हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की 354वीं मासिक गोष्ठी अपने पारंपरिक गरिमा और साहित्य के लिए एक नई सोच- ‘हिंदी साहित्य में दक्षिण के साहित्यकारों के योगदान’ विषय पर रहा है। क्लब ने संगोष्ठी के प्रथम सत्र में इसे तीसरे अध्याय के रूप में ‘मलयाली भाषा के साहित्यकारों का हिंदी साहित्य में योगदान’ पर केंद्रित किया है। श्रीमती शुभ्रा महंतों के द्वारा सुमधुर निराला रचित सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आरंभ हुआ।
डॉ अहिल्या मिश्र (संस्थापक अध्यक्ष, कादम्बिनी क्लब) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि इस अवसर पर मलयाली भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ वी पी मुहम्मद कुंज मेत्तर मुख्य वक्ता और प्रो तंकमणि अम्मा विशिष्ट वक्ता व सत्र अध्यक्ष के रूप में आभासी मंच पर उपस्थित हुए।
मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखते हुए डॉ वी पी मुहम्मद कुंज मेत्तर ने कहा कि हर चीज को अंग्रेजी से जोड़ने की हमारी मनोवृत्ति है। धारणा है कि निबंध विधा और शोक गीत आदि का जन्म अंग्रेजी में हुआ जबकि ऐसा नहीं है। सर्वप्रथम अपने पिता मीरण जी जो खंड काव्य के रचयिता थे के मृत्यु पर जानम ने शोक गीत गीत लिखा। केरल हिन्दी प्रचार सभा दक्षिण में हिन्दी प्रचार के बड़ी शृंखला की छोटी कड़ी है। हिन्दी प्रेमियों ने केरल में प्रयोजन मूलक हिन्दी का विकास किया। उन्होंने स्वतंत्रता के पूर्व और पूर्वोत्तर केरल में निबंध साहित्य के विकास का चित्रण करते हुए कहा कि मौलिक सृजन के क्षेत्र में केरल से अधिक शोध निबंध पर कार्य कहीं और कम ही हुआ है।
विशिष्ट वक्ता प्रो तंकमणी ने कहा कि केरल में हिन्दी तीर्थयात्रियों के माध्यम से आई। 18वीं सदी में कुंजल नंबयार ने कृष्ण भक्ति काव्य की कुछ पंक्तियाँ हिन्दी में लिखी जिसकी लिपि मलयाली थी। इसका साहित्यिक महत्व भले न हो परंतु ऐतिहासिक महत्व अवश्य है। उन्होंने मलियाली भाषा का सुंदर चित्र खींचते हुए कहा कि मलियाली भाषियों में अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त हिन्दी में भी भाव व्यक्त करने की सोच पनपी अतः यहां हिन्दी में सृजन आरंभ हुआ। आज केरल में अधिकांश कवि शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।
गोष्ठी संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने क्लब के संबंध में बताते हुए कहा कि क्लब की प्रत्येक माह की गोष्ठी में साहित्यिक विमर्श और साहित्यिक गतिविधियाँ साथ चलती रहती है। हिन्दी साहित्य में दक्षिण के साहित्यकारों का अवदान पर चर्चा की कड़ी में हमने तमिल और तेलुगु भाषा पर पूर्व की गोष्ठी में चर्चा कर चुके हैं और आज मलयाली भाषा पर चर्चा कर रहे हैं। आशा है यह हम सभी साहित्यकारों के लिए ज्ञानवर्धक होगा। उन्होंने प्रो तंकमणी अम्मा का परिचय दिया और विषय की विशालता को देखते हुए समयाभाव को विडंबना माना। उन्होंने क्लब की ओर से क्लब के सदस्य दर्शन सिंह, डॉ सुरभि दत्त, सुहास भटनागर, संतोष रजा को राजन चौधरी पुरस्कार हेतु बधाइयाँ दीं।
संस्थापक अध्यक्ष डॉ अहिल्या मिश्र ने सभी का स्वागत करते हुए, मुख्य एवं विशिष्ट वक्ता का परिचय पटल पर रखा एवं हिंदी साहित्य में दक्षिण के साहित्यकारों के योगदान की भूमिका प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि हम दक्षिण के विद्वानों को सुनकर, समझकर उन क्षेत्रों को जानें जिनकी हिन्दी के विकास में भी पूर्ण भूमिका रही है। हम दक्षिण से हैं और दक्षिण के ध्वज वाहक बनना हमारा दायित्व है।
अपने स्वागत सम्बोधन में उन्होनें मीना मुथा एवं प्रवीण प्रणव की कमी का एहसास भी जताया। विशेष अतिथि नरेंद्र परिहार (नागपुर ) ने सत्र की सराहना करते हुए कहा कि वे अपने ज्ञानवर्द्धन हेतु कार्यक्रम से जुड़े हैं। उन्हें अति प्रसन्नता हो रही है कि क्लब इस तरह के कार्यक्रम आयोजित कर साहित्य सेवा में संलग्न है। प्रतिक्रिया स्वरूप डॉ सुरभी दत्त ने कहा कि विद्वानों के वक्तव्य सुनकर ऐसा लगा कि साहित्य के संबंध में हमें और बहुत कुछ जानने की आवश्यकता है। हमारे लिए यह मार्गदर्शन है। उन्होंने क्लब को बधाई दी और इस तरह की गोष्ठी का आयोजन भविष्य में भी होने कि आशा जताई।
गोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ के संचालन तथा डॉ अहिल्या मिश्र की अध्यक्षता में पटल पर उपस्थित सदस्य भावना पुरोहित, तृप्ति मिश्रा, शिल्पी भटनागर, अवधेश कुमार सिन्हा, विनोद गिरी अनोखा, किरण सिंह, संतोष ‘रज़ा’, दर्शन सिंह, जी परमेशवर, डॉ आशा मिश्रा, विनीता शर्मा, ज्योती नारायण, डॉ रमा द्विवेदी, उषा शर्मा, रूपम सिंह, डॉ मेधा झा, राजा रानी शुक्ला एवं मिलन श्रीवास्तव ने काव्यपाठ किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि प्रथम सत्र बहुत ही सार्थक रहा। क्लब का प्रयास रहा है कि हिन्दी क्षेत्र मे दक्षिण के साहित्यकारों के योगदान को भी पटल पर लाएं और यह कार्य संस्था बखूबी निभा रहा है। इस चर्चा के लिए दो चरण की गोष्ठी काफी नहीं है, हमें निरंतर यह प्रयास करते रहना पड़ेगा।
डॉक्टर टी वसंता, शिव कुमार मंडल, सरिता सुराणा, जय श्री, बंधु सिंह, जी वीर सिंह, प्रियंका गिलड़ियाल, अंजली मलिक, श्वेता शरण, शशिनारायन शुक्ला, रामचंदर स्वामी, दीपा स्वामिनाथन, सुरेन्द्र नाथ, अभिषेक राज, कुमार आशुतोष, राहुल प्रसाद गुप्ता एवं अन्य कई लोगों ने कार्यक्रम में श्रोता के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। शिल्पी भटनागर के आत्मीय आभार प्रदर्शन के साथ संगोष्ठी एवं काव्यगोष्ठी का समापन हुआ। समाज सेवक एवं साहित्यकार मुनीन्द्र मिश्र के योगदान को स्मरण करते हुए उनके स्वर्गारोहण पर दो मिनट का मौन रख उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
गौरतलब है कि कोरोना के दुष्प्रभाव से साहित्यकारों को सुरक्षित मंच उपलब्ध कराने के प्रयास में क्लब अपने सदस्यों एवं अतिथियों के साथ आभासी रूप से निरंतर प्रति माह अपने कार्यक्रम का आयोजन ऑनलाइन वेबीनार के माध्यम से करता आ रहा है।