हैदराबाद: हैदराबाद से तीन दशक से अधिक समय से एक छोटा सा मासिक पत्र प्रकाशित होता है – ‘रामायण संदर्शन’। ‘रामचरितमानस’ का खड़ी बोली में काव्यात्मक रूपांतरण करने वाले ‘अभिनव तुलसी’ डॉ. राम निरंजन पांडे जी इसके आदि संपादक रहे हैं। उनके बाद इस पत्रिका के संपादन का सौभाग्य इन पंक्तियों के लेखक को मिला।
इस सिलसिले में समय-समय पर लिखित संपादकीय टिप्पणियों और आलेखों को “रामायण संदर्शन” नाम से ही पुस्तकाकार ( 2022/ साहित्य रत्नाकर, कानपुर/ 120 पृष्ठ/ सजिल्द / मूल्य ₹ 59 मात्र) एक जिल्द में प्रकाशित किया गया है। इन्हें जानबूझकर कोई सुचिंतित क्रम नहीं दिया गया है। बस्ते में से सामग्री जिस क्रम में मिलती गई उसी क्रम में इसे प्रस्तुत कर दिया गया है। इनमें कोई पूर्वापर संबंध नहीं है। है तो बस एक ही संबंध – तुलसी, राम और रामायण का संबंध!
यह पुस्तक राम और रामायण के एकनिष्ठ भक्त आदरणीय श्री पुरुषोत्तम तुलस्यान ‘हरिहर दास जी’ को सादर समर्पित है, जो “रामायण संदर्शन” नामक मासिक पत्रिका के प्रकाशक हैं। यह पुस्तक उनके हाथों में समर्पित करने के लिए आज उनके आवास पर एक संक्षिप्त सा समर्पण उत्सव आयोजित किया गया।
इस अवसर पर पुस्तक के लेखक के अतिरिक्त प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. मंजु शर्मा और डॉ. बी. बालाजी और तथा श्री हरिहर दास जी के परिवार के सदस्य प्रेमपूर्वक उपस्थित रहे। प्रो. गोपाल शर्मा ने समर्पण वक्तव्य दिया और सभी ने मिलकर हरिहर दास जी का अभिनंदन किया।