वैश्विक हिन्दी परिवार: रचनात्मक जीवन-दिशा और दृष्टि पर परिचर्चा आयोजित, देश-विदेश के वक्ताओं दिया संदेश

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट): वैश्विक हिन्दी परिवार के तत्वावधान में विश्व हिन्दी सचिवालय,अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और केंद्रीय हिन्दी संस्थान तथा वातायन के सहयोग से ‘रचनात्मक जीवन की दिशा और दृष्टि’ विषय पर गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात लेखक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि जीवन में देखने की अपेक्षा दृष्टि का विशेष महत्व है। सूर और तुलसी आदि की तरह दृष्टि ही दिशा तय करती है। हम निजता का विसर्जन करते हुए प्रेम से रूह के निकट आयें। स्वर्ग की वस्तुएं धरती से मिले बिना मनोहर नहीं होतीं। साहित्य, संगीत और कला की रचनात्मकता में समग्रता के साथ जीवन के लिए चिरनवीनता बनी रहनी चाहिए।

मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात साहित्यकार एवं चिंतक तथा मध्य प्रदेश शासन के पूर्व अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि अंग्रेजी (आङ्ग्ल) कैलेंडर वर्ष के पीछे औपनिवेशिक पृष्ठभूमि है। हमें चिरंतन चेतना के मद्देनजर स्वयं दिशानुबन्धित होना होगा। यह जनतंत्र के बचाव का समय है। आगामी वर्ष में दुनियाँ के 73 देशों में चुनाव संभावित हैं। अतएव रामानुप्रेरित जीवन की दिशा और दृष्टि श्रेयस्कर होगी। हम आज्ञा पालन के साथ अपर्याप्तता का अहसास न होने दें और शून्य को भरें तथा किसी भी स्थिति में आक्रामक और विध्वंसक न हों। रचनात्मकता में परास्त न होने की जिद होती है। अतएव झूठी आत्मसंतुष्टि से बचना और विभाजक रेखा को झुठलाना होगा। स्वांत: सुखाय के लिए अपने पेट को कब्रिस्तान न बनाएँ।

कार्यक्रम में सान्निध्य प्रदान करते हुए वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष एवं प्रवासी साहित्य के मर्मज्ञ अनिल जोशी ने अपनी कविता में प्रस्तुति दी कि ‘प्रश्न पूछती रोज जिंदगी, मैं बगलें झांक रहा हूँ। अपनी आत्मा की ऊंचाई, सुविधाओं में आंक रहा हूँ।’ नव वर्ष की शुभ कामनाएँ देते हुए उन्होंने, जैसे मेरे हों प्रभु, वैसे सबके हों प्रभु, शीर्षक से रचना सुनाकर शुभाशंसा दी।

भोपाल से साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा विषय प्रवर्तन और आत्मीयता पूर्वक स्वागत किया गया। भारतीय रेलवे के राजभाषा निदेशक डॉ बरुन कुमार द्वारा यथोचित भूमिका के साथ शालीनता, विद्वता और बड़े इत्मीनान से संतुलित संचालन किया गया। उन्होंने बारी-बारी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सहज भाव से सादर आमंत्रित किया।

कार्यक्रम में जापान से पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामी, अमेरिका से अनूप कुमार, यूके की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, कवयित्री जय वर्मा, चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से डॉ नारायण कुमार, आलोक गुप्ता, सर्वेन्द्र विक्रम सिंह, राजेश गौतम, गोवर्धन यादव, डालचंद, महबूब अली, सिद्धय्या, संध्या सिलावट, अनिल तिवारी, अपेक्षा कुमारी, माधुरी क्षीरसागर, जितेंद्र चौधरी आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा और कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और केंद्रीय हिन्दी संस्थान के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में डॉ जयशंकर यादव द्वारा वक्ताओं के कथनों के मुख्य अंशों को रेखांकित करते हुए आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ताओं, संचालकों, संयोजकों, प्राध्यापकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं देश विदेश से जुड़े सुधी श्रोताओं तथा कार्यक्रम टीम सदस्यों आदि के नामोल्लेख सहित कृतज्ञता प्रकट की गई।

समूचा विलक्षण कार्यक्रम गहन चिंतन मनन और जीवन दर्शन की सही दिशा और दृष्टि सहित सुखद आत्मीय अनुभूति और सानंद सम्पन्न हुआ। श्रोताओं द्वारा ऐसे कार्यक्रम करते रहने की भी मांग रखी गई। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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