यह एक थिएटर (रंगमंच) प्रयोगशाला है। थिएटर आर्ट इनक्यूबेशन सेंटर है। जैसे कांच की नली में रसायन जीवंत हो उठते हैं, वैसे ही वहां नवरस जीवंत हो उठते हैं। सोच की गति तेज हो जाती हैं। अभिनेता प्रकाश राज की सपनों का महल ‘निर्दिगंता’ कर्नाटक के मैसूर के बाहरी इलाके में हरी-भरी हरियाली के बीच स्थापित है। इस परिसर में नये, और नये व अधिक/बहुत नये नाटकों को प्रस्तुत करने के लिए अभ्यास होता है। अभिनेता, लेखक, निर्देशक और आलोचक अपनी दिमाग को इस कार्य में लगा देते है।। विचार को निर्मित करते हैं। और चमत्कार करते है।
निर्दिगंता (निर्दिगंटा) का अर्थ है अंतहीन यानी जिसका कोई अंत नहीं है। जिसे कोई रोक नहीं सकता। अनंत है। अपार भी इसका मतलब होता है। अभिनेता प्रकाश राज को इस शब्द की गहराई पसंद आई। वह नाटक कला के लिए एक ऐसा मंच भी बनाना चाहते थे जो अनंत, सदैव अज्ञात, अनंत और विशाल हो। चारों ओर से ध्वनियों गूंजने वाला बेंगलुरु शहर या हमेशा भीड़ वाला मैसूर नगर चारों के लिए सुलभ हो सकता है। लेकिन, जिस खूबसूरती की उन्हें उम्मीद है, वह नहीं आ पाती। इसलिए वे कुछ और अंदर जाने का सोचा। श्रीरंगपट्टनम से दस किलोमीटर दूर और लोकपावनी नदी के तट पर एक जगह पसंद आई, जो एक हरे उपवन जैसा दिखाई देता है। आसपास कोई इंसानी हलचल नहीं है। पूरी तरह से खामोश (मौन) रहता है। अचानक कभी-कभी आपको किसी पक्षी की चहचहाहट मात्र सुनाई देती है।
बिना सोचे-समझे पांच एकड़ के परिसर को थिएटर स्थल बना दिया गया। वह कोई ड्रामा स्कूल नहीं है। यहां कोई किसी को उपदेश नहीं देता है। एक बात में कहा जाये तो निर्दिगंता में हर कोई छात्र है। नियमित रूप से कहानियों पर चर्चाएँ होती रहती हैं। अक्सर अभिनेता, निर्देशक और लेखक आते हैं। प्रकाश राज का कहना है कि हमारे पास कई ड्रामा स्कूल हैं। वहां कई छात्र एक्टिंग सीख रहे हैं। सीखने के बाद क्या? यह एक बड़ा सवाल है। इसका उत्तर निर्दिगंता में मिलता (निहित) है। यह प्रयोगों का मंच है। जो लोग रूढ़िवादिता और नन धोती/ठुल धोती धारण करते है यानी पसंद करते हैं उन्हें इतनी दूर आने की जरूरत नहीं है।
निर्दिगंता जैसे प्लेटफॉर्म हमारे लिए बिल्कुल नया है। लेकिन रंगमंच को बहुत प्यार करने वाले यूरोपीय देशों में यह परंपरा हमेशा से चली आ रही है। प्रकाश राज का विचार है कि नाटक प्रशिक्षण संस्थानों के पास किसी शोध संस्थान की प्रयोगशाला की तरह एक प्रयोग मंच होना चाहिए। मेरा यह प्रयोग सफल हो भी सकता है और नहीं भी। उनका सवाल है कि वास्तविक प्रयास क्यो नहीं होनी चाहिए? कोई भी व्यक्ति नये विचार, नये विषय के साथ निर्दिगंता से संपर्क कर सकता है।
आइडिया ताजा हो तो आर्थिक मदद जरूर मिलेगी। अभिनेताओं के चयन में सहायता करता है। रिहर्सल के लिए जगह दी जाएगी। रहने की व्यवस्था भी है। कॉफी-चाय, जलपान और दोपहर का भोजन समय पर उपलब्ध कराया जाता है। उन पैंतालीस दिनों तक व्यक्ति केवल नाटक ही संसार के रूप में जीवित रह सकता है। इसके बाद उन्हें अपने आविष्कार को लोगों तक पहुंचाना होगा। यदि नहीं तो थीम नई होनी चाहिए। प्रकाश राज का विचार है कि अगले दो वर्षों में प्रशंसकों के लिए कम से कम बीस नए नाटक लेकर आने का है।
प्रकाश राज कहते है, “मेरा काम उड़ना सिखाना है? यह उन पर निर्भर करता है कि वे कितनी दूर तक उड़ते हैं।” रंगमंच में समसामयिकता का अभाव बुद्धिजीवियों को खलता है। हमें ऐसी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है जो हमारी नहीं है। एक समय ऐसे गाँव थे, जिन्होंने नाटक देखने के बाद रईसों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। ऐसे लोग भी थे जो नाटक देखने के बाद परिवर्तित हो गए। आख़िरकार, यह एक नाटक था जिसने महात्मा गांधी को सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाया। प्रकाश राज को एक दमदार ड्रामा चाहिए जो बड़े-बड़े दर्द से छुटकारा दिला सके।
स्टार्टअप्स के लिए इन्क्यूबेशन सेंटर हैं। एक विचार को चुनना है, उसे आकार देना है, उसे एक कंपनी के रूप में स्थापित करना है, उत्पादन शुरू करना और उसे लाभदायक बनाना उनकी जिम्मेदारी है। थिएटर में ऐसी कोई व्यवस्था कहीं पर भी नहीं है। उस कमी को पूरा करना ही निर्दिगंता काम है। यह एक थिएटर आर्ट इन्क्यूबेशन सेंटर है। जून के दूसरे सप्ताह में इस अभिनेता प्रयोगशाला के दरवाजे खुल जाएंगे। नया जातरा करने का जो संकल्प लेते है उनके लिए वहां ‘स्वागत’ बोर्ड तैयार है। जीवन एक रंगमंच है। नाटक भी जीवन का एक क्षेत्र है!
अभिनेता प्रकाश राज ने कहा, “नाटक ने मुझे जीवन दिया। दो वक्त की रोटी दी। फिल्मी दुनिया (पर्दे) से परिचय कराया। मेरा मत है कि उस कला सरस्वती का कर्ज चुकाने का यह एक अच्छा अवसर है। चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले, अंतिम लक्ष्य नाटक को जीवित रखना है। यह सब तभी संभव है जब यह आम आदमी तक पहुंचे और मध्यम वर्ग के लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें। वह शक्ति समसामयिकता से आती है।