हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा), हैदराबाद केंद्र द्वारा ‘साहित्य अकादमी से पुरस्कृत तेलुगु साहित्यकार प्रो. एन. गोपि तथा निखिलेश्वर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन (19 मार्च) दिगंबर कविता के प्रमुख हस्ताक्षर निखिलेश्वर के साहित्य पर केंद्रित रहा। इस दौरान दो मुख्य एवं दो समानांतर सत्र तथा समापन सत्र का संचालन किया गया। इसके बाद काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रवीण प्रणव उपस्थित रहे। इस सत्र का संचालन डॉ. रजनी धारी ने किया। इस सत्र में सात वक्ताओं ने आलेख प्रस्तुत किया। डॉ. अनुपमा ने ‘जेल गाथा’ पर अपना वक्तव्य दिया। यातनाओं को भय कविता के साथ जोड़कर लिखा। प्रो. रहीम पठान खान ने एन. गोपि के साहित्य पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। डॉ. परमेश्वर ने निखिलेश्वर की अनुदित पुस्तकों पर प्रकाश डाला। डॉ. पी. श्रीनिवासराव ने कवि कविता और निखिलेश्वर पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया।
डॉ. के. श्याम सुंदर ने ‘तेलुगु हिंदी साहित्य के परिवेक्षक निखिलेश्वर’ विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रवीण प्रणव ने कहा- ‘‘कविताएँ हकीकत का बयाँ करे तभी कविता है।’’ सामाजिक दर्द के लिए आवाज़ उठाना और सत्ता का कोपभाजन बनना कठिन कार्य है, इसलिए सुदामा पाण्डेय धुमिल बन जाते हैं और कुसुकुंभम यादव रेड्डी निखिलेश्वर बन जाते हैं। निखिलेश्वर की कविता ‘दिवा स्वप्न’ नहीं दिखाती है।
प्रथम सत्र की खबर :
दिगंबर कवि ज्वालामुखी कहते हैं- ‘‘अभिव्यक्ति के लिए कभी-कभी गाली का प्रयोग करना पड़ता है।’’ लड़ाई समाज के साथ मिलकर लड़ना चाहिए। ‘आमंत्रित’ कविता में निखिलेश्वर यह संदेश दे रहे हैं कि हम सब मिलकर ही शोषण से मुक्ति पा सकते हैं। प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि इस सत्र में सात आलेख प्रस्तुत किए गए जो निखिलेश्वर की साहित्य वैचारिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत करते हैं।
समानांतर चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता प्रो. रेखा शर्मा ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. श्याम राठोड उपस्थित रहे। वक्ता डॉ. सुपर्णा मुखर्जी, डॉ. एल. अनिल, पंकज सिंह यादव और जय प्रकाश नागलर ने निखिलेश्वर के साहित्य पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन हैदराबाद केंद्र के अतिथि प्रवक्ता पंकज सिंह यादव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुपर्णा मुखर्जी ने किया।
पंचम सत्र- प्रो. विष्णु सरवदे ने इस सत्र की अध्यक्षता की। मुख्य वक्ता के रूप उपस्थित प्रसिद्ध भाषाविद् प्रो. गोपाल शर्मा ने कहा कि कवि को कवि जैसा दिखना चाहिए। इन्होंने कहा कि निखिलेश्वर की कविताओं को जब मैं अनुवाद के माध्यम से देखता हूँ, तो मैं भ्रम में पड़ जाता हूँ कि गद्य पढ़ रहा हूँ या पद्य। इन्होंने बताया कि कुसुकुंभम यादव रेड्डी (निखिलेश्वर) जी का साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं हैं बल्कि यह समाज के व्यूह को रखता है।
डॉ. दत्ता साकोळे ने निखिलेश्वर की अनुदित रचना ‘इतिहास के मोड़ में राजनीतिक, सामाजिक चेतना’ विषय पर अपना व्यक्तव्य प्रस्तुत किया। डॉ. शेषुबाबु ने ‘निखिलेश्वर की कविता में प्रगतिशील चिंतन’ विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा- “कविता कठघरे में खडे़ बेकसूर आदमी का हलफनामा है”। डॉ. विनीता सिन्हा ने ‘तेलुगु की दिगम्बर की कविता और निखिलेश्वर’ विषय पर अपना गंभीर विश्लेषण प्रस्तुत किया।
डॉ. लक्ष्मणाचार्यालु ने निखिलेश्वर के काव्य में व्यक्त राजनीतिक, सामाजिक चेतना विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि मैं सबसे पहले दिगम्बर कवियों में ज्वालामुखी से परिचित था। सामाजिक, धार्मिक परिस्थिति से जब कवि का मानव मन आलोड़ित हो जाता है तब दिगम्बर कविता की उत्पत्ति होती डॉ. रजनीधारी ने कवि ‘निखिलेश्वर की चुनिंदा कविता में मानवीय संवेदना’ विषय पर बताया कि सच्चाई को कोने में खड़ा अपराध बोध कराया जाता है। इसे निखिलेश्वर ने अपनी रचना में व्यक्त किया है।
सी. पी. सिंह ने निखिलेश्वर के काव्य ‘इतिहास के मोड़ पर’ में सामाजिक, राजनीतिक चेतना की अभिव्यक्ति’ विषय पर अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि सामंतवाद और पूँजीवाद की मिश्रित सामाजिक व्यवस्था में जनता का दोहरा शोषण हो रहा था इसके विरोध में दिगंबर कविता का प्रादुर्भाव हुआ। धन्यवाद ज्ञापन क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे ने दिया। इस सत्र का संचालन डॉ. पंकज सिंह यादव ने किया।
समानांतर सत्र की अध्यक्षता डॉ. आई. एन. चंद्रशेखर रेड्डी ने की। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. रेखा रानी उपस्थित रहीं। इस सत्र में डॉ. संतोष कांबले, डॉ. नाग पद्मिनी, डॉ. लक्ष्मी, डॉ. शैक अफरोज और डॉ. अपर्णा चतुर्वेदी ने अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। धन्यवाद और संचालन का दायित्व डॉ. सुपर्णा मुखर्जी ने किया।
समापन सत्र की अध्यक्षता क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे ने किया। मुख्य अतिथि उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो. शुभदा वांजपे एवं विशिष्ट अतिथि विश्व हिंदी मैत्री मंच के संस्थापक डॉ. रियाजुल अंसारी सम्माननीय अतिथि साहित्यकार निखिलेश्वर उपस्थित थे। प्रतिवेदन पंकज सिंह यादव ने प्रस्तुत किया। मंच का संचालन डॉ. संध्या दास ने किया।
अतिथियों का स्वागत और सम्मान क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे ने किया। सम्मान में इनका सहयोग डॉ. एस. राधा ने किया। सत्राध्यक्ष डॉ. गंगाधर वानोडे ने कहा कि दोनों साहित्यकारों के साहित्य पर शोध होना चाहिए इस संदर्भ में इन्होंने डॉ. विष्णु सरवदे, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. ऋषभदेव शर्मा आदि विद्वानों के मंतव्य का सार व्यक्त किया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. रियाजुल अंसारी ने कहा कि निखिलेश्वर जी ने छह या सात दशकों से लिखा है लेकिन इनकी पहचान तब होती है जब समाज में परिवर्तन होता दिखाई है तब उनके रचनाओं पर दृष्टि जाती है और उनके बारे में पढ़ना आवश्यक हो जाता है। अनुवाद में वह शब्द नहीं है, जो इनकी मूल रचनाओं में है। निखिलेश्वर जी की दृष्टि शब्द चयन में बहुत महत्वपूर्ण है। दिगंबर कवियों के समय में राजनीतिक व्यवस्था क्या थी उस पर आत्ममंथन किया गया। निखिलेश्वर की कविताओं में जो कुंठित दर्द छिपा है उसे हम देख सकते हैं। हिंदी सभी भाषाओं को जोड़ सकती है।
मुख्य अतिथि शुभदा वांजपे ने संगोष्ठी की सफलता से अवगत कराते हुए कहा-‘‘कविता हृदय की भाषा है। उसको किसी भी भाषा में प्रस्तुत किया जा सकता है। यह कथन निखिलेश्वर का है।’’ प्रो. एन. गोपि एवं निखिलेश्वर पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की सफलता के लिए क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे को साधुवाद देते हुए कहा कि इन दोनों कवियों की कविताएँ प्रगतिशील हैं, फिर भी अभिव्यक्ति में अंतर है लेकिन भाव धारा समान है। निखिलेश्वर के काव्य में ‘तेवरी’ कविता का भाव दर्शित होता है। यह वाह्य आडंबरों का विरोध करता है। इन्होंने पंजाबी कवि और धूमिल को उद्धृत करते हुए कहा कि निखिलेश्वर के काव्य में भुख के प्रति विरोध दिखाई देता है। कवि के अनुसार अच्छाई संघर्षरत् है। कवि द्वय ने वर्तमान समय में सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया है।
इन्होंने ने कहा-
भूख भूख होती है
न ब्राह्मण होती है
न क्षत्रिय होती है
भूख भूख होती है
संगोष्ठी प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए पंकज सिंह यादव ने बताया कि संगोष्ठी में उद्घाटन और समापन सत्र को लेकर सात सत्र संचालित किए गए। प्रथम द्वितीय, चतुर्थ और पंचम सत्र के समानांतर चार सत्र चलाए गए हैं। इस संगोष्ठी में कुल मिलाकर साठ वक्ताओं द्वारा 18 मार्च को कवि एन. गोपि की तथा 19 मार्च को कवि निखिलेश्वर की रचनाओं पर प्रपत्र प्रस्तुत किए गए।
समापन सत्र के बाद काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस काव्य सत्र की अध्यक्षता हैदराबाद की सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकारा डॉ. अहिल्या मिश्र ने की। इस सत्र में केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे उपस्थित रहकर निरंतर कवियों का उत्साह बढ़ाते रहे। डॉ. राजीव सिंह ने काव्य गोष्ठी का संचालन किया। सम्मान मूर्ति निखिलेश्वर जी का काव्यपाठ इस सत्र को विशेष बना गया। प्रो. पद्मप्रिया, डॉ. रजनी धारी, डॉ. आशा मिश्र, डॉ. एफ एम सलीम, देवा प्रसाद मयला, ज्योति नारायण, डॉ. सुषमा द्विवेदी, डॉ. दत्ता साकोले, सरिता सुराणा, दीपक वाल्मीकि, रचना चतुर्वेदी, दयाशंकर प्रसाद, श्री देवी, सी पी सिंह, डॉ. जय प्रकाश नागला, महजबीन, नारायण खराद, जी. परमेश्वर, लक्ष्मणाचार्युलु, डॉ. श्याम सुंदर के साथ संचालक डॉ राजीव सिंह तथा सत्र अध्यक्षा डॉ. अहिल्या मिश्र ने भी काव्य पाठ किया।
धन्यवाद ज्ञापन सी. पी. सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. गंगाधर वानोडे, डॉ. एस. राधा, अतिथि प्रवक्ता पंकज सिंह यादव, वसीम, लक्ष्मण, शेख मस्तान वली, सजग तिवारी एवं अन्य कर्मचारीगण का सम्मान अतिथियों द्वारा किया गया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।