हैदराबाद (डॉ. मनोज मोक्षेंद्र की रिपोर्ट): केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और विश्व हिंदी सचिवालय के तत्त्वावधान में रविवार को वैश्विक हिंदी परिवार ने एक महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया। इस संगोष्ठी में ऑस्ट्रेलिया की प्रख्यात कथाकार रेखा राजवंशी द्वारा संपादित कहानी-संग्रह ‘ऑस्ट्रेलिया से कहानियाँ’ में प्रवासी तथा विशेषतया ऑस्ट्रेलियाई कथाकारों की कहानियों को चर्चा के केंद्र में रखा गया। इस परिचर्चा के सूत्रधार और संयोजक थे भारत के ही सुपरिचित लेखक जवाहर कर्नावट जबकि मंच का सुविध और कुशल संचालन किया ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध कवि और लेखक सुभाष शर्मा ने।
संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए जवाहर कर्नावट ने कहा कि हमें गर्व है कि ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ साढ़े तीन वर्षों से प्रत्येक रविवार को संगोष्ठी आयोजित करता रहा है। उन्होंने बताया कि वैसे तो इस कथा संग्रह की संपादक रेखा राजवंशी हैं तथापि राय कूकणा ने इसके साहित्यिक पक्षों का संपादन किया है। इसका प्रकाशन केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा किया गया है जबकि प्रख्यात साहित्यकार और भाषाविद अनिल शर्मा जोशी संस्थान के उपाध्यक्ष थे।
मंच के संचालक सुभाष शर्मा ने बताया कि रेखा राजवंशी की पहचान अनेकानेक साहित्यिक सम्मानों से तो होती ही है, तथापि उनकी विशेष पहचान इस बात से है कि उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई लेखकों को बड़ी शिद्दत से आपस में जोड़ा है। संगोष्ठी के पहले वक्ता राय कूकणा ने संग्रह में संगृहीत कहानियों की विषय-वस्तु के संबंध में विस्तृत विवरण दिया. इस पुस्तक में प्रेम माथुर, रेखा राजवंशी, शैलजा, मंजुला ठाकुर, अनीता बरार, पूजाव्रत गुप्ता, भावना कुंवर, संतराम, मृणाल, अब्बास अल्वी समेत कोई बीस कहानीकारों की विविधधर्मी कहानियां हैं।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रही नामचीन वरिष्ठ लेखिका डॉ. सूर्यबाला समेत, इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) की प्रोफेसर रेखा सेठी, ऑस्ट्रेलियाई रेडियो की प्रसारक अनीता बरार तथा चर्चाधीन पुस्तक के सह-संपादक डॉ. राय कूकणा जैसे विशिष्ट वक्ताओं ने इस पुस्तक में संकलित कहानियों की विषय-वस्तुओं, विचार-तत्त्वों और उनकी बहुआयामी सामाजिक प्रासंगिकताओं के संबंध में अपने-अपने सारगर्भित विचार रखे, जिन्हें श्रोता-दर्शकों ने खुले-मन से सराहा और कहानीकारों के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त कीं। पुस्तक के चुनिंदा कहानीकारों ने भी अपनी-अपनी कहानियों के बारे में अपने विचार रखे तथा पुस्तक की संपादक रेखा राजवंशी के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि गिरमिट देशों के प्रवासी साहित्यकारों के साहित्य में जो भारतीय विरासत की गंध छिपी हुई थी, उसे तो आलोचकों ने नकार दिया लेकिन उन साहित्यकारों ने उसे बखूबी सम्मान दिया। उन्होंने पुस्तक में संगृहीत कहानियों का मूल्यांकन व्यापक परिप्रेक्ष्य में किया जिसमें उन्होंने भारत के साथ उनके अंतर्संबंधों को परत-दर-परत उकेरा। साप्ताहिक संगोष्ठी में भारत तथा विदेशों से भी हिंदी विद्वान साहित्यकार, हिंदी प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
संगोष्ठी के समापन पर भारत के साहित्यकार डॉ. मनोज मोक्षेंद्र ने संगोष्ठी की अध्यक्ष तथा पुस्तक की संपादक सहित सभी प्रबुद्ध वक्ताओं एवं ज़ूम, फेसबुक, यूट्यूब और अन्य माध्यमों से जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने चर्चा में सहभागिता कर रहे वक्ताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी गंभीर चर्चाओं ने हिंदी के पाठकों को इन कहानियों को पढ़़ने के लिए बेचैन कर दिया है।