‘हिंदी शिक्षण में सोशल मीडिया की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान, प्रो सुरेन्द्र गंभीर ने की अध्यक्षता और कही यह बात

हैदराबाद : वैश्विक हिंदी परिवार द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन तथा भारतीय भाषा मंच के संयुक्त तत्वावधान में रविवारीय कार्यक्रम में पेंसिलवेनियाँ विश्वविद्यालय अमेरिका के पूर्व आचार्य प्रो सुरेन्द्र गंभीर की अध्यक्षता में ‘हिंदी शिक्षण में सोशल मीडिया की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया।

इस अवसर पर सुरेन्द्र गंभीर ने कहा कि सोशल मीडिया पर भाषा शिक्षण के चारो कौशल विद्यमान हैं किंतु पढ़ने का चलन अधिक है। इससे शिक्षकों और विद्यार्थियों को नई दिशा मिलेगी। प्रारंभिक स्तर से लेकर शोध कार्य तक प्रवीणता के मानदंडों के अनुसार भी प्रचुर मात्रा में सामग्री सहज रूप से मिल जाती है। दूरस्थ विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन सुविधा उपयोगी सिद्ध हुई है। भाषा शिक्षण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की अधिकाधिक उपयोगिता है। उन्होंने अमेरिका के मिलिंद रानाडे द्वारा निर्मित एक स्पष्ट हिन्दी उच्चारण वाला चमत्कारिक वीडियो भी सुनाया जो सीखने और बोलने में बहुत सहायक है। इस अवसर पर अनेक देशों के साहित्यकार, विद्वान-विदुषी, प्राध्यापक, शोधार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़े थे।

आरम्भ में स्पेन में हिंदी गुरुकुल की संस्थापक सुश्री पूजा अनिल द्वारा सारगर्भित संक्षिप्त पृष्ठभूमि सहित सबका आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया गया। तत्पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो विजय कुमार मिश्र ने सधे शब्दों में मर्यादित ढंग से संचालन का दायित्व संभाला गया और वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया।

विशेष वक्ता के रूप में उज्बेकिस्तान के ताशकंद विश्वविद्यालय की डॉ नीलूफर खोजाएवा ने कहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से अब ऑनलाइन कक्षाओं में भारतीय विद्वानों के साथ, ताशकंद में भारत जैसा ही हिंदीमय माहौल मिलने लगा है। उज्बेकिस्तान में हिन्दी में पीएचडी तक की पढ़ाई होती है और सभी स्तरों पर दिल्ली के तीनों शीर्षस्थ विश्वविद्यालयों के साथ हिन्दी उज्बेकी यूथ फोरम है। विद्यार्थी भारतीय प्राच्य विद्या उज्बेकी में भी पढ़ते हैं जिसमें मीडिया से समाचार पत्र आदि सीधे ही उपलब्ध हैं। अब केवल सदुपयोग एवं अनुश्रवण की निहायत जरूरत है। गृहस्वामिनी पत्रिका की संपादक एवं तकनीकीविद अर्पणा संत सिंह ने कहा कि कोरोना के बाद ऑनलाइन डिग्री, यू ट्यूब, ट्वीटर, ई पाठशाला, ई लर्निंग और डिजिटल लाइब्रेरी आदि का चलन बहुत बढ़ा है। सोशल मीडिया से शिक्षण में दूर-दराज के गरीब बच्चों की भी पढ़ाई हो जाती है। यदि सदुपयोग और प्रचुर मात्रा में प्रयोग हो तो यह माध्यम स्वयं सिद्ध है। समयानुसार इसके परिमार्जन की आवश्यकता है।

यूक्रेन के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के डॉ यूरी बोत्वीकिन ने कहा कि सोशल मीडिया में अपेक्षाकृत अच्छाई अधिक है। इसके बिना अधुनातनता मुश्किल है। जब कक्षा में ही विद्यार्थी वीडियो आदि देखने लगते हैं तो पहले की तरह खिड़की से बाहर प्राकृतिक दृश्य देखने की अपेक्षा, नियंत्रण करना कठिन होता है। सोशल मीडिया के क्रमिक विकास से नया जमाना आ गया है और दृश्य-श्रव्य, अनुवाद एवं सीधा संपर्क आदि बहुत आसान हो गया है तथा गूगल भाई मददगार हो गया है। नया साहित्य यांत्रिक जीवन से भरपूर है।विश्व रंग भोपाल में सहभागी और प्रेरित हो चुके विद्वान प्रो यूरी का मानना था कि यू ट्यूब पर विपुल जानकारी उपलब्ध है जिसके नीर-क्षीर विवेकी विश्लेषण की जरूरत है। दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिन्दी के मीडिया प्रमुख डॉ आतिश पाराशर ने कहा कि उपयोगकर्ता के नाते सोशल मीडिया हेतु हम कितने जिम्मेदार हैं? आज मोबाइल खो जाना, किडनी निकाल लिए जाने से ज्यादा बेचैन करने वाला हो गया है।

इसमें मुख्यतया चार परिवर्तन आए हैं। 1- श्रोता अधिकाधिक प्रतिभागी हो गया है। 2- मुद्रित माध्यम की उपयोगिता कम हुई है। 3- निर्णय लेने की क्षमता कम हो रही है। 4-हम ऐसे युग में हैं जहां पैसे देकर विशिष्ट बन सकते हैं। जब हम अमेरिका में बैठकर अपने गाँव की खबर ले सकते हैं तो इसके उपयोग की ज़िम्मेदारी क्यों नहीं ले सकते। हम सोशल मीडिया का न्यायपूर्ण उपयोग करें ताकि ज्ञान-प्रेम फैले और नफरत-निरंकुशता रुके। अटलांटा स्थित अमेरिका के एमरी विश्वविद्यालय प्रो बृजेश समर्थ ने सोशल मीडिया के श्वेत-श्याम पक्ष को पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुत किया।

श्वेत पक्ष में कुछ निम्न बिन्दु हैं: 1- बड़ी मात्रा में एक साथ शिक्षण 2- आडियो-वीडियो 3- आसानी से उपलब्धता 4- भाषा कौशल का अभ्यास आसान 5- मातृभूमि और भाषा से सीधा जुड़ाव 6- समुदाय विशेष से सीधा संवाद 7- अभिप्रेरण आदि। श्याम पक्ष के अंतर्गत 1- अधिकाधिक सूचना के साथ बीच-बीच में अन्य सूचनाओं के आ जाने से भटकाव 2- सूचना में विश्वसनीय स्रोत की कमी 3- भटकाव की संभाव्यता 4- बोलने के कौशल की सीमितता । 5- भ्रामक सांस्कृतिक चुनौतियाँ 6- गलत समूह में फंस जाने का खतरा। अतएव इस क्षेत्र में शिक्षक–अभिभावक विशेष ज़िम्मेदारी निभाएँ।

सीधे विमर्श के अंतर्गत दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो राजेश कुमार गौतम का मत था कि सोशल मीडिया तत्काल जिज्ञासा शांत कर सकता है किन्तु आशातीत परिणाम कम हैं। विदेशियों को हिन्दी सिखाने के लिए अलग मंच की निहायत जरूरत है। कोचीन विश्वविद्यालय की शोधार्थी श्रीना श्रीनिवासन का कहना था कि सोशल मीडिया से आलोचनात्मक अभिव्यक्ति को नुकसान पहुँच रहा है। शिक्षकों के पास समय कम पड़ रहा है और विद्यार्थी इसमें अधिक कुशल हैं तथा दूसरों को सुनने के लिए समय नहीं दे पा रहे हैं। दिल्ली की अपूर्वा सिंह का मानना था मानक हिन्दी के अनुरूप सामग्री का अभाव है। शोध में पुस्तकालय ज्यादा कामयाब हैं।

वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष एवं कवि, लेखक अनिल जोशी ने मन्तव्य दिया कि सोशल मीडिया के साथ पाठक का जुड़ना क्रांतिकारी परिवर्तन है। अब लाखों पुस्तकें उँगलियों पर उपलब्ध हो जाती हैं। पाठ के दृश्य तक पहुंचाना ज्यादा प्रभावशाली होता है। निश्चय ही भाषा की विसंगतियाँ चिंताजनक हैं। हम सोशल मीडिया का विवेक से इस्तेमाल करें और भाषा की विद्रूपता से बचें।

कार्यक्रम में अमेरिका से अनूप भार्गव, मीरा सिंह, यू के की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, अरुणा अजितसरिया, आशा बर्मन रूस से प्रो म्यूद्विला, अल्पना दास, सरोज शर्मा, चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, आराधना झा श्रीवास्तव, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से साहित्यकार नारायण कुमार, राजेश कुमार, डॉ. गंगाधर वानोडे, शशिकला त्रिपाठी, सत्येंद्र सिंह, कृष्णा नन्द पाण्डेय, बिप्लव चौधरी, राज कुमार शर्मा, प्रो राजेश गौतम, माधुरी क्षीरसागर, संध्या सिलावट, हरीराम पंसारी, एस आर अतिया, विवेक रंजन श्रीवास्तव, वेंकटेश्वर राव, प्रबोध मल्होत्रा, अंकित अग्रवाल, ऊषा गुप्ता, नीलिमा, परमानंद त्रिपाठी, अरविंद शुक्ल, संजय आरजू, सुषमा देवी, पूनम सापरा, ऊषा सूद, रश्मि वार्ष्णेय, डालचंद, सत्य प्रकाश, सोनू कुमार, अंजलि, वंदना, कविता, सरोज कौशिक, ऋषि कुमार, विनय शील चतुर्वेदी, जितेंद्र चौधरी, स्वयंवदा एवं अनुज आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग का दायित्व कृष्णा कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी द्वारा आत्मीयता से नामोल्लेख सहित माननीय अध्यक्ष, अतिथिवक्ताओं, संरक्षकों, संयोजकों और कार्यक्रम सहयोगियों आदि को धन्यवाद दिया गया। समूचा कार्यक्रम सोशल मीडिया की तरंगों से उल्लासित था। यह कार्यक्रम ‘वैश्विक हिन्दी परिवार’ शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन कार्य डॉ जयशंकर यादव ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X