विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न रानी वेलु नाच्चियार
18वीं शताब्दी में शिवगंगा की भारतीय रानी वेलु नाच्चियार बचपन से ही युद्ध कला में निपुण थीं। वे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने वाली पहली महिला थीं। जब उनके पति को ब्रिटिश सैनिकों ने क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया तभी से रानी वेलु नाच्चियार अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ खड़ी हो गई और युद्ध में शामिल हुईं। उनका जन्म 3 जनवरी 1730 में रामनाथपुरम् के राजपरिवार में हुआ था। उनके पिता राजा चेल्लावुथ्थु विजयरामगुंडा सेतुपति और मां रानी सक्कांति मुथुन नाच्चियार थीं। माता-पिता की इकलौती संतान वेलु जन्म से ही विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न थीं। राजा ने वेलु का पालन-पोषण बेटे की तरह किया था। वेलु को बचपन से ही हथियार चलाने का शौक था। इसलिए उन्होंने तलवारबाजी, तीरंदाजी, लाठी चलाना और भाला फेंकने जैसी युद्ध कलाओं में महारत हासिल कर ली थी।
महान भाषाविद
किशोरावस्था तक आते-आते उन्होंने तमिल, फ्रांसीसी, उर्दू, मलयालम, तेलुगु और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया था। कम उम्र में ही महान तमिल ग्रन्थों का अध्ययन करके उन्होंने स्वयं को अपने पिता का योग्य उत्तराधिकारी साबित कर दिया था। सन् 1746 में वेलु नाच्चियार के पिता ने उनका विवाह शिवगंगा के महाराज शशिवर्मा थेवर के बेटे मुत्थु वेदुंगानाथ थेवर के साथ कर दिया। शिवगंगा के महाराज ने शिवगंगा के जंगलों को साफ करके उन्हें खेती करने लायक बनाया था। इसके अलावा जगह-जगह पर तालाब और रास्ते बनाकर आवागमन के लिए उपयुक्त साधन तैयार करवाए थे।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा शिवगंगा पर आक्रमण
ठीक उसी समय ईस्ट इंडिया कंपनी दक्षिण भारत में अपने पांव पसार रही थी। आर्कूट का नवाब कंपनी के आगे आत्मसमर्पण कर चुका था। अब कंपनी की नजर शिवगंगा पर थी। बदलते हुए राजनीतिक घटनाक्रम के कारण शिवगंगा के राजा ने नवाब को टैक्स का भुगतान करने से मना कर दिया। इससे नाराज़ होकर नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी से उनकी शिकायत कर दी। अंग्रेज तो पहले से ही उपयुक्त अवसर की तलाश में तैयार बैठे थे। नवाब के सहयोग ने उनका काम आसान कर दिया।
संबंधित लेख:
हजारों स्त्रियों-पुरुषों और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया
कर उगाही का बहाना बनाकर कंपनी ने शिवगंगा पर हमला कर दिया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। अंग्रेज फौजों ने शिवगंगा में भीषण मारकाट मचा दी। हजारों स्त्रियों-पुरुषों और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया। बचाव का कोई रास्ता न मिलने पर वेलु नाच्चियार ने दुर्ग छोड़ दिया और अपनी बेटी के साथ सुरक्षित स्थान की तलाश में इधर-उधर भटकने लगी। अंग्रेज वेलु नाच्चियार को ढूंढ रहे थे।
मैसूर का राजा हैदर अली
अपने गिने-चुने अंगरक्षकों के साथ रानी किसी तरह डुंडीगल के निकट वीरुपाक्षी पहुंची। वहां का राजा गोपाल नायकर रानी का हितैषी था। उसने रानी को संरक्षण प्रदान किया लेकिन सुरक्षा कारणों से रानी आगे मैसूर चली गई। उस समय मैसूर का राजा हैदर अली था। रानी ने शिवगंगा से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए हैदर अली से सहायता मांगी। उन्होंने वेलु नाच्चियार का स्वागत एक रानी की तरह किया। आर्थिक सहायता के साथ-साथ रानी की सहायता के लिए 10,000 पैदल और घुड़सवार सैनिकों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए भेज दिया। इसके बाद वेलु ने उदायल नारी सेना नामक महिला संगठन बनाया। वे बड़े जोर-शोर से सैन्य तैयारियों में जुटी थीं और शिवगंगा से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए सही समय की तलाश कर रही थी।
उदायल नारी सेना की कुशल रणनीतिकार रानी वेलु नाच्चियार
शिवगंगा दुर्ग के भीतर देवी राजराजेश्वरी का मंदिर था। उसमें प्रतिवर्ष दशहरे का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। उस एक दिन देवी पूजन के समय स्त्रियां बड़ी संख्या में शामिल होती थीं। वेलु नाच्चियार ने इसी का फायदा उठाकर अपनी रणनीति बनाई। मंदिर के पास ही अंग्रेजों का शस्त्र भंडार था। दशहरे के दिन जैसे ही दुर्ग का द्वार खुला, वैसे ही अपनी सेनापति कोयली के साथ उदायल नारी सेना ने दुर्ग में प्रवेश कर लिया। वे सब साधारण वस्त्रों में थी। फलों और फूलों की टोकरियों में उन्होंने अपने हथियार छिपाए हुए थे। अंग्रेज सैनिकों को इसकी भनक तक नहीं लगी।
महारानी ने अंग्रेजों को शिवगंगा से खदेड़ दिया
दुर्ग में पहुंचते ही वेलु की महिला ब्रिगेड ने अंग्रेजों के शस्त्रागार को आग के हवाले कर दिया। फिर महारानी ने अंग्रेजों को शिवगंगा से खदेड़ दिया। अंग्रेज महारानी के युद्ध कौशल को देखकर आश्चर्यचकित थे। वे किला छोड़ कर भाग गए और महारानी ने किले पर कब्जा कर लिया। इसके बाद करीब 10 वर्ष तक उन्होंने शिवगंगा पर राज किया।
वे पहली महिला क्रान्तिकारी रानी थी, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी।
वीरगाथाएं लोकप्रिय
वैसे तो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को पहली क्रान्ति माना जाता है लेकिन वेलु नाच्चियार ने उससे पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध और क्रान्ति का बिगुल बजा दिया था। हालांकि इतिहास में उनके इस साहसिक योगदान को भुला दिया गया लेकिन दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में आज भी रानी वेलु नाच्चियार और उनकी सेनापति कोयली की वीरगाथाएं लोकप्रिय हैं। कहा जाता है कि वीरांगना कोयली ने अपने शरीर पर तेल लगाकर आग लगा ली और शस्त्रागार को आग के हवाले कर दिया। वह उस समय की सबसे पहली ऐसी साहसिक क्रान्तिकारी महिला थीं, जिन्होंने मानव बम बनकर शत्रुओं की शक्ति को नष्ट कर दिया था। ऐसी वीरांगना रानी वेलु नाच्चियार को शत-शत नमन। वन्दन। अभिनन्दन।
– सरिता सुराणा वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका हैदराबाद