वह जमीन 35 करोड़ रुपये प्रति एकड़ है। वह जमीन यानी कोकापेट नियोपोलिस फेज-2 में HMDA द्वारा तय की गई जमीन की कीमत है। लेकिन रियल्टी कंपनियों की बीच इस जमीन को खरीदने के लिए काफी होड़ लगी है। नतीजा यह हुआ कि 40 करोड़, 50 करोड़, 60 करोड़, 70 करोड़, 80 करोड़, 90 करोड़ रुपये से बढ़कर एक सौ करोड़ रुपये पार हो गई। इस नीलामी को देखने वाले कई लोगों के मुंह से एक ही शब्द निकला- ”क्या यह जमीन है या सोने की खान?”
कोकापेट जमीन की नीलामी के साथ कोकापेट अब करोड़ों की पेटी बन गई है। गुरुवार को ऑनलाइन आयोजित कोकापेट जमीन की नीलामी में एक एकड़ 100.75 करोड़ रुपये रिकॉर्ड कीमत बोली लगाई गई। पिछले साल वहां हुई जमीन की नीलामी में 60.20 करोड़ रुपये की सबसे ऊंची कीमत बोली लगाने वाली राजपुष्पा रियल्टी कंपनी इस बार 100 करोड़ रुपये प्रति एकड़ जमीन खरीदने के लिए आगे आई है।
एचएमडीए अधिकारियों द्वारा प्रति एकड़ न्यूनतम कीमत 35 करोड़ रुपये तय की गई थी, लेकिन प्रति एकड़ औसत कीमत 73.23 करोड़ रुपये बोली लगाई गई। यह अधिकारियों की अपेक्षा से अधिक है। कई कंपनियां न्यूनतम कीमत से दोगुनी कीमत पर जमीन खरीदने के लिए आगे आये हैं। सबसे कम प्रति एकड़ 67.25 करोड़ रुपये बोली लगाई गई। एचएमडीए द्वारा बेची गई 45.33 एकड़ जमीन से 3,319.60 करोड़ रुपये की सरकार को आय हुई है।
कोकापेटा ज़मीन की नीलामी पर 111 GO को हटाने का असर कहीं पर भी दिखाई नहीं दिया। कोकापेट में अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ एचएमडीए द्वारा विकसित किए जा रहे नियोपोलिस लेआउट-2 में 3.60 एकड़ से 9.71 एकड़ क्षेत्रफल वाले सात भूखंडों की गुरुवार को केंद्र सरकार क्षेत्र की संस्था एमएसटीसी ई-कॉमर्स द्वारा ई-नीलामी की गई। सुबह 11 से शुरू हुई जमीन की नीलामी शाम 7 बजे तक चली।
सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक 6, 7, 8 और 9 प्लॉट की नीलामी की गई और दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक 10, 11 और 14 प्लॉट की नीलामी की गई। ई-नीलामी में भाग लेने वाली कई रियल एस्टेट और अन्य कंपनियों ने प्रतिस्पर्धात्मक रूप से कीमत बढ़ा दी। अधिकतम एकड़ की कीमत 100.75 करोड़ रुपये प्लॉट नंबर 10 पर बोली लगाई गई है। इसका विस्तार 3.6 एकड़ है।
इस प्लॉट को राजपुष्पा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड ने 362.70 करोड़ रुपये की लागत से खरीदा था। इस प्रतिस्पर्धा का कारण यह है कि बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों को लगता है कि कोकापेट नियोपोलिस लेआउट में प्लॉट खरीदने से उनकी छवि सुधरेगी और बढ़ेगी। चूंकि नीलामी में अंत तक कई कंपनियों ने भाग लिया। इसलिए कीमत में भारी वृद्धि हुई है।
इसके चलते कुछ कंपनियां पीछे हट गई हैं। साथ ही इस बार तीन नई रियल एस्टेट कंपनियां यहां पर जमीन की खरीदी की है। अधिकारियों ने सोचा था कि कुल 45.33 एकड़ जमीन की नीलामी में 2 हजार करोड़ रुपये तक मिलेंगे। उससे भी ज्यादा यानी 3,319.6 करोड़ रुपये की आय से अधिकारी खुश हैं। पिछले साल 15 जुलाई को कोकापेट में एचएमडीए ने 49.94 एकड़ जमीन बेची थी और उसे 2 हजार करोड़ रुपये की आय हुई थी.
इस बार केवल 45 एकड़ से 3,319 करोड़ रुपए की सरकार को आय हुई है। उस समय प्रति एकड़ अधिकतम कीमत 60.20 करोड़ रुपये और सबसे कम 31.20 करोड़ रुपये बोली लगाई गई थी। उस समय भी तेलंगाना की कई विकास कंपनियों ने नीलामी में प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया और जमीन हासिल की। इस बार दूसरे राज्यों की कंपनियों ने भी नीलामी में भाग लिया और जमीन हासिल की। बेंगलुरु स्थित ब्रिगेड ने 9.71 एकड़ क्षेत्रफल वाले प्लॉट नंबर 8 को खरीदा है।
सबसे अधिक कीमत पर प्लॉट नंबर 10 पाने वाले राजपुष्पा संस्थान ने 6.55 एकड़ क्षेत्रफल वाला प्लॉट नंबर 7 भी खरीदा है। राजपुष्पा इन दो भूखंडों की खरीद में एक संयुक्त उद्यम के साथ आई है। गौरतलब है कि ई-नीलामी में पहला प्लॉट सत्यनारायण रेड्डी मन्ने ने खरीदा था। इस बार भी उन्हीं की कंपनी एमएसएन फार्मकेम संस्था ने सात एकड़ क्षेत्रफल का छठवां नंबर प्लॉट हासिल किया है।
जिन कंपनियों या व्यक्तियों ने ये प्लॉट खरीदे हैं, उन्हें 5 करोड़ रुपये की जमा राशि को छोड़कर, सात दिनों के भीतर जमीन की कीमत का कम से कम 33 प्रतिशत भुगतान करना होगा। दूसरी किस्त में भूमि की लागत का 33 फीसदी भुगतान अगले 30 दिनों में किया जाना चाहिए। अंतिम किश्त के रूप में 5 करोड़ रुपये की जमा राशि मिलाकर 90 दिनों के भीतर भुगतान किया जाना चाहिए। यदि एक सप्ताह के भीतर पहली किस्त का भुगतान नहीं किया गया तो नोटिस देकर खरीद रद्द कर दी जाएगी। जमा धनराशि वापस नहीं की जायेगी।
विश्लेषकों की टिप्पणी
मीडिया में प्रसारित और खबरों के अनुसार, पृथक तेलंगाना गठन के बाद केसीआर सरकार ने विकास के नाम लगभग पांच लाख करोड़ रुपये कर्ज लिया है। इस के ब्याज के रूप में हर महीने में करोड़ रुपये भूगतान कर रही है। इसके चलते अनेक विभागों के कर्मचारियों को ठीक समय पर वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। साथ ही मुख्यमंत्री केसीआर अनेक सभाओं में भाग ले रहे हैं और अनेक आश्वासन दे रहे हैं। लेकिन उसके लिए एक पैसा भी जारी नहीं कर रहे है। इसके चलते लोग केसीआर के आश्वासन पर विश्वासन नहीं कर रहे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि कर्ज में डूब चुकी तेलंगाना सरकार अब जमीनों की नीलामी कर रही है। वैसे तो इस/इन सरकारी जमीनों पर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल, गरीबों के मकान और शोधकार्य के निर्माण किये जानी चाहिए। ऐसा होने पर अच्छे नागरिक होकर राज्य और देश के विकास में अहम भूमिका निभा सकते है। ध्यान में रहे कि सरकार का मतलब प्रजा होती है। अर्थात सरकारी जमीन प्रजा की जमीन होती है और होनी चाहिए।
यह दुख की बात है कि केसीआर सरकार लगातार जमीन बेचती जा रही है और हमारे सभी पालिकाएं खामोश देख रही है। सरकारी जमीन को किसी भी हाल में रियल्टी कंपनियों को बेचना नहीं चाहिए। इस जमीन का उपयोग केवल स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल, गरीबों के मकान और शोधकार्यों के निर्माण के लिए किया जाना चाहिए। यह नियम केंद्र सरकार पर भी लागू होती है और होनी चाहिए। अब देखना है कि हमारी पालिकाएं और बुद्धिजीवी इसके लिए क्या कदम उठाती है।