तुलसी और वाल्मीकि के राम विषय पर संवाद कार्यक्रम आयोजित, अनेक देशों के साहित्यकारों ने किया संबोधित

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : वैश्विक हिंदी परिवार और केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा राम नवमी के उपलक्ष्य में ‘तुलसी और वाल्मीकि के राम’ विषय पर रविवारीय कार्यक्रम में प्रखर लेखक,आलोचक एवं राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पूर्व कुलपति प्रो राधा बल्लभ त्रिपाठी से संवाद आयोजित किया गया। साहित्यकार और रेल मंत्रालय में राजभाषा के निदेशक डॉ बरुण कुमार द्वारा शालीन ढंग से संवादी की भूमिका का निर्वहन किया गया। वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष एवं चिंतक अनिल जोशी ने सान्निध्य प्रदान किया। इस अवसर पर अनेक देशों के साहित्यकार, विद्वान-विदुषी, प्राध्यापक, रामानुरागी, शोधार्थी और भाषा प्रेमी आदि काफी संख्या में जुड़े थे।

आरंभ में भोपाल से साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा सारगर्भित भूमिका सहित आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। तत्पश्चात लेखक एवं चिंतक डॉ बरुण कुमार द्वारा मर्यादित ढंग से संचालन का दायित्व संभालते हुए आचार्य प्रवर का संक्षिप्त परिचय कराया गया। ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश के राजगढ़ में 1949 में जन्मे और 60 वर्षों से अध्यापन-लेखन से जुड़े त्रिपाठी संस्कृत आचार्य परंपरा के चोटी के विद्वान तथा आधुनिकता का संस्कार देने वाले आचार्य प्रवर हैं। वर्ष 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत त्रिपाठी ने संस्कृत व हिंदी में 100 से अधिक प्रामाणिक पुस्तकों का प्रणयन किया है। चार खंडों में नाट्य शास्त्र विश्वकोश इत्यादि वैश्विक धरोहर हैं। उनके व्यक्तित्व में सहज सुभाय छुआ छल नाहीं, सहज ही चरितार्थ होता है।

संवाद की शुरुआत में डॉ बरुण कुमार ने उद्भट विद्वान प्रो राधा बल्लभ त्रिपाठी से सहज भाव से वाल्मीकि के राम और तुलसी के राम में मूलभूत अंतर जानने की जिज्ञासा जाहिर की। आचार्य प्रवर ने संवाद पर हर्ष प्रकट करते हुए कहा कि वाल्मीकि के राम, ऋषि परंपरा और आर्ष महाकाव्य के राम हैं जो भूत, वर्तमान और भविष्य के आर-पार देखकर मनुष्य को सच्ची राह दिखाते हैं। क्रौंच पक्षी की व्यथा देखकर ऋषि वाल्मीकि कवि हो गए और नारद की सलाह पर एक मनुष्य में सारी संभावनाएं निहित रखने वाले राम के चरित्र का प्राणियों के हित में वर्णन किए। तुलसी के राम, संत परंपरा के समाज तारक रूप में अवतारी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। नवनीत से कोमल हृदय वाले राम त्राण दिलाते हैं। मनुष्य में संघर्ष के कारण ईश्वरत्व आ जाता है।

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वाल्मीकि और तुलसी के कालखंड के अंतर के मद्देनजर विकास क्रम और दृष्टिकोण के सवाल पर आचार्य प्रवर ने कहा कि वाल्मीकि के राम सामान्य जन की नजर में क्रमशः ऊपर उठने लगे जबकि तुलसी के राम आक्रमणकारियों और रौंदने वालों से त्रस्त जनता की आह और कराह के अवलंबन थे। उनमें ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय सहज ही दिखता है। दृष्टिकोण का अंतर स्वाभाविक है। अब भी पुनरावलोकन किया जा सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम और परंपरा से विद्रोह के प्रश्न पर उन्होने कहा कि मर्यादाएं स्थापित की जाती हैं। राम ने एक ही पत्नी की मर्यादा का पालन किया जबकि बहुपत्नी प्रथा से विकृतियाँ आ गई थीं। अहिल्या धोखे से पथरा गई थीं। महायोगिनी सबरी जाति-पांति की रूढ़ियों के खंडन और भक्त वत्सलता आदि से भी जुड़ी है।

शंबूक बध को जोड़ने और न जोड़ने के सवाल पर आचार्य जी ने दृष्टांत सहित कहा कि इसे जोड़ना मूर्खता का प्रतीक है। योगेश्वर कृष्ण की तरह योगेश्वर राम के प्रश्न पर उन्होने कहा कि काल क्रम के अनुसार राम के साथ योगेश्वर जोड़ना उचित नहीं। ऐतिहासिक राम मंदिर के निर्माण पर उनका स्पष्ट मत था कि राम कथा केवल इतिहास, आख्यान या मिथक नहीं है। इसका परिप्रेक्ष्य इन सबकी सीमाओं से परे है। इस अवसर पर आचार्य द्वारा अमेरिका से जुड़े प्रो. सुरेन्द्र गंभीर, यूक्रेन से प्रो यूरी बोत्विंकिन, जापान से पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामि, उज्बेकिस्तान से प्रो उलफत तथा भारत से डॉ बुद्धिनाथ मिश्र और ललित भूषण की शंकाओं का बेबाक विश्लेषण सहित समाधान किया गया।

वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष एवं कवि, लेखक अनिल जोशी ने आचार्य द्वारा आज प्रवाहित ज्ञान धारा को अविस्मरणीय बताया और कहा कि आजादी के बाद से हमारे देश में राम के बारे में भ्रामक और आधारहीन दृष्टिकोण भी फैलाये गए। राम को हिन्दू समाज का पथभ्रष्टक तक कहा गया। उन्होंने सरिता पत्रिका एवं भारत एक खोज के साथ गिरमिटिया की व्यथा में निर्बल के बल राम का सशक्त उदाहरण दिया। जोशी द्वारा राम की शक्ति पूजा और राम के चरित्र की सही व्याख्या हेतु ध्यान आकृष्ट किया गया। उन्होने आचार्य प्रवर प्रो त्रिपाठी का हार्दिक अभिनंदन किया।

कार्यक्रम में अमेरिका से आचार्य सुरेन्द्र गंभीर, अनूप भार्गव, यू के की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, अरुणा अजितसरिया, आशा बर्मन रूस से प्रो म्यूद्विला, अल्पना दास, मॉरीशस से सुनीता पाहुजा, इंद्राणी राम परसाद, सुधान पौडेल चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी, मैड्रिड से पूजा अनिल तथा भारत से साहित्यकार नारायण कुमार, राजेश कुमार,अरुण माहेश्वरी, रामचन्द्र स्वामी, सतविंदर सिंह, बिप्लव चौधरी, राज कुमार शर्मा, प्रो राजेश गौतम, डॉ. गंगाधर वानोडे, माधुरी क्षीरसागर, मिहिर मिश्र, हरीराम पंसारी, अरविंद पथिक, रंजीत कुमार, नूतन पाण्डेय, विवेक रंजन श्रीवास्तव, सुषमा देवी, पूनम सापरा, ऊषा सूद, रश्मि वार्ष्णेय, डालचंद, सत्य प्रकाश, सोनू कुमार, कौशिक, ऋषि कुमार, विनय शील चतुर्वेदी, जितेंद्र चौधरी, ज्योति पंत, स्वयंवदा एवं अनुज आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ सुरेश मिश्र उरतृप्त और कृष्णा कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिंदी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के संयोजकत्व में संचालित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख की सशक्त भूमिका ब्रिटेन से साहित्यकार दिव्या माथुर द्वारा बखूबी निभाई गई। अंत में भारत से डॉ जयशंकर यादव द्वारा आत्मीयता से नामोल्लेख सहित आचार्य प्रवर, सानिध्यप्रदाता, विशेष संवादी, वक्ताओं, संरक्षकों, संयोजकों, तकनीकी सहयोगियों, कार्यक्रम सहयोगियों और सभी सुधी श्रोताओं तथा रामानुरागियों आदि के प्रति प्रभु की कृपा भयउ सब काजू ,सहित कृतज्ञता प्रकट की गई। समूचे कार्यक्रम में ज्ञान दान, राममय बेबाक विश्लेषण और जीवन की धन्यता की अनुभूति हुई। ध्यान मग्न होकर सुनने वाले श्रोताओं के बीच हरि अनंत हरि कथा अनंता,चरितार्थ हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिंदी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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