हैदराबाद : विदित है कि स्नेह प्रेम जोड़ आपस में, बहार चमन में लाता है, नया वर्ष जब आता है। संयोगवश वर्ष 2023 के दस्तक देते ही पहली ही तारीख को रविवार आया और लगभग तीन वर्षों से जारी प्रत्येक रविवारीय कार्यक्रम के माध्यम से अपनों से अपनों के आत्मीय मिलन का सुअवसर लाया। आज एक दूसरे को सीधे शुभकामनाएँ देने और संवाद स्थापित करने का मौका मिला। देश विदेश से जुड़े लेखकों के रचना पाठ सुनने- गुनने और आत्मसात करने तथा उत्साहित होने का अद्भुत क्षण था। इससे निजदोषदर्शन करने, साहित्य के प्रयोजन को सिद्ध करने, नए वर्ष की चुनौतियों को समझने और संभावनाओं के आकाश में उड़ान भरने का मौका मिला। जिसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुधी श्रोताओं ने बड़े ही संयत भाव से आनंद उठाया।
कार्यक्रम के आरंभ में सुप्रसिद्ध साहित्यकार और गणतन्त्र दिवस परेड का आँखों देखा हाल सुनाने वाली रचनाकार श्रीमती अलका सिन्हा द्वारा नव वर्ष की शुभकामना के साथ सारगर्भित प्रस्ताविकी की अभिव्यक्ति दी गई। तदोपरांत केंद्रीय हिन्दी संस्थान के दिल्ली केंद्र की प्रो॰ अपर्णा सारस्वत द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, सानिध्यप्रदाता एवं संयोजकों और संस्थानों के प्रतिनिधियों तथा सुधी श्रोताओं का स्वागत किया गया। उन्होने संस्कृत श्लोक के उद्धरण सहित बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा में ईश्वर को भी कवि रूप में माना गया है।
नव वर्ष 2023 में इस मंच पर पहले कार्यक्रम की शालीनता से शुरुआत करते हुए साहित्यकार श्रीमती अलका सिन्हा ने संचालन की बखूबी बागडोर संभाला। उनके द्वारा आज के मुख्य अतिथि श्री राहुल देव की पूज्य माताजी के दुखद देहावसान पर सबकी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गहरी संवेदना प्रकट की गई। कार्यक्रम को क्रमबद्ध रूप से आगे बढ़ाते हुए श्रीमती अलका सिन्हा ने सर्व प्रथम न्यूजीलैंड के साहित्यकार और भारत दर्शन के संस्थापक श्री रोहित कुमार हैप्पी को रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया।
अपनी मृदुल स्वर लहरी में न्यूजीलैंड से विश्व की रजत जयंती वाली ऑनलाइन पत्रिका के संपादक श्री रोहित कुमार ने माँ पर अपनी दोहावली सुनाई और सतसईया के दोहरे सदृश शब्द शक्ति का अहसास कराया। उन्होने जन्मभूमि भारत और कर्मभूमि न्यूजीलैंड के धरा-धाम को दो माताओं की संज्ञा दी तथा प्रवासी जगत की महत्ता को चरितार्थ किया। भोपाल से जुड़े बैंक ऑफ बड़ोदा के राजभाषा विभाग के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक और साहित्यकार डॉ॰ जवाहर कर्नावट ने अपनी व्यंग्य रचना सुनाई जिसका शीर्षक था– भैंस की काया में कीटाणुओं का प्रवेश । इस रचना ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया और आनंद के साथ निजदोषदर्शन हेतु विवश किया।
सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी की हिन्दी– तमिल विभागाध्यक्ष प्रो॰ संध्या सिंह ने अपनी कविता में घेरा तोड़ने और दायरा बढ़ाने की प्रेरणा दी और माँ की सिखावन, को अनमोल बताते हुए जिंदगी में नयापन लाने और बासीपन का अंत करने की सलाह दी। व्यंग्यकार डॉ॰ सुरेश कुमार उरतृप्त ने जाने से पहले, शीर्षक से एक मारक और झकझोरने वाली कविता प्रस्तुत की। इसके साथ ही नए वर्ष में पुरानी रेल यात्रा, का अहसास कराते हुए “यह सरकार आपकी है” से आत्मचिंतन पर विवश किया।
आस्ट्रेलिया से जुड़ी साहित्यकार श्रीमती रेखा राजवंशी ने देहरी पर मचलती धूप, शीर्षक से कविता सुनाई और पंक्तियाँ दी कि काश मेरा आकाश कुछ और फैल जाता। उन्होने कंगारुओं के देश से नवगीत दिया। नए साल ने जैसे ही खिड़की खड़कायी वैसे ही नव वर्ष की साहित्यिक शुभकामना पहुंचाई। अमेरिका से जुड़े प्रख्यात तकनीकीविद श्री अनूप भार्गव ने हृदयस्पर्शी मुक्तक सुनाये। उन्होने हर आँसू के पीछे कोई गम हो, ये जरूरी नहीं, पंक्तियाँ सुनाकर खुशी के आंसुओं की भी याद दिलाई। इसके अलावा जिंदगी मुस्कुराइ कहो क्या करें, इन लाइनों से अपने कालेज के दिनों की रचनाओं की याद दिलाई।
केंद्रीय हिन्दी संस्थान आगरा की निदेशक प्रो॰ बीना शर्मा ने माँ, की अंतर्निहित शक्ति का अहसास कराते हुए कहा कि माँ तो माँ होती है, रूप बदलकर साँसों में घुलती है, माँ हम सबके साथ है। अपनी कविता के माध्यम से युगीन परिवेश में उन्होने नवयुवतियों को चेताया और कहा– प्यार का शिकारी, सारे रिश्तों पर भारी। उन्होने नाच्यो बहुत गोपाल से सीख लेने की सलाह दी। साहित्यकार प्रो॰ राजेश कुमार ने दोहों के माध्यम से प्रकृति के साथ जुडने हेतु प्रेरित किया और व्यंग्य गलती से ना डर मनुज, के माध्यम से आगे बढ़ते रहने हेतु संचेतना जगाई।
लंदन से जुड़ीं सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार एवं वातायन की संचालक श्रीमती दिव्या माथुर ने अपनी साहित्य साधना में बाल उपन्यास का नया आयाम जोड़ते हुए बिन्नी बुआ का बिल्ला, शीर्षक से रचना सुनाई। उन्होने फास्फर शब्द का बारीक विश्लेषण करते हुए भी ज्ञानार्जन कराया। सानिध्यप्रदाता के आग्रह पर संचालन कर रहीं श्रीमती अलका सिन्हा ने माँ, शीर्षक से अपनी रचना सुनाई और जननी की महत्ता को वृहत्तर रूप में प्रस्तुत किया। उनकी पंक्तियाँ थीं– हैं सगुन से शब्द कुछ, अंतिम निशानी रह गई है। उन्होने अपनी कविता में भारतीय लोक संस्कृति की गहनता और विराटता को खोईंछा, शब्द से बेजोड़ रूप में उजागर किया। इसके अलावा नए वर्ष की कविता चुमौना, सुनाकर श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया ।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नव भारत टाइम्स के संपादक श्री सुधीर मिश्रा ने इस कार्यक्रम से जुड़कर अपार हर्ष प्रकट किया और सभी को नव वर्ष की शुभाशंसा दी। उन्होने श्री अनिल जोशी के कुशल और सुयोग्य मार्गनिर्देशन तथा उनकी बीच बहस में कविता की सराहना की और सभी रचनाकारों की रचनाधर्मिता की प्रशंसा की। इसके अलावा उन्होने तकनीकी और मीडिया की बीजगणितीयता, अलबेरिज़्म की ओर ध्यान आकृष्ट कर आगाह किया। वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार श्री मिश्रा ने अपनी व्यंग्य रचना सुनाकर चिंतन मनन और अनुश्रवण हेतु अभिप्रेरित किया जिसका शीर्षक था– जाइए नहीं नहाते इस ठंड में । उन्होने अपनी सुप्रसिद्ध रचना गूलर के फूल भी सुनाई जिस पर लघु फिल्म भी बन चुकी है। श्रोताओं ने भरपूर आनंद उठाया।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिन्दी शिक्षण मण्डल के माननीय उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के प्रणेता श्री अनिल जोशी जी ने सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएँ दीं। उन्होने वैश्विक हिन्दी परिवार के मुख्य संरक्षक श्री राहुल देव की पूज्य माताजी के निधन पर सबकी ओर से संवेदना प्रकट की और राहुल जी के परिवार के साथ दो दिन तक स्वयं खड़े रहने की जानकारी दी। श्री अनिल जी ने केंद्रीय हिन्दी संस्थान की निदेशक प्रो॰ बीना शर्मा को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की ओर से पुरस्कृत होने पर सामूहिक बधाई दी। इसके अलावा रचनाकारों की साहित्य साधना की प्रशंसा की। आज वाट्सऐप पर उनकी नव वर्ष के अवसर पर लिखी रचना चर्चा और प्रेरणा का केंद्र रही जिसका शीर्षक था– जैसे मेरे हैं वैसे सबके हों प्रभु ।
इस कविता का आखिरी वंद्य था-
प्रभु देखता हूँ ,आँसू है, चीख है
जिंदगी की एक एक बूंद के लिए ,आदमी मांगता भीख है,
बीमारी है,लाचारी है, प्रार्थना बस इतनी ही है,
जैसे मेरे हैं ,वैसे सबके हों प्रभु।
श्री जोशी जी ने युगीन परिप्रेक्ष्य में झकझोरती और दिशा देती अपनी कविता बीच बहस में, सुनाकर सभी को सत्प्रेरणा दी और शब्दों के सौदागरों से बचने की सलाह दी। इस कार्यक्रम में सभी महाद्वीपों के कई देशों के लेखक ,विद्वान,साहित्यकार एवं चिंतक आद्योपांत जुड़े रहे। चैट बॉक्स में भी श्रोताओं से अनेक उत्साहवर्धक सुझाव आए एवं रचनाकारों की पंक्तियों की प्रशंसा की गई। आयोजक मण्डल की सभी संस्थाओं एवं कार्यक्रम संबंधी विभिन्न टीमों का विशेष सहयोग रहा।
अंत में वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से डॉ॰ जयशंकर यादव ने संयत भाव और आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, सानिध्यप्रदाता तथा सभी रचनाकारों और सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उन्होने इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया। उनके द्वारा भारतीय भाषाओं और संस्कृति का वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद दिया गया। डॉ॰ यादव ने नव वर्ष में सर्वेषां मंगलम, भवेत सुखम की कामना की और मंगलकामना में अभिव्यक्ति दी कि परिजन पुरजन बंधुजन ,सज्जन चित्त विकास। नए वर्ष में सब बढ़ें, बनकर स्वयं प्रकाश।