई की अनुमति मांगी। इसी क्रम में 20 साल के लिए खुदाई का लाइसेंस भी मिल गया। साल 1875 में पहली बार खुदाई शुरू हुई।
कोलार की खान इतना सोना उगलने लगी कि शुरुआत के कई साल तो जरूरी संसाधन जुटाने और लोगों को खान में काम करने के लिए तैयार करने में लग गये। तमाम मशक्कत के बाद कोलार की खान से सोना निकाला जाने लगा। साल 1902 आते-आते कोलार की खान से भारत का 95 फीसदी सोना निकलने लगा। कोलार की खान इतना सोना उगल रही थी कि साल 1905 में भारत सोने की खुदाई में दुनियाभर में छठवें स्थान पर पहुंच गया।
कोलार की खान से अकूत सोना निकलने के बाद उस इलाके की किस्मत बदल गई। तमाम अंग्रेज अफसर-इंजीनियर और रसूखदार लोग आसपास अपना घर बनाने लगे। एक वक्त तो ऐसा आया कि केजीएफ को मिनी इंग्लैंड कहा जाने लगा। केजीएफ में करीब 30 हजार मजदूर काम करते थे। भारत आजाद हुआ तो सरकार ने कोलार की खान को अपने कब्जे में ले लिया। साल 1956 में इसका राष्ट्रीकरण किया गया। कोलार की खान सरकारी कंपनी भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड (BGML) के पास चली गई। असली दिक्कत इसके बाद शुरू हुई। बीजीएमएल ने कोलार गोल्ड फील्ड में साल 1970 में खुदाई शुरू की। 8-9 साल बीतते-बीतते स्थिति ये हो गई कि बीजीएमएल के पास कर्मचारियों को देने तक का पैसा नहीं बचा। सैकड़ों कर्मचारियों को काम पर से निकाल दिया गया।
हालत तब भी नहीं सुधरी। हालत बिगड़ती गई और भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड ने साल 2001 में कोलार की खान में खुदाई बंद कर दी। अब वो जगह सूनसान पड़ी है। मगर पुलिस का पहरा अब भी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब सवा सौ सालों में खुदाई के दौरान कोलार की खान से 900 टन से अधिक सोना निकाला गया।
तकनीकी रूप से इस फिल्म की एक और बड़ी ताकत रवि बैसरूर का संगीत है। उन्होंने बेहतरीन बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ फिल्म को एक कदम आगे बढ़ाया। भुवन गौड़ा छायांकन का विशेष उल्लेख किया जाना चाहिए। केजीएफ साम्राज्य को खूबसूरती से चित्रित किया। उन्होंने हर सीन को पर्दे पर बड़े ही शानदार तरीके से दिखाया। उज्ज्वल का संपादन अच्छा है। निर्माण मूल्य सिनेमाई स्तर के अनुरूप हैं।