Death Anniversary Special : निष्काम कर्मयोगी गाडगे बाबा और उनके सामाजिक कार्य

आज (20 दिसंबर) बुद्धिवादी आंदोलन के प्रणेता, स्वच्छता के समाजशास्त्र के जनक, आम जनमानस के हितों का खयाल रखने वाले, दिन-दुखियों के उद्धारक, विदर्भ के संत, समाजसुधारक और निष्काम कर्मयोगी गाडगे बाबा की 66वीं पुण्यतिथि है। इनका जन्म 23 फरवरी (शिवरात्रि) 1876 को अमरावती, महाराष्ट्र के शेणगांव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम झिंगराजी जनोरकर और माताजी का नाम सखूबाई था।

उनके बचपन का नाम डेबू जी था। उनके पिताजी एक किसान थे। वे धार्मिक होने के साथ-साथ अंधश्रद्धा को मानने वाले थे, अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करते थे। शराब पीने की आदत के कारण अति व्यसनी हो गए थे। जिसके कारण गाडगे जी की अल्पायु (8वर्ष) में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। जिसकी वजह से घर की सारी जिम्मेदारी उनकी मां के ऊपर आ गई थी। यही कारण था कि डेबू जी पढ़-लिख नहीं सके और खेत में काम करने के साथ मेहनत मजदूरी करने लगे थे।

कुछ समय बाद अपने मामा चंद्रभान जी के यहां चले गए और जानवरों को चराते थे तथा खेती के काम भी करते थे। साहूकार ने धोखेबाजी के कारण उनके मामा की जमीन हड़प ली जिससे सदमे के कारण मामा जी की मृत्यु हो गई। तब डेबूजी ने साहूकार से लड़ाई लड़ी जमीन पर कब्जा वापस पा लिया। डेबूजी ने समाज बेहतरी व तरक्की के लिए बहुत से सामाजिक कार्य किए। जिस कारण आज भी उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने मदिरापान और अंधश्रद्धा के खिलाफ पहली लड़ाई अपने घर से ही शुरू की।

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व्यसन और अंधश्रद्धा के विरुद्ध लड़ाई

अपने घर की परिस्थितियों से ही वे जान गए थे कि शराब के कारण लोगों की बुद्धि भ्रष्ट होती है, दारू घर में आई कि घर का घरपना चला जाता है, ऐश्वर्य जाता है और गरीबी आती है, परिवार की जमीन बिक जाती है या साहूकार गिरवी रख लेते हैं, नीति चली जाती है, पैसा, जेवरात सब चले जाते हैं, समाज में इज्जत भी चली जाती है। इसलिए उनकी सबसे पहली लड़ाई मादक पदार्थों के सेवन और अंधश्रद्धा के ख़िलाफ़ थी। उनका मानना था कि श्रद्धा ठीक है रखनी चाहिए पर अंधश्रद्धा बिल्कुल ही ठीक नहीं है। अंधश्रद्धा के कारण ही परिवार और समाज में विषमता आती है, परिवार में कलह, दरिद्रता आती है और अशांति का निर्माण होता है। इसलिए उन्होंने अंधश्रद्धा पर प्रहार किया।

नशों का विरोध

गांजा, भांग, अफीम, शराब जैसे नशों का विरोध किया। साहूकार और पूंजीवाद के चंगुल न फंसने के इशारा भी उन्होंने किया। इंसानियत को बदनाम करने वाली प्रथाओं और रीति-रिवाजों से दूर रहने की सलाह दी। वे निरक्षर थे परंतु उत्कृष्ट प्रबोधनकार थे। प्रसंगों के अनुरूप अपने उपदेशों और कीर्तन में अंधश्रद्धा को दूर करने वाली बातें शामिल करते थे। उन्होंने प्यासे को पानी देने, भूखे को अन्न देने आदि का महत्व बताया।

शिक्षा का प्रचार-प्रसार

शिक्षा समाज के लिए अमृत के समान है, शिक्षा समृद्धि का निर्माण करती है ऐसा वे अपने उपदेशों में शामिल करते थे। यही कारण था कि सामाजिक कार्य में शिक्षा के महत्व पर खूब जोर देते थे, घर-घर जाकर शिक्षा के महत्व से अवगत कराते थे और कहते थे कि गरीबों की शिक्षा में मदद करो! गरीब बच्चों को पाटी, पेंसिल दो, शिक्षा प्राप्त करने से मनुष्य मनुष्य बनता है, आधा पेट भोजन करो, पत्नी को साड़ी कम कीमत की दो, घर के बर्तन बेंच दो हांथ पर रोटी रखकर खाओ पर बच्चों को पाठशाला अवश्य भेजो! मंदिर और देवालय मत बनवाओ इसके बजाय स्कूल बनवाने वालों को पैसे दो। खुद भी सीखो और गरीबों को शिक्षा दो! आदि।

भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, वस्त्रहीनों को वस्त्र, गरीब बालक-बालिकाओं की शिक्षा में मदद, बेघरों को आसरा, अंधों-विकलांगों और रोगियों को उपचार, बेरोजगार योगों को रोजगार, पशु-पक्षी और मूक प्राणियों को अभयदान, गरीब बालक-बालिकाओं की शादी, दुखी व निराश लोगों को हिम्मत दो ऐसे 10 सूत्री वाक्य गाडगे बाबा ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समाज निर्माण हेतु बताए।

एक उदाहरण मात्र से ही पता चलता है कि गाडगे बाबा शिक्षा के प्रति कितना अधिक सजग और सचेत थे। जब खेर ने कर्मवीर भाऊराव पाटिल की मुंबई सरकार से मिलने वाली ग्रांट बंद कर दी थी तब गाडगे बाबा ने कहा था- “भाऊराव घबराओ नहीं मैं तुम्हारी रक्षा करूंगा। कितने भी स्कूल बनवाओ, यह गाडगे बाबा जिंदा है। यह पैसों की कमी नहीं होने देगा।…सच्चा कर्मवीर वही है जिसने भैंसों की पूंछ पकड़ने वालों को कलम पकड़ने के लिए मजबूर कर दिया।” बाद में बाला साहब ने ग्रांट बहाल कर दी।

गहन अवलोकन व निरीक्षण

गाडगे बाबा हमेशा गांवों-शहरों का दौरा करते हुए समाज की छोटी-बड़ी घटनाओं का बारीकी से अवलोकन-निरीक्षण करते थे और उनके निदान-समाधान का रास्ता तलाशते और उस पर कार्य करते। वे हमेशा यह सोचते थे कि कैसे लोग जागरूक हों और कुप्रथाओं, कुरीतियों को दूर करने हेतु प्रयास करें। आम जनमानस को तमाम ढोंग से मुक्त कर व्यवहारी कर्तव्य कर्म पर लाने के लिए उन्होंने प्रबोधन का सहारा लिया था।

समाज कल्याण के कार्य

उन्होंने समाज के कल्याण हेतु बहुत से कार्य किए। एक फक्कड़ और घुमक्कड़ी व्यक्ति होते हुए भी उन्होंने समाज कल्याण हेतु बड़ी-बड़ी धर्मशालाओं, छात्रावासों, गोसंरक्षण संस्थाएं, वाचनालय, विद्यालय, पक्के घाट, प्याऊ आदि बनवाए। उनके द्वारा शुरू की बहुत सी संस्थाएं आज भी लोक कल्याणकारी कार्य कर रही हैं।

आत्मविश्वास और मेहनत पर भरोसा

वे खुद पर अधिक भरोसा करते थे और मेहनत करने से पीछे नहीं हटते थे। चाहे वह मामा चंद्रभान जी के यहां रहे हों या फिर गृहत्याग के बाद के जीवन में। वे कहते थे कि परिश्रम से बड़े-बड़े मसले हल हो जाते हैं। वे जहां जिस गांव में जाते बिना कुछ किए भोजन न ग्रहण करते थे। जब वे गांधी जी के आश्रम वर्धा गए थे तब भी उन्होंने भोजन के बदले में परिसर की स्वच्छता हेतु झाड़ू लगाया था तब गांधी जी को भी बहुत आश्चर्य हुआ था। वे अपनी कार्यशैली से लोगों के समक्ष ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते थे कि लोग स्वयं उनका अनुसरण करने लगते थे।

वे एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की भांति समाज में बदलाव लाने हेतु न केवल कीर्तनों और अभंगों के जरिए उपदेश देते अपितु कार्य कर सिद्ध भी करते थे। उनके कीर्तन लोगों का अज्ञान दूर कर उन्हें जागरूक करने और इंसानियत सिखाने के लिए होते थे। लोकहितवादी गाडगे महाराज ने स्वच्छता का लोकधर्म हम सबके सामने जिस तरह से रखा और सामाजिक परिवर्तन का जितना कार्य अकेले किया आजादी के बाद से अब तक की सरकारें नहीं कर पाई हैं।

यदि आंदोलनों की बात करें तो आज भी शहरी आंदोलन सिर्फ शहर में ही समाजवादी तत्वों की केवल पुरानी बातों को ही दोहराते रहते हैं जबकि बाबा गाडगे ने लाखों गांवों में घूम-घूमकर अपने उपदेशों द्वारा बहुजन समाज के जीवन में फैले अंधेरों को दूर करने का भागीरथ प्रयास किया। उन्होंने लोगों को न केवल झाड़ू का नया लोकधर्म सिखाया अपितु उनके मन में बैठी मैल का भी सफाया करने का काम किया।

वे कहते थे कि “खुद के लिए तो सभी सोंचते हैं, लेकिन बाकी जरूरतमंद लोगों के लिए प्रयास करना ही भगवान की सच्ची सेवा होगी।” धोबी समुदाय सहित अन्य पिछड़े तबकों में प्रचलित रूढ़ियों के खात्मे का जो प्रयास गाडगे बाबा जी ने किए था चाहे वह व्यसनों से मुक्ति के लिए हो या फिर दहेज निषेध के लिए हो या शिक्षा हेतु किए गए प्रयास इन सबको आगे बढ़ाना और समाजिक बदलाव हेतु उनके बताए हुए मार्गों का अनुसरण कर कार्य करना ही सही मायने में उनको श्रद्धांजलि अर्पित करना होगा। ऐसे महान पुरोधा को कोटिशः नमन🙏🏻🙏🏻🙏🏻

डॉ. नरेन्द्र दिवाकर, मो. 9839675023

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