हैदराबाद : बीजेपी के सांसद वरूण गांधी ने मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत पर टिप्पणी करते हुए किसानों के समर्थन में ट्वीट किया है। सांसद ने कहा है कि किसान हमारे ही शरीर के हिस्से हैं। उनसे दुबारा सम्मानजनक तरीके से बातचीत शुरू करने की कोशिश की जानी चाहिए। उनका दुख और दृष्टिकोण समझने की कोशिश होनी चाहिए। ज्ञातव्य है कि बीजेपी के सांसद वरुण गांधी पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने खुलकर किसानों के समर्थन में आवाज उठाई है।
वरुण गांधी के ट्वीट पर बीजेपी ने कहा है कि वरूण गांधी को यह सलाह देने की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार पहले ही किसानों की स्थिति को बदलने के लिए ठोस उपाय कर रही है। इसका असर जमीन पर दिखने भी लगा है। किसानों से बातचीत का दौर कभी बंद नहीं हुआ है और केंद्र सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह किसी भी मुद्दे पर हमेशा बातचीत को तैयार है।
बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता शाजिया इल्मी ने मीडिया से कहा कि वरूण गांधी ने किसानों के हितों की बात की है। हर देशवासी को किसानों के हितों की बात करनी चाहिए। लेकिन किसी को यह बात याद दिलाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि केंद्र सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर रही है। इन नए तीन कृषि कानूनों से किसानों की बदहाल आर्थिक स्थिति को सुधारने की ही कोशिश की जा रही है।
प्रवक्ता ने कहा कि कृषि सुधारों के सबसे ब़ड़े हिमायती स्वामीनाथन ने भी माना है कि वर्तमान केंद्र सरकार ने उनकी अनुशंसाओं को लागू करने का प्रयास किया है। इस सीजन में फसलों की रिकॉर्ड दोगुनी तक खरीद हुई है और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रिकॉर्ड भुगतान किया गया है। इस तरह किसान नेताओं की हर आशंका गलत साबित हुई है कि नए कृषि कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाएगा या एपीएमसी मंडियां खत्म हो जाएंगी।
उन्होंने आगे कहा कि कांट्रैक्ट फॉर्मिंग पहले ही पंजाब में चल रही है और इससे किसी किसान की भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया है। ऐसे में यही प्रावधान केंद्र सरकार के लाने पर विरोध क्यों किया जा रहा है। यह अफवाह क्यों फैलाई जा रही है कि नये कानूनों से किसानों की जमीन का सौदा किया जा सकता है। जबकि कृषि कानूनों में स्पष्ट किया गया है कि किसान – कांट्रैक्टर समझौते में भूमि पर किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
भारतीय किसान यूनियन के नेता डॉक्टर आशीष मित्तल ने कहा कि वरुण गांधी किसानों के हित में आवाज तो उठा रहे हैं, लेकिन वे भी बदले रूप में कॉर्पोरेट घरानों का ही समर्थन कर रहे हैं। जब वे कहते हैं कि किसानों से नए फॉर्मेट पर बातचीत होनी चाहिए तब वे यही इशारा कर रहे हैं कि कॉर्पोरेट को दूसरे दरवाजे से आने की अनुमति देनी चाहिए, जबकि किसान सीधे तौर पर तीनों कृषि कानूनों और कॉर्पोरेट मॉडल का खात्मा करना चाहते हैं।
किसान नेता ने कहा कि इस समय वर्तमान में भी विभिन्न तरीकों से कॉर्पोरेट कंपनियां खेती पर नियंत्रण किए हुए हैं। खाद, बीज, कीटनाशकों के जरिए वे अपनी मनमानी कर रही हैं, लेकिन अब वे सीधे खेती पर उतरकर यह भी तय करना चाहती हैं कि उनके खेतों में क्या उगाया जाए और उसमें किसानों का हिस्सा कितना हो। यह स्थिति किसी कीमत पर स्वीकार्य नही होगी।
मुजफ्फरनगर में आयोजित किसान महापंचायत में पूरे देश से आए किसानों की भारी भीड़ जमा हुई। किसान नेताओं ने 27 सितंबर को भारत बंद का ऐलान किया है। इसके पहले 10-11 सितंबर को लखनऊ में बैठक कर आंदोलन को अंतिम रूप देने के लिए रणनीति बनाई जाएगी। किसानों ने आरोप लगाया है कि यूपी सरकार लोगों को धर्म के आधार पर बांट रही है और मंच से हर-हर महादेव और अल्लाहु-अकबर के नारे लगाए गए। (एजेंसियां)
Lakhs of farmers have gathered in protest today, in Muzaffarnagar. They are our own flesh and blood. We need to start re-engaging with them in a respectful manner: understand their pain, their point of view and work with them in reaching common ground. pic.twitter.com/ZIgg1CGZLn
— Varun Gandhi (@varungandhi80) September 5, 2021