मिधानि में हिंदी कार्यशाला: प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा, श्री दिनेश सिंह, श्रीहर्ष वैद्य और डॉ बी बालाजी ने सुझाये भाषा प्रयोग के सरल तरीकें

हैदराबाद: आज रक्षा मंत्रालय के उपक्रम मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानि) में मिधानि की राजभाषा कार्यान्वयन समिति के
तत्वावधान में मिधानि के कर्मचारियों के लिए एक पूर्ण दिवसीय हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला
चार सत्रों में संपन्न हुई।

प्रथम सत्र में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद केंद्र के डॉ. ऋषभदेव शर्मा, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (से.नि.), उच्च
शिक्षा एवं शोध संस्थान ने “राजभाषा के रूप में हिंदी का महत्व” विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान के
दौरान भारत की प्रगति में हिंदी भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रतिभागियों से चर्चा के दौरान हिंदी को भारत
संघ की राजभाषा के रूप में चुनने के औचित्य और उसके इतिहास के संबंध में रोचक जानकारी दी।

ऋषभदेव शर्मा ने विचार व्यक्त किया कि हिंदी के माध्यम से हम आपसी द्वेष-क्लेश मिटानकर भाईचारे की भावना उत्पन्न कर सकते हैं। हिंदी भारतीय जनता के रचनात्मक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हिंदी आत्मनिर्भर भारत के लिए अति महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकती है। उन्होंने प्रतिभागियों को राजभाषा हिंदी के संबंध में संविधान में दर्ज विभिन्न प्रावधानों की जानकारी देते हुए राजभाषा कार्यान्वयन में सरकारी कर्मचारियों के दायित्वों से अवगत कराया।

द्वितीय सत्र में ईएसआई हैदराबाद के सहायक निदेशक (रा.भा.) (से. नि.) दिनेश सिंह ने “कार्यालय में प्रयुक्त प्रशासनिक शब्दावली एवं संक्षिप्त टिप्पण” विषय पर अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों से प्रतिभागियों को प्रशासनिक टिप्पणी को याद रखने और उनके प्रयोग का अभ्यास कराया।

तृतीय सत्र में इस्कॉन हैदराबाद के गीता संदेश प्रबंधक श्रीहर्ष वैद्य ने “अपने मन के साथ बेहतर संबंध बनाएँ” विषय पर
व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान के दौरान जीवन में एक साथ खुश रहने, शांति प्राप्त करने, सफल और समृद्ध होने
जैसे विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि हमारे जीवन में जब अतीत के घटी विपरीत / हानिकारक चीजें
सूक्ष्मतम रूप धारण कर लेती हैं और हम अन्यों के साथ प्रतियोगिता, तुलना करने लगते हैं, गलत दिशा-निर्देश/स्व-
थोपा/अवास्तविक उम्मीदें पालने लगते हैं तो दुखी होने के रास्त स्वयं बनाने लगते हैं।

सोशल मीडिया और गैजेट्स, गलत धारणाएं इत्यादि के कारण अपने प्रियजनों के बीच संचार में विशाल अंतराल आने लगता है तब हम एक शुभचिंतक और एक निम्न स्तरीय सोच वाले व्यक्ति में अंतर करना हमारे लिए मुश्किल होने लगती है। गीता के विभिन्न श्लोकों के माध्यम से उन्होंने यह समझाने का प्रयास किया कि खुश रहने के लिए हमें मन के बारे में जानना बेहद जरूरी है। अपने मन के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाने पर ध्यान देना की आवश्यकता है।

जीवन के कुछ कौशल/अभ्यास/गुण जो हमारे मन को दोस्त बनाने के लिए विकसित किए जाने चाहिए ताकि हम सभी अच्छे और बुरे समय में स्वयं की मदद कर सकें। इसके लिए हमें कृतज्ञता, तन्यकता, लचीलापन जैसे गुणों को विकसित करना चाहिए और साथ ही ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों में शामिल होना चाहिए। अपने संग-साथी चुनने में सतर्कता बरतनी चाहिए और अपने अतिइंद्रियों की ताकत को पहचानी चाहिए। इसके लिए साधना-सतत प्रयास की आवश्यकता होगी।

चतुर्थ सत्र में उद्यम के उप प्रबंधक (हिंदी अनुभाग एवं निगम संचार) डॉ. बी. बालाजी ने हिंदी कार्यशाला के आयोजन के
उद्देश्य किया। उन्होंने कहा कि हिंदी कार्यशाला का एक उद्देश्य जहाँ कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर्मचारियों में व्याप्त हिंदी के
प्रयोग संबंधी झिझक दूर करके दैनिक काम-काज में हिंदी के प्रयोग बढ़ाने के लिए प्रेरित करना और इसके प्रोयग में आने
वाली कठिनाइयाँ का समाधान करना है तो दूसरी ओर इसके प्रयोग के सरल तरीकें सूझाना भी है।

डॉ. बालाजी ने राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन की आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कार्यालय के कामकाज में हिंदी का प्रयोग करने के लिए प्रतिभागियों को प्रेरित किया। डॉ. बालाजी ने राजभाषा विभाग द्वारा जारी वार्षिक कार्यक्रम में उल्लेखित
राजभाषा संबंधी लक्ष्यों की जानकारी दी। कार्यालय में लागू हिंदी की विभिन्न योजनाओं का परिचय देकर प्रतिभागियों को राजभाषा हिंदी में कार्य करने के लिए प्रेरित किया। प्रतिभागियों को राजभाषा में काम करने हेतु शपथ भी दिलाई। कार्यशाला के सफल आयोजन में हिंदी विभाग की श्रीमती डी रत्नाकुमारी, कनिष्ठ कार्यपालक (एनयूएस) का सक्रिय सहयोग रहा है।

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