हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली) की अध्यक्षता में क्लब की 365वीं गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट पर किया गया। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा एवं श्रीमती मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने बताया कि सर्वप्रथम सास्मिता नायक द्वारा सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी गई।
कार्यक्रम का तकनीकि संचालन करते हुए श्रीमती शिल्पी भटनागर ने क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र को स्वागत भाषण हेतु आमंत्रित किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि यह संस्था साहित्य की सेवा में सतत् कार्यरत है। युवा वर्ग को जोड़ते हुए उन्हें पठन – पाठन और लेखन की ओर मोड़ रही है। धीरे धीरे कारवाँ बढ़ रही है। शिल्पी भटनागर के काव्य संग्रह का लोकार्पण होनेवाला था परंतु स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उसे स्थगित किया गया और पुनः आभासी रूप से हम भेंट कर रहे हैं।
अवधेश कुमार सिन्हा संगोष्ठी संयोजक ने फ़्रांस की पहली नोबेल पुरस्कार ग्रहीता एनी आर्णे के संबंध में साहित्यिक गतिविधियों में उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व पर विशेष प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आर्णे की साहित्यिक यात्रा 1974 से शुरू हुई। उन्होंने अपने आत्मचरित्र में अपने जीवन की संघर्ष, घटनाएँ, कैंसर जैसी भयंकर बीमारी के बारे में लिखा। अपना जीवनानुभव वह बेबाक़ होकर लिखीं।
साहस, सच्चाई और सूक्ष्म निरीक्षण से दुनियाँ उनकी क़ायल हुई और 2022 के नोबेल पुरस्कार की वह विजेता बनीं। वह फ़्रांस की पहली लेखिका हैं जिन्होंने नोबेल पुरस्कार जीता है। उनका कहना है कि पढ़ना अदृश्य रूप से इंसान को बांधता है। उन्होंने भी टेलीविज़न, किताबें आदि से ज्ञान हासिल किया और पलायनवाद से भी आनंद का भाव लेती रहीं। अपनी बात का समापन करते हुए सिन्हा जी ने भारतीय स्त्रियों की तुलना करते हुए कहा कि भारतीय स्त्रियाँ सच्ची बातें लिखती हैं तो उनपर कटाक्ष किया जाता है। यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था का परिणाम है। नवजागरण यहाँ पर भी आना चाहिए।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि हमारे यहाँ भी कई महिला लेखिकाओं ने अपने विचार साहस के साथ रखे हैं। परंतु धृष्टतापूर्ण टिप्पणियाँ भी आती रहीं। भारतीय संस्कार हमें अपने बारे में खुलकर सबकुछ कहने की इजाज़त नहीं देती। परंपरा, संकोच, लोग क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे की भावना हमारी कलम को रोक देती है। उन्होंने आगे कहा कि आज अवधेश जी ने बड़ी सुंदरता से आर्णे के संपूर्ण व्यक्तित्व को अनुवादित करके हमारे समक्ष रखा है। निश्चित ही सभी इस नोबेल पुरस्कार ग्रहीता के बारे में पढ़ने के लिए उत्सुक होंगे।
दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें रचनाकारों ने कविता, गीत, ग़ज़ल, भक्ति गीत, शृंगार गीत, हायकु आदि काव्य के सभी विधाओं को समाहित करते हुए काव्य पाठ का आनंद लिया। आर्या झा, किरण सिंह, विभा भारती, शोभा देशपांडे, संतोष रजा गाजीपुरी, दर्शन सिंह, विनोद गिरि अनोखा, मोहिनी गुप्ता, सीताराम माने, मीना मुथा, डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, शिल्पी भटनागर, डॉ अहिल्या मिश्र ने काव्य पाठ किया।
कार्यक्रम में मधु भटनागर, रमाकान्त श्रीवास एवं श्रुतिकांत भारती की भी उपस्थिति रही। अवधेश कुमार सिन्हा ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रथम सत्र का असर दूसरे सत्र में नज़र आया और अधिकतर कविताऐं स्त्री केंद्रित पढ़ी गईं। प्रतिभा गोठीवाल की कविताओं के कुछ अंश उन्होंने सुनाया। सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर ने किया एवं मीना मुथा के आभार प्रदर्शन के साथ काव्य गोष्ठी संपन्न हुआ।