मकर मकर संक्रांति भारत का प्रमुख पर्व है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व ढेर सारी खुशियां और उत्साह लेकर आया है। पर्व इसलिए और भी ज्यादा खास हो गया है क्योंकि इस दिन 4 योगों का महासंयोग बन रहा है। मकर संक्रांति भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है।
‘मकर संक्रांति’ हिंदूओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यूपी, बिहार, गुजरात , मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, पंजाब, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के लोग संक्रांति के त्योहार को बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं। यह सर्दियों के अंत और फसल के मौसम की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस त्योहार के जरिए लोग सूर्य भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं, इसलिए इस दिन खास तौर पर सूर्यदेव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्ध्य दिया जाता है।
सूर्यदेव के धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। फिर भी तिथि को लेकर कुछ मतभेद है। कुछ जगहों पर 14 जनवरी को मकर संक्रांति है तो कुछ ठिकानों पर 15 जनवरी को मनाई जा रही है। दिन सूर्य उत्तरायण होता है।
इसके साथ ही खरमास का महीना भी समाप्त होता है। इसके लिए मकर संक्रांति का त्योहार का विशेष महत्व है। इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में अन्य त्योहार भी मनाए जाते हैं। इनमें पोंगल, बिहू और खिचड़ी आदि प्रमुख हैं।
असम में मकर संक्रांति के मौके पर बिहू मनाई जाती है। यह पर्व नये फसल के तैयार होने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इसे माघ बिहू भी कहा जाता है। इसके एक दिन पूर्व उरुका पर्व मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करते हैं। इसके बाद धान की पुआल से अस्थाई छावनी बनाते हैं। इस घर को भेलाघर कहा जाता है। उरुका की रात्रि में भोज का आयोजन किया जाता है।
भेलाघर के पास चार बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ियां रखी जाती हैं। माघ बिहू के दिन स्नान ध्यान कर मेजी जलाकर बिहू की शुरुआत करते हैं। मेजी जलने के बाद उसके रख को खेत में छिड़का जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। असम के लोग माघ बिहू को हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं।
दक्षिण भारत में नवीन फसल तैयार होने की ख़ुशी में पोंगल का त्योहार मनाते हैं। इस पर्व के दौरान लोग भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। इस मौके पर सूर्य, इन्द्रदेव, वर्षा, धूप और खेतिहर मवेशियों की पूजा-उपासना की जाती है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। खेतिहर पशुओं को नहला-धुलाकर सजाया जाता है। साथ ही कृषि में प्रयोग आने वाले सभी उपकरणों की भी पूजा जाती है। चौथे दिन मां काली की पूजा की जाती है।
मकर संक्रांति के मौके पर देश के अनेक हिस्सों में खिचड़ी मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से आरोग्य में वृद्धि होती है। साथ ही सभी दुःख और कष्ट दूर हो जाते हैं। खिचड़ी उड़द दाल और चावल से बनाई जाती है। साथ ही कई अन्य पदार्थों को मिलाया जाता है। उड़द दाल का संबंध शनिदेव से है और हल्दी का गुरु से संबंध है। साथ ही हरी सब्जियों का संबंध बुध और घी का संबंध सूर्य से है। जबकि चावल का संबंध चंद्रमा से होता है। अतः खिचड़ी खाने से सभी दोष दूर हो जाते हैं।
तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाते हैं। इसी तरह कर्नाटक, केरल, तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश में संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। (एजेंसियां)