साहित्य सेवा समिति: 98वीं मासिक गोष्ठी में कवि और पत्रकार दिवाकर पांडेय जी रचना संसार और जीवनशैली को किया गया याद

हैदराबाद : सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘साहित्य-सेवा-समिति’ की 98 वीं मासिक गोष्ठी इस बार रूबरू आदित्य अस्पताल के निचले हिस्से में स्थित कान्फ्रेंस हाॅल में आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता की मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यिकार सत्य प्रसन्न जी द्वारा। कार्यक्रम का शुभारंभ किया सुनीता लुल्ला के सरस्वती वंदना गायन से। कार्यक्रम का संचालन सुप्रसिद्ध कवि पुरुषोत्तम कड़ेल ने किया।

इस बार प्रथम सत्र में चर्चा का विषय था- हैदराबाद के सुप्रतिष्ठित कवि श्रृंखला में छठी कड़ी पर ‘दिवाकर पांडेय’ जी। विषय परिचय देते हुए पुरुषोत्तम कड़ेल जी ने बताया कि दिवाकर पांडेय जी हालांकि थे तो कानपुर के लेकिन कालांतर में वह हैदराबाद में ही स्थायी रूप से बस गये थे। वह काफी समय तक ‘डेली हिन्दी मिलाप’ के सह संपादक भी रहे। उनकी काव्य गतिविधियों में ‘सांझ के साथी’ और अन्य संस्थाएँ में नियमित रूप से आना जाना काव्य पाठ करना शामिल रहा।

विषय चर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रमुख प्रवक्ता सुनीता लुल्ला जी ने दिवाकर पांडेय जी का विस्तार से परिचय दिया। दिवाकर जी 30 नवंबर 1931 को कानपुर के सुप्रसिद्ध कवि सूर्य नारायण जी पांडेय के 8वीं संतान के रूप में जन्मे। पिता को पहले ही कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। बड़े होने पर दिवाकर की काव्य प्रतिभा निखर कर सामने आई। लेकिन स्वभाव से यायावर प्रकृति के दिवाकर जी कभी दिल्ली, कभी मुंबई और कभी लखनऊ में रहे।

फिर एक बार हैदराबाद आये तो यहीं के हो कर रह गये। जीविकोपार्जन के लिए हैदराबाद पब्लिक स्कूल के हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे। दिल्ली में थे तो भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार के रूप में कार्य किया। बाद में फिर हैदराबाद में यहां के सुप्रतिष्ठित हिन्दी समाचार पत्र ‘डेली हिन्दी मिलाप’ के सह सम्पादक के रूप में कार्य किया। हुसैनी आलम के छोटे से घर में अकेले रहते हुए साहित्य सेवा भी बहुत की। लेकिन अपने व्यक्तिगत प्रचार से सदा दूर रहे। आपकी पहली पुस्तक 71 वर्ष की आयु में प्रकाशित हुई, वह भी कई मित्रों के बहुत दबाव के कारण।

बाद में आपकी अन्य पुस्तकें भी प्रकाश में आईं। आपने समीक्षाएं, आलोचनात्मक लेख, नाटक इत्यादि बड़ी संख्या में लिखे। लेकिन प्रकाशित नहीं किये। इस प्रकार एक सहज सरल व्यक्तित्त्व के धनी दिवाकर जी मित्रो के साथ रिश्ते भी बखूबी निभाते रहे।

मूल रूप से पक्के कनपुरिया दिवाकर जी पान खाने और ताश खेलने के बड़े शौकीन थे। लेकिन स्वयंपाकी दिवाकर जी के यहां हर आने जाने वाले को सब्जी रोटी का आतिथ्य ग्रहण करने का सौभाग्य भी मिलता ही रहता था। तत्पश्चात सुनीता लुल्ला जी ने दिवाकर जी की कुछ कविताओं का कविता पाठ किया। रसिक श्रोताओं ने भर पूर आनंद लिया। बाद में आपकी कुछ कविताओं का पाठ पुरुषोत्तम कड़ेल जी और विनोद गिरि अनोखा जी ने भी किया। तत्पश्चात प्रथम सत्र का विराम हुआ।

द्वितीय सत्र में नगर द्वय के उपस्थित कवि गणों ने पुरुषोत्तम कड़ेल जी के संचालन में स्वरचित रचनाओं का काव्य पाठ किया। जिनमें पूनम जोधपुरी , सूरज प्रसाद सोनी, उमा सोनी, डाॅ संगीता शर्मा, भगवती अग्रवाल, ममता अग्रवाल, उमेश श्रीवास्तव, विनोद गिरि अनोखा, पुरुषोत्तम कड़ेल, सुनीता लुल्ला और कार्यक्रम के अध्यक्ष सत्य प्रसन्न जी ने कविता पाठ किया।

नगर के पत्रकार राजन्ना जी भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे। अंत में सत्य प्रसन्न जी ने अध्यक्षीय वक्तव्य दिया और कविताओं के विषय वैविध्य की प्रशंसा की। अंत में भगवती अग्रवाल जी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और एक सुंदर काव्य गोष्ठी का समापन हुआ।

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