केंद्रीय हिंदी संस्थान : 472वें नवीकरण पाठ्यक्रम का समापन समारोह, ‘बतुकम्मा एवं ओग्गु गीत’ की हुई सराहना

हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र द्वारा तेलंगाना राज्य के कामारेड्डी जिले के माध्यमिक विद्यालय के हिंदी अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए 472वें नवीकरण पाठ्यक्रम का आयोजन 2 अगस्त से हैदराबाद केंद्र पर आयोजित किया गया है। इस पाठ्यक्रम का समापन समारोह 16 अगस्त को संपन्न किया गया। समापन समारोह की अध्यक्षता आभासी पटल के माध्यम से केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. माणिक्यांबा ‘मणि’ रही हैं। इस दौरान पाठ्यक्रम संयोजक एवं क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे, डॉ. सी. पी. सिंह, डॉ. संध्या दास तथा डॉ. राजीव कुमार सिंह मंच पर उपस्थित रहे हैं। इस नवीकरण पाठ्यक्रम में कुल 29 (महिला- 11, पुरुष- 18) हिंदी अध्यापक प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

सर्वप्रथम मंचस्थ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के समक्ष द्वीप प्रज्ज्वलित किया गया। प्रतिभागी अध्यापक कुलकर्णी वेंकटराव ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। तत्पश्चात् प्रतिभागी अध्यापिका एन. हरिप्रिया एवं जे. उमा तथा समूह द्वारा स्वागत गीत गाया गया। संस्थान गीत एन. हरिप्रिया, एल गंगासागर, पी. स्वेता शिरीशा, रफिया सुल्ताना, शमीना कौकब द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात अतिथियों का सम्मान प्रतिभागियों द्वारा किया गया। प्रतिभागी अध्यापक पडिगे श्यामकुमार ने ‘ओग्गु कथा लोकगीत’ के माध्यम से पाठ्यक्रम की गतिविधियों का परिचय दिया। प्रतिभागी अध्यापक आर. नरसिम्हुलू ने संस्थान का परिचय दिया। सी. एच. अविनाश ने मुख्य अतिथि एवं पाठ्यक्रम संयोजक का परिचय दिया। इसके बाद प्रतिभागियों ने पाठ्यक्रम से संबंधित अपने-अपने अनुभव कविता, भाषण और गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया। साथ ही प्रतिभागी अध्यापकों द्वारा ‘बतुकम्मा’ सांस्कृतिक नृत्य को प्रस्तुत किए।

अतिथि अध्यापकों द्वारा आशीर्वचन दिया गया। इसमें सर्वप्रथम डॉ. राजीव सिंह ने ‘बतुकम्मा एवं ओग्गु गीत’ के कार्यक्रम को सराहते हुए कहा कि आप लोगों को सीखे गए ज्ञान का प्रयोग छात्रों के अध्यापन में करना है और ‘बसे मानव में मानव मन यही भगवान का मन है’ गीत प्रस्तुत किया। डॉ. संध्या दास ने कहा कि मन की बात ही शिक्षण का प्रारंभिक बिंदु है। अतः विद्यार्थियों से मन की बात मैंने पहले ही दिन की थी। डॉ. सी. पी. सिंह ने प्रतिभागी अध्यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें छात्रों के मस्तिष्क के ग्रहणशीलता के आधार पर शिक्षण करना चाहिए। नई शिक्षा नीति संज्ञानात्मक विकास के साथ संस्थाओं को मानव जीवन की समस्त कला को विकसित करने का अवसर देता है।

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इस पाठ्यक्रम के दौरान प्रो. गंगाधर वानोडे ने भाषाविज्ञान तथा उसके विविध पक्ष, ध्वनि, उच्चारण, भाषा परिमार्जन, भाषा कौशल, लेखन कौशल, हिंदी भाषा का उद्भव व विकास, डॉ. फत्ताराम नायक ने हिंदी व्याकरण तथा उसके विविध पक्ष, पाठ्यपुस्तक चर्चा, पाठ्यपुस्तक विश्लेषण, डॉ. सी. कामेश्वरी ने हिंदी साहित्य का इतिहास, हिंदी शिक्षण में प्रौद्योगिकी का प्रयोग, हिंदी में रोजगार की संभावनाएँ, संधि, समास, डॉ. संध्या दास ने हिंदी भाषा का उद्भव व विकास, सृजनात्मक लेखन, डॉ. चंद्र प्रताप सिंह ने मनोविज्ञान, पाठ नियोजन, भाषा शिक्षण, साहित्य शिक्षण, पाठयोजना (गद्य/पद्य) विषयक कक्षा अध्यापक कार्य संपन्न किया तथा डॉ. रहीम खान पठान ने तेलुगु से हिंदी तथा हिंदी से तेलुगु में अनुवाद प्रक्रिया, डॉ. राजश्री मोरे ने कविता शिक्षण तथा दोड्डा शेषुबाबु ने प्रयोजनमूलक हिंदी विषय पर विशेष व्याख्यान दिया।

कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों द्वारा निर्मित हस्तलिखित पत्रिका ‘साहित्य सुंगध’ का विमोचन मंचस्थ विद्वानों द्वारा किया गया। इसके बाद पर परीक्षण के आधार पर चयनित प्रतिभागी अध्यापक के. दत्तश्री ने प्रथम पुरस्कार, पी. प्रसन्ना ने द्वितीय पुरस्कार, एस. कृष्णा ने तृतीय पुरस्कार तथा एम. डी. अज्जु ने सांत्वना पुरस्कार प्राप्त किया। इस अवसर पर अतिथि अध्यापकों द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र एवं निवृत्त प्रमाण-पत्र वितरण किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. पी. माणिक्यांबा ‘मणि’ ने अपने संबोधन में कहा कि पत्रिका इतिहास, हस्तलिखित पत्रिका से ही शुरू हुआ है। तेलुगु भाषा और संस्कृत के अनछुए पक्षों को जानना अनिवार्य है। आप लोगों में सृजनात्मक शक्ति है। हिंदी भाषा को ठीक ढंग से सीखना है और सीखाना है। अंत में भारतेंदु की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि, मेरी दो मातृभाषाएँ हैं- तेलुगु और हिंदी। भाषा के प्रति प्रेम भाव को जागृत कर छात्रों में हिंदी के प्रति प्रेम उत्पन्न करना है।

इस अवसर पर आभासी मंच से अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी, निदेशक ने अपने उद्बोधन में कहा कि आभासी पटल पर विदुषी माणिक्यांबा ‘मणि’ का दर्शन कर सुख की अनुभुति कर रहा हूँ। प्रतिभागी अध्यापकों को संबांधित करते हुए कहा कि यह नवीकरण आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरा होगा। जिस प्रबंधन कौशल के साथ आयोजन का अनुभव वानोडे का है उसमें सभी केंद्रों में हैदराबाद केंद्र सर्वोपरि है। दक्षिण भारत में हैदराबाद केंद्र ने अपनी पहचान बनाई है। केवल नवीकरण में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय गोष्ठी, लघु संगोष्ठियों एवं पत्रिका का निर्माण भी किया है। इसमें क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे के साथ उनकी टीम शैक्षिक एवं प्रशासनिक वर्ग में डॉ. एस. राधा एवं अन्य लोगों ने केंद्र के प्रति अपनी निष्ठा बनाई रखी है। मैंने भाषा प्रौद्योगिकी, हिंदी भाषा कौशल, भारतीय ज्ञान परंपरा आदि नवीन चर्चित विषयों को नवीकरण पाठ्यक्रम में जोड़ा है। जिससे शिक्षक समय के अनुरूप बदलाव करें। नवीकरण के माध्यम से हम शिक्षक को दिनचर्या से हटाकर ऐसे स्थल पर ले जाएँ जहाँ नया अनुभव मिले। शिक्षक वही है जो आजीवन विद्यार्थी बना रहे।

नवीकरण के अनुवभों को छात्र के साथ साझा करके छात्र के ज्ञान को अद्यतन करना है। परिस्थिति के अनुकुल छात्रों में बदलाव करें। नहीं तो वे प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पाएँगे। यह मल्टीनेशनल कंपनियों का जमाना है। एक कौशल सीखने के बाद भूख की समस्या समाप्त हो सकती है। लेकिन खुली अर्थव्यवस्था के आह्वान से मल्टीनेशनल कंपनियाँ यह चाहती हैं की हमारे कर्मचारी बहुआयामी हो। अतः हमें ऐसे छात्रों का निर्माण करना है। जिसमें बहुआयामी प्रतिभा हो। शिक्षकों में भी कौशलों का विकास अनिवार्य है। संत साहित्य के माध्यम से अपने भीतर के सूक्त गुणों को हम प्रेरित कर सकते हैं। सफल व्यक्ति संघर्ष के कारण ही बनते हैं। कालजयी पुरुषों ने विपरीत परिस्थितियों में विकसित होकर स्वयं को चिरंजीवी बनाया है। आत्मसात किए हुए विषय का चयन एवं मंथन होना चाहिए और उससे उत्पन्न विचारों का कक्षा शिक्षण में प्रयोग किया जाना चाहिए। अंत में कबीर के ‘कबीरा खड़ा बाजार में’… एवं सोहनलाल द्विवेदी की कविता ‘पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो…’ को उद्धृत करते हुए वक्तव्य को समाप्त किया।

कार्यक्रम संयोजक और क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे ने कहा कि आप लोगों ने जो कुछ यहाँ सीखा है उसका छात्रों के शिक्षण में प्रयोग करें। बोलने के लिए पहले सुनना आवश्यक है। अतः आप दूरदर्शन पर हिंदी सुने। हिंदी की कोई भी पुस्तक पढ़े। यह आवश्यक नहीं है की वह पाठ्यक्रम से ही जुड़ी हो। अध्यापक को कक्षा में जाने से पहले पढ़ना है, मथंन करना है तथा अल्पप्राण और महाप्राण तथा अन्य गलतियों पर ध्यान देना है। प्रतिदिन दस पंक्ति जरूर लिखें। आप स्वयं को अद्यतन बनाए रखिए और छात्रों को प्रभावी ढंग से पढ़ाकर भावी नागरिक तैयार कीजिए। प्रतिभागी अध्यापिका के. दत्तश्री ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रतिभागी अध्यापक डॉ. बदावत आदिनारायणा ने किया। तकनीकी सहयोग सजग तिवारी तथा डॉ. संदीप कुमार ने दिया।

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